कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को अपने बच्चों के समाज में उनका जीवनयापन करने लायक बनने तक उनका खर्चा उठाना होगा और वह सिर्फ इसलिए अपने बेटे की पढ़ाई का पूरा खर्च अपनी पत्नी पर नहीं डाल सकता, क्योंकि बच्चे की उम्र 18 साल हो गई है।
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Delhi: हाईकोर्ट ने कहा- शिकायत की जानकारी मीडिया को देना मानहानि नहीं हाईकोर्ट ने कहा कि CRPC की धारा 125 का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि तलाक के बाद पति, पत्नी और बच्चे को बेसहारा न रखे।
इस जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, कोई व्यक्ति अपने बेटे की पढ़ाई के खर्च से इसलिए मुक्त नहीं हो सकता, क्योंकि वह बालिग हो गया है लेकिन वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर नहीं है। व्यक्ति को अपनी पत्नी को मुआवजा भी देना होगा जिसके पास बच्चों पर खर्चा करने के बाद अपने लिए मुश्किल से कुछ बचता है।
दरअसल जून 2021 में निचली अदालत ने वैवाहिक विवाद में एक व्यक्ति को पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए 15 हजार रुपए प्रति माह राशि भुगतान के आदेश दिए थे।
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कोर्ट का यह आदेश उसके पहले के एक आदेश की पुनर्विचार याचिका पर आया है, जिसमें याचिकाकर्ता को उससे अलग हो चुकी पत्नी को तब तक प्रति महीने 15 हजार रुपए का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था जबतक उसका बेटा ग्रेजुएशन पूरी करता या रुपए कमाना शुरू नहीं कर देता।
इससे पहले एक फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि बेटे को तब तक गुजारा भत्ता दिया जाएगा जब तक वह बालिग नहीं हो जाता और बेटी को तब तक गुजारा भत्ता देना होगा जब तक वह नौकरी नहीं करने लगती या उसकी शादी नहीं हो जाती।