डाकुओं के गैंग में शामिल होने के कुछ समय बाद ठाकुरों ने 18 साल की उम्र में फूलन देवी को किडनैप कर बेहमई गांव में 3 हफ्तों तक गैंगरेप किया। इसके बाद वह किसी तरह ठाकुरों के चंगुल से बचकर भाग निकली और फिर 1981 में ज्यादती का बदला लेते हुए 22 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोलियों से भून दिया। इस घटना के बाद फूलन देवी दलितों की मसीहा बनी और उनका उनका ‘बैंडिट क्वीन’ नाम पड़ा। 2 साल बाद 1983 में फूलन देवी ने पुलिस के सामने सरेंडर किया, जिसके बाद 22 हत्या, 30 डकैती और 18 किडनैपिंग के मामलों में 11 साल की जेल की सजा काटने के बाद मुलायम सिंह की सरकार ने उन पर साले मुकादमे हटा कर बरी कर दिया।
जेल से बाहर आने के बाद फूलन देवी ने उम्मेद सिंह से शादी रचाई और समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर मिर्जापुर की सीट जीती। फूलन देवी को दो बार जीतना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं उन्होंने लोगों के मन में अपनी जगह बना ली थी।
शेर सिंह राणा ने 25 जुलाई 2001 में फूलनदेवी की हत्या की
कहते हैं कि अतीत कभी भी पीछा नहीं छोड़ता, वह किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाता है। 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा नाम के व्यक्ति ने फूलन देवी को गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या के बाद शेर सिंह राणा ने अपने अपराध को स्वीकार करते हुए बताया कि उसने 22 ठाकुरों की हत्या का बदला लिया है, जिसके लिए उसे उम्रकैद की सजा हुई थी। इसके बाद आज के ही दिन 17 फरवरी 2004 को फूलनदेवी हत्याकांड का मुख्य आरोपी शेर सिंह राणा तिहाड़ जेल से फरार हो गया।