विद्यार्थियों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति राजस्थान की बात करें तो यहां हर साल 5 हजार से अधिक लोग आत्महत्या कर रहे हैं, इसमें छात्रों की संख्या अधिक है, जो विभिन्न कारणों से आत्महत्या कर रहे हैं। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक डरावनी तस्वीर है, जिसे नहीं रोका गया तो आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जाएगा।
देश में मनोरोग विशेषज्ञों की भारी कमी चिकित्सा विभाग के मनोरोग विशेषज्ञों ने बताया कि युवाओं में दिन प्रति दिन तनाव बढ़ता जा रहा है। समाज में मनोरोगी बढ़ रहे हैं, लेकिन मनोरोग विशेषज्ञों की कमी है। भारत में जितने मनारोग विशेषज्ञों की आवश्कता है, उनके 40 फीसदी भी नहीं हैं। नागौर जैसे बड़े जिले में भी एक मात्र मनोरोग विशेषज्ञ है।
प्रदेश में यूं बढ़े आत्महत्या के मामले वर्ष – पुरुष – महिला – कुल 2013 – 3377 – 1483 – 4860 2014 – 3235 – 1224 – 4459 2015 – 2537 – 920 – 3457
2016 – 2588 – 1090 – 3678 2017 – 3040 – 1148 – 4188 2018 – 3088 – 1245 – 4333 2019 – 3302 – 1229 – 4531 2020 – 4027 – 1631 – 5658
2021 – 4057 – 1536 – 5593 2022 – 3925 – 1418 – 5343 युवाओं में खत्म हो रहा है धैर्य विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या करने का मुख्य कारण हमारा पाश्चाात्य संस्कृति को फॉलो करना है। परिवार व रिश्ते दिनों-दिन छोटे होते जा रहे हैं। पहले संयुक्त परिवार में रहते थे, तो किसी बच्चे को समस्या होने पर कोई न कोई बड़ा सदस्य बात संभाल लेता था, लेकिन आजकल के बच्चे परिवार व रिश्तेदारों से दूर हो गए। कामकाजी होने से मां-बाप बच्चों से दूर हो गए, परिवार में माहौल ऐसा बनने लग गया कि घर में बाहरी व्यक्ति को बच्चे स्वीकार ही नहीं कर पाते। दूसरा बड़ा कारण बच्चों के हाथों में मोबाइल आना भी है, सोशल मीडिया के साथ ऑनलाइन गेम बच्चों को आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सुसाइड की घटनाएं ज्यादा होने लगी हैं। जाने युवा किस दिशा में जा रहे हैं।
नागौर जिले में पिछले छह साल में आत्महत्या के मामले वर्ष – पुरुष – महिला – कुल मौत 2017 – 44 – 10 – 54 2018 – 65 – 20 – 85
2019 – 81 – 23 – 104 2020 – 84 – 19 – 103 2021 – 159 – 48 – 207 2022 – 104 – 37 – 141 पत्रिका व्यू- कैसे रोकें आत्महत्याएं
आत्महत्या की प्रवृत्ति खासकर बच्चों एवं युवाओं में ज्यादा बढ़ रही है। इसके लिए जितने जिम्मेदार ऐसा कदम उठाने वाले हैं, उतने जिम्मेदार हम भी हैं। भागदौड़ वाली जिंदगी में हमने अपने बच्चों पर ध्यान देना बंद कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तनाव में जी रहे युवाओं को अपनी समस्या परिवार के लोगों, मित्रों एवं डॉक्टर को बताना चाहिए, ताकि समय रहते उसका समाधान किया जा सके। तनाव का इलाज नशे में नहीं ढूंढ़े, बल्कि इसके लिए उन्हें फिट एवं सक्रिय रहना चाहिए। माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों की गतिविधि एवं शिक्षा पर ध्यान रखें। उनकी संगत का ध्यान रखें। बच्चों पर अपने विचार नहीं थोपें, इससे बच्चे तनाम में आकर अवसाद में चले जाते हैं।
तनाव व नशे की प्रवृत्ति मुख्य कारण वर्तमान में युवा सहनशील नहीं रहा, वह कम समय में सबकुछ प्राप्त करना चाहता है। जब वह उसमें सफल नहीं होता है तो तनावग्रसत हो जाता है। यही तनाव लम्बे समय तक रहने से वह अवसाद में चला जाता है और फिर आत्महत्या कर लेते हैं। युवाओं में तनाव एवं नशे की प्रवृत्ति ही आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं। इसके साथ एकल परिवार, मोबाइल की लत भी आत्महत्या का बड़ा कारण बन रहा है।
– डॉ. राधेश्याम रोज, मनोरोग विशेषज्ञ, जेएलएन अस्पताल, नागौर