कजरी तीज को लेकर महिलाओं में मानो मेहंदी व शृंगार की प्रतिस्पद्र्धा रही। सहेलियों ने अपनी-अपनी मेहंदी को लेकर उल्लास दिखाया। महिलाओं ने शृंगार से लेकर मेहंदी के लिए विशेष तैयारियां की। हालांकि इसके लिए भी एक दिन पहले ही ब्यूटी पार्लर में आवाजाही लगी रही थी। हाथों पर हीना से किसी ने मोर पंखी तो किसी ने फूलों की झांकी उकेर दी।
सुहागिन महिलाएं अपने पति के दीर्घायु की कामना को लेकर कजरी तीज मनाती है। माना गया है कि इस व्रत के करने से घर में सुख-शांति एवं पति की लंबी आयु, समृद्धि, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। कजरी तीज की कथा के अनुसार भगवान शिव से विवाह के लिए मां पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इसके बाद इसी दिन मां पार्वती ने शिव को प्राप्त किया था। महिलाएं इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव दोनों की ही पूजा करती हैं।
तीज की पूजा का दिनभर कार्यक्रम चला। घर में पूजा के लिए दीवार के सहारे मिट्टी और गोबर से तालाब जैसा छोटा सा घेरा बनाया और उसमें कच्चा दूध व जल भरा। किनारे पर एक दीपक जलाया गया। इसके बाद एक थाली में फल, सत्तू, रोली, मौली,अक्षत आदि रखे। तालाब के किनारे नीम की एक डाल रोपी गई। इस पर चुनरी ओढ़ाकर नीमड़ी माता की पूजा की गई। नीमड़ी माता को मालपुए का भोग लगाया गया। वहीं शाम को चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला गया।