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नागौर

सोलह शृंगार में सजी महिलाओं ने शिव-पार्वती से मांगा अखंड सुहाग का वरदान

जिलेभर में उल्लास से मनाई कजरी तीज, फल व सत्तू का भोग लगाया, सुहाग सामग्री का दान किया

नागौरAug 06, 2020 / 09:49 pm

Jitesh kumar Rawal

सोलह शृंगार में सजी महिलाओं ने शिव-पार्वती से मांगा अखंड सुहाग का वरदान

सोलह शृंगार में सजी महिलाओं ने शिव-पार्वती से मांगा अखंड सुहाग का वरदान

नागौर. कजरी तीज पर गुरुवार को कई धार्मिक आयोजन हुए। महिलाओं ने शिव-पार्वती की पूजा कर अखंड सुहाग की कामना की। सोलह शृंगार कर खुशियां मनाई गई। शहर समेत जिलेभर में महिलाओं ने कजरी तीज उल्लास से मनाई। कोरोना संक्रमण के कारण महिलाओं ने इस पर्व को घरों में ही मनाया।
सुबह नए व रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजी-धजी महिलाओं ने पूजन किया। घर में ही बनाए पूजन स्थल पर आराधना की गई। नीमड़ी माता को जल, रोली, अक्षत, मेहंदी समेत विभिन्न सुहाग सामग्री चढ़ाई गई। इसके बाद दीपक प्रज्जवलित कर शिव-पार्वती का ध्यान किया। महिलाओं ने सत्तू का भोग लगाया एवं सुहाग सामग्री का दान करते हुए अखंड सौभाग्य का वर मांगा। दिनभर उपवास रखा गया।
हीना से हाथों में उकेरी फूलों की झांकी
कजरी तीज को लेकर महिलाओं में मानो मेहंदी व शृंगार की प्रतिस्पद्र्धा रही। सहेलियों ने अपनी-अपनी मेहंदी को लेकर उल्लास दिखाया। महिलाओं ने शृंगार से लेकर मेहंदी के लिए विशेष तैयारियां की। हालांकि इसके लिए भी एक दिन पहले ही ब्यूटी पार्लर में आवाजाही लगी रही थी। हाथों पर हीना से किसी ने मोर पंखी तो किसी ने फूलों की झांकी उकेर दी।
इसलिए मनाते हैं कजरी तीज
सुहागिन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु की कामना को लेकर कजरी तीज मनाती है। माना गया है कि इस व्रत के करने से घर में सुख-शांति एवं पति की लंबी आयु, समृद्धि, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। कजरी तीज की कथा के अनुसार भगवान शिव से विवाह के लिए मां पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इसके बाद इसी दिन मां पार्वती ने शिव को प्राप्त किया था। महिलाएं इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव दोनों की ही पूजा करती हैं।
चंद्रमा दिया अघ्र्य, नीमड़ी माता को खिलाए मालपुए
तीज की पूजा का दिनभर कार्यक्रम चला। घर में पूजा के लिए दीवार के सहारे मिट्टी और गोबर से तालाब जैसा छोटा सा घेरा बनाया और उसमें कच्चा दूध व जल भरा। किनारे पर एक दीपक जलाया गया। इसके बाद एक थाली में फल, सत्तू, रोली, मौली,अक्षत आदि रखे। तालाब के किनारे नीम की एक डाल रोपी गई। इस पर चुनरी ओढ़ाकर नीमड़ी माता की पूजा की गई। नीमड़ी माता को मालपुए का भोग लगाया गया। वहीं शाम को चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला गया।

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