बीजापुर और सुकमा की सरहद पर मौजूद इस गांव को बस्तर का सबसे खतरनाक गांव माना जाता रहा है। इस गांव में बैठकर ही हिड़मा पूरे बस्तर में खूनी खेल खेलता रहा है। कई बड़ी घटनाओं की योजनाएं इसी गांव में बनाई गईं। जब भी कभी फोर्स इस गांव के आसपास पहुंची उसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। अब सुरक्षा बलों के जवान ग्रामीणों का विश्वास जीतने में जुटे हैं।
3000 जवानों से फतह हुआ पूवर्ती
पूवर्ती में कैंप लगाना पुलिस के लिए इतना चुनौतीपूर्ण रहा कि यहां पहुंचने के लिए करीब तीन हजार जवानों की टीम रवाना हुई और यहां पहुंचने के बाद करीब दो दिन तक पुलिस की नक्सलियों से मुठभेड़ होती रही। जवानों पर करीब एक हजार से अधिक बीजीएल हमले हुए, लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति की वजह से पूवर्ती पर पुलिस ने कब्जा किया।
‘रातों-रात नहीं मिली सफलता’
बस्तर आइजी पी. सुंदरराज बताते हैं कि पूवर्ती में पुलिस की पहुंच कोई रातों रात नहीं हुई है। इसके पीछे लंबी प्लानिंग और लंबी लड़ाई है। नक्सलगढ़ में बीतों सालों से लगातार कैंपों को खोलने पर ध्यान दिया जा रहा था। कैंप वाले इलाकों से जागरूकता के बाद लोग लोकतंत्र से सीधे जुड़ने लगे और नक्सलियों का इलाका सिमटता गया।
पूर्व नक्सली ने कहा, हिड़मा अभी जिंदा है
हिड़मा को नक्सल संगठन में भर्ती करने वाले पूर्व नक्सली बदरना बताते हैं कि फिलहाल वे हिड़मा से नहीं मिले हैं, लेकिन जहां तक जानकारी है वह जिंदा है। काफी साल पहले उन्होंने उसे देखा था। वह तब भी वैसा ही था जैसा भर्ती किया था। उस वक्त 30-31 साल का रहा होगा। अब तो वह 40-41 साल का होगा। हालांकि उसके जिंदा रहने को लेकर काफी भ्रम है।
बाल संघम से सीसी मेंबर तक बना
नक्सलियों के बाल संगम संगठन में सोलह साल की उम्र में हिड़मा की भर्ती हुई थी। आज वह नक्सलियों की सबसे ताकतवर सेंट्रल कमेटी (सीसी) का मेंबर बन चुका है। इस कमेटी में सदस्य बनने वाला वह बस्तर का इकलौता नक्सली है। सीसी मेंबर में आंध्र और झारखंड-बिहार के नक्सलियों का ही वर्चस्व रहा है। 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की हत्या के बाद झीरम घाटी के हमले की साजिश भी हिडमा ने ही रची की। 2017 में सुकमा के बुर्कापाल में सेंट्रल रिजर्व फोर्स पर हुए हमले का मास्टरमाइंड भी वही था।