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केंद्र पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर फैक्ट चेकिंग यूनिट पर रोक

Supreme Court : अलग-अलग मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आई केंद्र सरकार पर सख्ती दिखाई है। अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर फैक्ट चेकिंग यूनिट पर रोक लगा दी है।

नई दिल्लीMar 22, 2024 / 12:50 pm

Shaitan Prajapat

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freedom of expression : सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) की अधिसूचना पर रोक लगा दी। सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के 11 मार्च के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें सोशल मीडिया पर फर्जी और गलत सामग्री की पहचान करने के लिए संशोधित आईटी नियमों के तहत एफसीयू के गठन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया गया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैक्ट चेकिंग यूनिट के गठन को लेकर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड की याचिका पर अंतिम फैसला नहीं दिया है। यह मामला अब भी हाईकोर्ट में लंबित है, क्योंकि दो जजों की बेंच की सुनवाई में फैसला सर्वसम्मति से नहीं आया था। अब इस मामले की सुनवाई तीसरे जज कर रहे हैं। एफसीयू के गठन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसी बीच केंद्र सरकार ने 20 मार्च को पीआईबी की फैक्ट चेकिंग यूनिट के लिए अधिसूचना जारी कर दी। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआइ चंद्रचूड़ ने कहा कि फैक्ट चेकिंग यूनिट पर केंद्र सरकार का नोटिफिकेशन हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले के बीच आया है। ऐसे में इस पर अभी रोक लगनी चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 2023 के संशोधन की वैधता की चुनौती को लेकर कई गंभीर संवैधानिक सवाल हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है। इस पर हाईकोर्ट में नियम 3 (1) (बी) (5) के असर का विश्लेषण जरूरी है। जब तक हाईकोर्ट में इस पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकार की अधिसूचना पर रोक रहेगी। सरकार का कहना है कि फैक्ट चेकिंग यूनिट का मकसद भ्रामक जानकारियों पर लगाम लगाना है, लेकिन कई पत्रकारों और विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा है।

तमिलनाडु : मि. एजी, आपके गवर्नर कर क्या रहे हैं, 24 घंटे में फैसला करें
सुप्रीम कोर्ट ने डीएमके नेता के. पोनमुडी की दोष सिद्धि पर रोक के बावजूद उन्हें दोबारा मंत्री बनाए जाने से इनकार करने को लेकर तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि पर सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने उन्हें 24 घंटे के भीतर फैसला करने का निर्देश दिया। सीजेआइ डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने दो टूक कहा, अगर इस बारे में शुक्रवार तक हमें सूचित नहीं किया गया तो हम राज्यपाल को संविधान के अनुरूप आचरण रखने का आदेश देंगे।

सीजेआइ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को संबोधित करते हुए कहा, मिस्टर एजी, आपके राज्यपाल कर क्या रहे हैं? हम वाकई राज्यपाल के बर्ताव से चिंतित हैं। हम यह बात कोर्ट में ऊंची आवाज में नहीं कहना चाहते, लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रहे हैं। राज्यपाल को यह जानकारी दीजिए कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने किसी सजा पर रोक लगा दी है तो सजा रुक गई है। वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं। पीठ ने हैरानी जताई कि पोनमुडी को दोबारा कैबिनेट में शामिल करने को राज्यपाल संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ कैसे बता सकते हैं। गौरतलब है कि पोनमुडी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में मिली तीन साल की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। राज्यपाल ने पोनमुडी को मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की सिफारिश के बावजूद कैबिनेट में दोबारा शामिल करने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

एक मामले में राहत के साथ सवाल भी
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के कानून पर रोक लगाने का आदेश देने से गुरुवार को इनकार कर दिया। नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर (चुनाव से पहले) ऐसा करना ‘अराजकता पैदा करना’ होगा। हालांकि कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए और पूछा कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों की गई? कोर्ट ने कहा, यह नहीं माना जा सकता कि केंद्र द्वारा बनाया गया कानून गलत है। फिर भी हम इसकी वैधानिकता को परखेंगे।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, नियुक्ति प्रक्रिया अपनाने में थोड़ा और वक्त दिया जाना चाहिए था, ताकि यह और अच्छे तरीके से पूरी की जाती। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के कानून पर रोक की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं से पीठ ने कहा, आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के अधीन है। जिन लोगों को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है, उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं। चुनाव नजदीक हैं, सभी पक्षों में संतुलन जरूरी है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि अदालत यह नहीं कह सकती कि किस तरह का कानून पास किया जाए। जजों की नियुक्ति और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतर है।

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