मध्य प्रदेश के मुरैना का रहने वाले दीपक दो साल पहले घर में ऊंचाई से गिरने से रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी, जिसका उलाज कराने गए थे। इस घटना के बाद उन्हें लकवा मार गया था। उनका दिल्ली के इंडियन स्पाइल इंजरीज सेंटटर (ISIC) में इलाज चल रहा था। ISIC के डॉ. प्रशांत जैन ने कहा कि लकवाग्रस्त सभी मरीजों में लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन होते हैं, इससे मूत्राशय और आंत्र प्रभावित होती है। पीड़ित का यूरिनरी ब्लैडर यानी मूत्राशय भी ठीक से काम नहीं कर रहा था इसलिए उनमें कैथेटर लगाना पड़ा। इसे सेकेंडरी न्यूरोजेनिक ब्लैडर कहा जाता है।
वहीं जब दीपक अपने रीढ़ की हड्डी का इलाज कराने आए तो एक्स-रे के बाद डॉक्टरों ने अन्य जांचों के साथ एक सीटी स्कैन भी किया। सीटी स्कैन में मरीज के मूत्राशय में कई पत्थरों के होने का पता चला। डॉ जैन का कहना है कि सौभाग्य से मरीज के किडनी में कोई पथरी नहीं थी। उनकी किडनी अच्छे से काम कर रही थी। डॉ प्रशांत जैन ने कहा कि मूत्राशय की क्षमता कमजोर थी। काउंसिलिंग के बाद ओपन सिस्टोलिथोटॉमी प्रक्रिया से पथरी को एक बार में हटाने का फैसला किया गया।
डॉक्टर ने आगे बताया कि उन्होंने मूत्राशय में एक छोटा सा छेद करके पत्थरों को निकाला गया। जिसके बाद ब्लैडर और घाव को ठीक किया गया। अब मरीज पूरी तरह से ठीक है, वहीं उसके हालत में भी सूधार आया हैं। डॉ जैन का कहना है कि लकवाग्रस्त मरीजों में यह समस्या होना आम बात होती है, क्योंकि इस अवस्था में उनका ब्लैडर ठीक ठंग से काम नहीं कर रहा होता। वहीं न्यूरोजेनिक ब्लैडर यूरीन को पत्थर में बदल देते हैं और यूरिन को खाली नहीं करते। इसलिए यूरीन का कुछ भाग धीरे-धीरे मूत्राशय में जमा होने लगता है, जो बाद में ठोस पत्थर सा बन जाता है।