सिटी बसें चालू नहीं हो रही, घर कैसे चलाएं
स्पीड गर्वनर लगने व सुधार के काम में देरी, यात्रियों को भी परेशानी
उज्जैन. शहर में सिटी बस का संचालन करीब डेढ़ माह से बंद पड़ा है। पहले नए ठेके की हस्तांतरण प्रक्रिया और अब टाटा कंपनी में स्पीड गवर्नर सहित मेंटेनेंस के लिए गई बसों के नहीं आने से सेवा ठप है। सालों से बसों में कार्यरत ड्राइवर-कंडक्टर के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। वहीं लोक परिवहन की जरूरी सेवा होने के चलते यात्रियों को भी दिक्कत हो रही है। निगम प्रशासन ने 15 जुलाई से बस सेवा शुरू करने का दावा किया था, लेकिन अब तक इंदौर से ही बसें दुरुस्त होकर नहीं आई।
आरटीओ ने सिटी बसों में स्पीड गर्वनर की अनिवार्यता के चलते परमिटों पर रोक लगा दी थी। इसके चलते यूसीटीएसएल ने बसें टाटा कंपनी के वर्कशॉप इंदौर भेजी है, लेकिन साफ्टवेयर संबंधी परेशानी के चलते स्पीड गर्वनर नहीं लग पा रहे। बसें वहां खड़ी हैं और यहां यात्री सहित कार्यरत स्टाफ को परेशानी भोगना पड़ रही है। करीब 80 ड्राइवर-कंडक्टर बसों के आने के इंतजार में ओर कहीं नौकरी भी नहीं कर रहे। इधर अपर आयुक्त विशालसिंह चौहान का कहना है कि हम लगातार टाटा कंपनी के संपर्क में हैं। जिन मॉडल की बसें है वे वहीं सुधार सकते हैं। बाजार में मैकेनिक ये काम नहीं कर सकते। इस कारण इंतजार करना पड़ रहा है।
5 करोड़ किए खर्च, फिर भी कमी बता रहे
बस संचालन से जुड़े राजेश त्रिपाठी व मेहबूब खान ने कहा कि शासन ने बसों के मेंटेनेंस के लिए निगम को 5 करोड़ रुपए दिए थे। बावजूद फिर से बसों को सुधार के लिए भेजना पड़ा तो पहले के फंड का क्या हुआ। महापौर मीना जोनवाल से मुलाकात में उन्होंने बताया कि फंड की कमी के कारण बसें ठीक नहीं हो पा रही, तो ऑपरेटरों द्वारा रायल्टी के रूप में चुकाया जाने वाला पैसा कहां गया।
डीजल बसें चलवाने की मांग
बस स्टॉफ कर्मियों ने मांग रखी कि निगम ने डीजल बसें मक्सी रोड डिपो में खड़ी करवा दी। यदि निगम आगामी समय के लिए इन बसों को ही चलवा दें तो आय भी मिलेगी और ड्राइवर-कंडक्टर का परिवार भी पल सकेगा। कुल मिलाकर निगम अधिकारियों की अनदेखी में सिटी बस प्रोजेक्ट खतरे में पड़ गया है और जेएनएनएयूआरए में खर्च करोड़ों रुपया किसी के काम नहीं आ पा रहा।