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हास्य-व्यंग्य : ‘पार्टी’ में खाते रहने की गारंटी का सुख

जहां देखो वहीं ‘पार्टी’… पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक। समझ में नहीं आता कौनसी पार्टी में जाएं और कौनसी में नहीं? ..सब कह रहे हैं कि हमारी ‘पार्टी’ में आ जाओ। पढ़िए हरीश पाराशर की व्यंग्य रचना…

नई दिल्लीApr 17, 2024 / 08:02 pm

Shaitan Prajapat

Lok Sabha Elections 2024 : जहां देखो वहीं ‘पार्टी’… पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक। समझ में नहीं आता कौनसी पार्टी में जाएं और कौनसी में नहीं? ..सब कह रहे हैं कि हमारी ‘पार्टी’ में आ जाओ.. वैसे कहते भी हैं कि ज्यादा आनंद लेना हो तो किसी भी ‘पार्टी’ में चले जाओ.. बस वहां ‘खाने’ को मिलना चाहिए। काफी दिनों से एक ही तरह का ‘खाते-खाते’ उकता से गए थे इसलिए नेताजी ने नई ‘पार्टी’ में जाना ही मुनासिब समझा। पहले से ही किसी ने ज्ञान दे दिया था कि ‘पार्टी’ कैसी ही हो.. खाते वक्त दूसरों की तरफ देखना छोड़ दो.. तब तक खाते रहो जब तक कि कोई ज्यादा खाने का आरोप नहीं जड़ दे। बात थोड़ी-थोड़ी समझ में आ गई थी इसलिए नेताजी बुलावे वाली एक ‘पार्टी’ में चले ही गए। यहां पहले से मौजूद दूसरे नेताजी ‘खाते-पीते’ लग रहे थे।

चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान

बिखेरी और फिर नए नेताजी को कंधे पर हाथ रख एकांत में ले गए.. बोले- डरना बिल्कुल नहीं.. यहां ‘खाओ और खाने दो’ का सूत्रवाक्य चलता है.. वैसे भी ‘खाने’ के लिए पार्टियां बदलते रहने में भला बुराई किस बात की… मुझे देखो .. किसी एक पार्टी के भरोसे कभी नहीं रहा.. रात देखा न दिन.. आव देखा न ताव… जब भी कहीं से पार्टी का न्योता मिला फुर्ती से दौड़ पड़ा। देख नहीं रहे.. पार्टी… पार्टी’ करते अपनी सेहत कितनी ‘दुरुस्त’ हो गई है…। पर इस बात की क्या गारंटी है कि वहां सभी ‘खाने वाले’ ही होंगे।

‘गारंटी’ कोई नहीं दे रहा

पार्टी में ही कोई कह रहा है- ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’.. डर सा लग रहा है। खाते रहने की ही आदत है जो है। तो अभी कौनसी ‘पार्टी’ खत्म हुई है.. यहां मौका नहीं मिले तो दूसरी में जाकर खा लेना। तोंद पर हाथ फेरते नेताजी ने समझाया। बात समझ में तो आ रही है लेकिन ‘गारंटी’ कोई नहीं दे रहा। यही गारंटी न कि खातेे रहो .. कोई कुछ नहीं कहेगा। ‘पार्टीबाजी’ में आनंद तो है पर खतरे भी कम नहीं। कहीं खाया-पिया हजम नहीं हुआ तो? मन में शंका हो गई है ..तो फिर पार्टीबाजी से ऊपर उठने का मौका भी तो है।

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