हिंसा का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा
वहीं निकास द्वार की दाहिनी तरफ आपको बांस और लकड़ी पर की गई कारीगरी यहां के लोगों के हुनर से वाकिफ कराती है। खुदमुख्तारी और कलाकारी की इस घेरे से निकलकर जैसे ही आप बढ़ते है। सड़क का सन्नाटा यहां के स्याह पहलू को उजागर कर देता है। हिंसा का तांडव थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर पहुंचते-पहुंचते यह खबर आ गई कि एक बार फिर से विष्णुपुर, चुराचांदपुर, कोंगपोकोपाई, कुटरक और पश्चिमी इंफाल में हिंसा शुरू हो गई है। दो लोग मारे जा चुके हैं और इन इलाकों में कुकी और मैतेई के बीच जमकर फायरिंग हो रही है। इसके साथ ही आंखों में तैर रही मणिपुर की खुशनुमा तस्वीर जल सी जाती है। बाकी इनर लाइन परमिट आपको भारत के किसी अलग राज्य में होने की तस्दीक करती है। ऐसे माहौल में मणिपुर में लोकसभा चुनाव का माहौल कैसा होगा, आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं। यहां न तो चुनावी नारे बज रहे हैं और न ही पोस्टर वार है।
मैतेई समुदाय का राजनीति में वर्चस्व
चुनावी हांडी में राजनीति बहुत ही धीमे धीमे पक रही है। करीब 16 लाख की आबादी वाले मैतेई समुदाय का राजनीति में वर्चस्व है। शहर में सन्नाटे के बीच मैं भाजपा कार्यालय पहुंचा। यहां एक सवाल के जवाब में भाजपा अध्यक्ष ए शारदा मुखिया कहती हैं कि चुनाव से पहले हमने लोगों को खोया है। ऐसे में हम लोकतंत्र का उत्सव उस तरह से नहीं मना रहे हैं, जिस तरह से हम मनाते आए हैं। नई दिल्ली के बाद देश में सबसे बेहतरीन प्रदेश कार्यालय तैयार कराने वाली भाजपा के इस कार्यालय में काफी चहलपहल है। रात को भी ऐसा ही नजारा है। बूथ, शक्ति केंद्र और क्षेत्र में मतदान के लिए रणनीति तैयार हो रही है। इसके बाद देर शाम मैं कांग्रेस कार्यालय पहुंचा। यहां माहौल ठंडा है। रात के साढ़े नौ बजे हैं और सभी पदाधिकारी अपने अपने घर जा चुके हैं। कार्यालय में राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बड़े बड़े बैनर छत से नीचे तक लटके हुए हैं। एक कोने पर मणिपुर इनर और मणिपुर आउटर का होर्डिंग भी लगा है।
गठबंधन का चक्रव्यूह तोड़ने के लिए बीजेपी का प्लान
कार्यालय के कर्मचारियों से जब प्रवक्ता से बात करने के लिए मोबाइल नंबर मांगा तो जवाब आया कि नंबर देना मना है। पार्टी के लोग जब आमजन को मोबाइल नंबर देने से कतरा रहे हैं, तो वे आम जनता से कैसे जुड़ेंगे। मणिपुर इनर की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 18 हजार वोटों से हार गई थी और यहां करीब सवा लाख वोट सीपीआई ले गई थी। ऐसे में अगर यहां इंडिया गठबंधन काम करता है तो कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है। यहां से कांग्रेस की तरफ से अंगमुच बिमल आकोईजम चुनाव मैदान में हैं। भाजपा ने भी इस गठबंधन का चक्रव्यूह तोड़ने के लिए प्रत्याशी बदलकर पूर्व आइपीएस बसंता कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है।
भाजपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई
भाजपा के साथ यहां एनपीपी और एनपीएफ दोनों की स्थानीय पार्टियां साथ आ चुकी हैं। वहीं जेडीयू और शिवसेना की स्थानीय इकाइयां भी भाजपा में शामिल हो गई हैं। ऐसे में चल रही हिंसा के बीच मैतेई का मत मिला तो भाजपा यहां आगे निकल सकती है। यहां 19 अप्रेल को मतदान होगा। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई है। मणिपुर आउटर में हिंसा का आलम यह है कि यहां दो चरणों में मतदान होने जा रहा है। यहां भाजपा समर्थित एनपीएफ का पलड़ा भारी है। एनपीएफ ने पिछले चुनाव में भी यहां जीत दर्ज की थी। एनपीएफ ने इस बार कचाई तिमथोई जीमक को चुनाव में उतारा है। कांग्रेस ने अल्फ्रेड आर्थर कंगम को चुनाव मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में भाजपा यहां नंबर दो पर थी और एनपीएफ ने यहां जीत दर्ज की थी। इस बार दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ रही हैं। इन दोनों सीटों पर यह बात साफ हो गई है कि कांग्रेस गठबंधन और भाजपा गठबंधन की आमने सामने लड़ाई है।