लाल सिंह की मार्च में कांग्रेस में वापसी हुई है। उन्हें नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का समर्थन भी हासिल है। वे दो बार इस लोकसभा क्षेत्र की नुमांइदगी कर चुके हैं। डॉ जितेन्द्र सिंह दस साल से केन्द्र में मंत्री हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय देख रहे हैं। डीपीएपी का गठन कांग्रेस के पूर्व दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने दो साल पहले कांग्रेस से जुदा होने के बाद किया। उनके उम्मीदवार सरूरी के सामने पार्टी की प्रासंगिकता बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। धारा 370 हटने के बाद पहली बार हो रहे आम चुनाव में भाजपा जहां पिछले दस वर्षों में कराए गए विभिन्न कार्याें को लेकर मतदाताओं के बीच जा रही है वहीं कांग्रेस अपने उम्मीदवार की लोकप्रियता के दम पर पासा पलटने का प्रयास कर रही है। कठुआ, लाल सिंह का गढ़ माना जाता है। इसका आभास कठुआ में कदम रखते ही होने लगता है। बाजार, गली, मोहल्लों की दीवारों पर चिपके उनके पोस्टर इसकी गवाही भी दे रहे हैं।
पोस्टर चस्पा करने में डॉ जितेन्द्र सिंह की टीम भी बराबर की टक्कर दे रही है पर यहां के लोगों के दिलों में लाल सिंह बसे हुए लगते हैं। कठुआ डिग्री कॉलेज के सुरक्षा कर्मी पवन कुमार कहते भी हैं कि जितेन्द्र सिंह को कभी देखा नहीं। वे मोदी के नाम पर चुनाव मैदान में हैं, पर लाल सिंह ने उन्हें टक्कर दे रखी है। उनकी बात का समर्थन श्यामा प्रसाद मुखर्जी चौक पर चाय की दुकान चलाने वाले कुलदीप शर्मा भी करते दिखे। वे बताते हैं करोना में कठुआ से पठानकोट के लिए बसें बंद हुई थीं, जो आज तक शुरू नहीं हो सकी है। जितेन्द्र सिंह को तो देखा ही नहीं। लाल सिंह सबकी सुनते तो हैं। शहर से गांव की ओर बढ़ते हुए चानगरा में 83 वर्ष के किशनदत्त से मुलाकात हुई तो उनके मुंह से यही निकला कि वोट मोदी के नाम से मिलेगा। टक्कर बराबर की है। पूर्व सैनिकों के गांव खरोट में भी लाल सिंह की चर्चा सुनाई दी। मोहन सिंह, राजेश सिंह, रमेश, अजित सिंह ने ये तो माना कि धारा 370 हटने के बाद आतंकवाद पर काबू पाया गया है, लेकिन अग्निवीर योजना से बेहद खफा नजर आए। उनका कहना था कि या तो इसे बंद कर दिया जाए या फिर योजना की अवधि बढ़ाई जाए। सबका कहना था कि पब्लिक बदलाव चाहती है।
बदलाव की आहट कठुआ से उधमपुर पहुंचने पर भी सुनाई देने लगती है। यहां पोस्टरबाजी नहीं है। मतदाता मौन है। कुरेदने पर भी बोल नहीं रहा। विजय नगर में रेस्तरां में पिज्जा खा रहे खुशहाल से चुनाव की बात छेड़ी तो फट पड़े। डॉ साहब का एटिट्यूड भारी पड़ रहा है। पहली बार गांव-गांव में जाकर सरपंचों को मनाने में लगे हैं। आदमी अच्छे हैं। पॉलिटिक्स नहीं आती। पीएमओ में बैठें हैं। आम आदमी के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए सीट फंसी हुई है। धार रोड पर फलों की दुकान पर रमेश से चुनावी मुद्दों पर बात छेड़ी तो जवाब मिला, मुद्दा कोई नहीं है। मोदी ही जितेन्द्र की नैया पार लगा सकते हैं। जितेन्द्र मजबूत होते तो मोदी यहां रैली करने नहीं आते।
15 प्रोजेक्ट शुरू हुए, पर मैनपावर बाहर से आई
उधमपुर से डोडा जाने के लिए जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पकड़ा तो मौसम सुहाना होता गया। चिनैनी सुरंग पर कर दाईं ओर मुड़े तो चिनाब घाटी की शुरुआत हो गई। एक तरफ चिनाब नदी बह रही है। बीच-बीच में सूखी हुई है। दूसरी ओर पहाडि़यों पर चिनार के पेड़ दृश्य को मनोरम बना रहे हैं। रामबन जिले के बटोत बस स्टैण्ड पर खीरे बेच रहे तनवीर शेख से मुलाकात हुई। वे स्नातक पढ़े हैं। अंग्रेजी में बात करते हैं। बताते हैं, नौकरी नहीं मिली। पेट पालना है। इसलिए खीरे बेचने पर मजबूर हैं। पास ही बैठे कार चालक रवि बताते हैं… यहां दस साल में दस से पन्द्रह बड़े प्रोजेक्ट शुरू हुए। चपरासी से लेकर अफसर तक सभी आदमी हरियाणा, दिल्ली, यूपी से लाए गए। अग्निवीर योजना के लिए बोले, ये होनी ही नहीं चाहिए। चार साल में कमांडो तैयार होता है। इस योजना की उम्र ही चार साल है।
अमन बहाली से तो खुश हैं, बेरोजगारी से परेशान
बगड़ के मशहूर राजमा-चावल खाने रुके तो किश्तवाड़ के कामरान और मोहम्मद शब्बीर से गुफ्तगु हुई। वे कश्मीर में अमन बहाली से तो खुश हैं पर बेरोजगारी से परेशान हैं। डोडा में शाम को बरसात होने से ठंडक बढ़ गई। यहां मिले अरुण पहली बार वोट दे रहे हैं। तय नहीं कर पा रहे कि किस को वोट दें। मुख्य बाजार में होटल संचालक शुजात खान ने वापस कठुआ की याद दिला दी। वहां बदलाव की बात उठी थी। शुजात भी बोले… लगता है आवाम बदलाव चाहता है। वर्ष 2014 में सोचा था नया बंदा आएगा। पढ़ा लिखा इंसान आएगा। लोकल है। हमको समझेगा। दस साल हो गए। अभी तक देखा नहीं है। लाल सिंह हर समय उपलब्ध हैं। हमको पार्टी से मतलब नहीं है। हमें वो चाहिए जो बेरोजगारों को नौकरी दे सके। लब्बो लवाब यही है कि युवा मतदाताओं की इस चुनाव में अहम भूमिका रहने वाली है। डॉ जितेन्द्र सिंह
मजबूत पक्ष - दस वर्ष से केन्द्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय देख रहे हैं।
- केन्द्र सरकार के दस वर्ष के कार्यकाल में कराए कार्यों का आसरा
- स्टार प्रचारक के तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य योगीनाथ को लाने में सफल
कमजोर पक्ष - आम आदमी के लिए उपलब्ध नहीं होने की चर्चा
- ग्रामीण मतदाताओं पर पकड़ कमजोर
- क्षेत्र में बेरोजगारी बड़ा मुददा
चौधरी लाल सिंह
मजबूत पक्ष - आम आदमी के लिए सहज उपलब्ध
- ग्रामीण इलाकों में मजबूत पकड़
- पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस का साथ
कमजोर पक्ष - दस साल कांग्रेस से दूर रहे।
- चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक का नहीं आना
- बार-बार दल बदलने से भितरघात का खतरा