राजकोट में किसकी पतंग कटेगी और किसकी उड़ान भरेगी
हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पतंगबाजी के लिए मशहूर राजकोट में किसकी पतंग कटेगी और किसकी उड़ान भरेगी ये तो चार जून को पता चलेगा। यहां वर्ष 1989 से एक बार छोडकऱ राजकोट में भाजपा ही काबिज रही है। एक बार वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर बावलिया ने भाजपा के इस किले को भेदा था। यह बात और है कि बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए। कुंवर गुजरात सरकार में मंत्री हैं। राजकोट के चुनावी समर में इस बार दिलचस्प संयोग बना है। भाजपा प्रत्याशी केन्द्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला और कांग्रेस के प्रत्याशी परेश धानाणी 22 साल बाद फिर आमने-सामने हैं। यह बात और है कि तब दोनों उम्मीदवार अमरेली विधानसभा क्षेत्र से आमने-सामने थे। रूपाला धणानी से पराजित हो गए थे। चर्चा यह भी है कि क्या रूपाला अब पिछली हार का बदला ले पाएंगे। एक संयोग यह भी है कि दोनों ही उम्मीदवार राजकोट से बाहर एक ही जिले अमरेली के रहने वाले हैं। रूपाला जब अमरेली से पराजित हुए थे तब गुजरात सरकार में मंत्री थे और संयोग यह भी कि अब वे केन्द्र सरकार में मंत्री हैं।राजपूतों में नाराजगी और आंदोलन के चलते नए रूप में मुकाबला
लोकसभा चुनावों के ऐलान से पहले तक गुजरात की 26 सीटों में अधिकांश पर मुकाबला एकतरफा ही माना जा रहा था। लेकिन पुरुषोत्तम रूपाला के एक बयान को लेकर राजपूतों में नाराजगी और आंदोलन के चलते यहां मुकाबला नए रूप में आ गया है। यह बात और है कि राजपूतों में बड़े वर्ग को भाजपा को वोट बैंक माना जाता रहा है। दोनों ही राजनीतिक दलों ने राजकोट में पाटीदार समुदाय पर दांव खेला है। रूपाला कडवा पटेल हैं, जबकि धानाणी लेउवा पटेल हैं। राजकोट में परेश धनानी को उतारने के पीछे कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है। यहां से वह सौराष्ट्र की अन्य छह सीटों को राजकोट के समीकरणों से जोडऩा चाहती है। पाटीदार मतदाता इस इलाके में बड़ी संख्या में हैं। राजकोट में कुल मतदाताओं में पाटीदार मतदाताओं की हिस्सेदारी 28 फीसदी है।भाजपा के गढ़ में सेंध लगाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं
राजकोट शहर में चुनावी माहौल की नब्ज टटोलने निकला तो अधिकांश लोगों की यही राय निकल कर सामने आई कि भाजपा के गढ़ में सेंध लगाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। राजपूत समाज के विरोध के बीच रूपाला यहां अपनी स्थिति मजबूत किए हुए हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो नरेन्द्र मोदी का नाम ही गुजरात में भाजपा के पक्ष में हवा बनाने को काफी रहता है। फिर लोग यहां पिछले सालों में कराए गए विकास कार्यों से भी खुश नजर आते हैं। ऑटो चालक जुबेर की मानें तो यहां मोदी व भाजपा के अलावा कुछ सुनाई ही नहीं देता। उनका कहना है कि यहां मोदी का चेहरा ही किसी की जीत के सेहरा बांधने के लिए काफी है। देवजी भाई और मेघजी राठौड़ का कहना था कि रूपाला की टिप्पणी से राजपूत समाज आक्रोशित है। ऐसे में नतीजों में कोई चमत्कार हो जाए तो अचरज नहीं होना चाहिए। वहीं लोग यह भी कहते हैं कि रूपाला के दो बार माफी मांगने पर यह मसला अब इतना गरम नहीं रहा। हां, कुछ हार-जीत के अंतर का फर्क पड़ सकता है। जिग्नेश त्रिवेदी का कहना था कि इस विवाद का रूपाला पर कोई बड़ा असर पडऩे वाला नहीं है।प्रचार का शोर सुनाई नहीं दिया
गर्मी के तेवर तीखे जरूर हैं पर राजकोट शहर में चुनावी माहौल ठंडा है। न झंडे न पोस्टर और न ही लाउड स्पीकरों का शोर सुनाई देता। यहां तक कि दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस व भाजपा के कार्यालयों व उनके आसपास भी चुनावी रंगत नजर नहीं आती। भाजपा, कांग्रेस व बसपा समेत कुल 9 प्रत्याशी मैदान में हैं पर मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही है। कांग्रेस प्रत्याशी के भाई शरद तो अपनी पार्टी के उम्मीदवार को गरीबी की रेखा से नीचे वाला प्रत्याशी बताते हैं। शरद का तो यह भी दावा था कि डर के कारण लोग यहां खुलकर कांग्रेस का समर्थन नहीं करते, लेकिन अंंदरूनी तौर पर लोग कांग्रेस के साथ हैं। अमरेली यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष संदीप धनाणी से पूछा तो उन्होंने दावा किया कि राजकोट में बाईस साल पुराना इतिहास फिर दोहराया जाएगा और इस बार कांग्रेस प्रत्याशी का माहौल लग रहा है।राजकोट में विकास नजर आता है
भाजपा के प्रवक्ता राजू भाई ध्रुव खम ठोक कर कहते है कि मोदी का चेहरा और राज्य सरकार के विकास कार्यों से भाजपा को फायदा मिलेगा। होटल कारोबारी चैतन्य सिंह राठौड़ का कहना था कि राजपूत समाज परम्परागत भाजपा का वोटर है। भाजपा की एकतरफा जीत है। राजकोट में विकास नजर आता है। इसलिए लोगों को भाजपा ही दिखाई देती है। पर्दों के कारोबारी रामजी भाई फफेर हों या फिर वित्तीय सलाहकार शुभम बरोडिय़ा एक ही बात कहते हैं, नतीजे तो साफ नजर आ रहे हैं। नजर सिर्फ इसी बात पर टिकी है कि राजनीतिक दलों का वोटों के हिसाब से प्रदर्शन कैसा रहता है? राजकोट में हीरे की घिसाई होती है। अब देखना ये है कि किस दल का हीरा चमकता है।भाजपा की ताकत
- ब्रांड मोदी का सहारा
- भाजपा का मजबूत संगठन
- विकास के कामकाज
- रूपाला का सियासी कद
कमजोरी
-बाहरी प्रत्याशी-राजपूतों में नाराजगी
-कांग्रेस प्रत्याशी से एक बार की हार
कांग्रेस की ताकत
-युवा चेहरा-रूपाला को शिकस्त दे चुके हैं
-समाज सेवक की पहचान
-हर समय जनता के बीच रहना
कमजोरी
-कार्यकर्ताओं में जोश की कमी-गुटों में बंटी कांग्रेस
-बाहरी प्रत्याशी