कभी शिवसैनिक थे नारायण राणे बता दें कि नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के रिश्ते हमेशा से ऐसे नहीं थे। एक समय था जब नारायण राणे की गिनती शिवसेना के दिग्गज नेताओं में होती है। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत चेंबुर में कॉरपोरेटर बनने से की थी और बाद में मुंबई की सार्वजनिक बस परिवहन ’बेस्ट’ कमेटी के चेयरमैन भी बनें। इसके बाद वह शिवसैनिक बने और राज्य सरकार में मंत्री और फिर बाल ठाकरे साहेब के मदद से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
गठबंधन की सरकार और शिवसेना में गुटबाजी नारायण के लिए एक कॉरपोरेटर से मुख्यमंत्री तक का सफर आसान नहीं था। शिवसेना में रहते हुए उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। खास बात यह है कि उस वक्त उनके सबसे मुखर विरोधी कोई और नहीं बल्कि बाल ठाकरे के बेटे और महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे थे। 1995 में जब शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी तो शिवसेना में दो विरोधी गुट थे। इनमें एक गुट में उद्धव ठाकरे, मनोहर जोशी और सुभाष देसाई थे वहीं दूसरी तरफ राज ठाकरे, नारायण राणे और स्मिता ठाकरे थीं।
1999 में बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी की जगह नारायण राणे को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया, लेकिन उद्धव ठाकरे मनोहर जोशी को हटाए जाने से खुश नहीं थे। हालांकि राणे महज नौ महीने तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। चुनाव में इस गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा।
राणे ने उद्धव को बताया चुनावी हार का जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ’नो होल्ड्स बार्ड – माय ईयर्स इन पॉलिटिक्स’ में इस हार के लिए उद्धव ठाकरे को जिम्मेदार ठहराया है। यहीं से उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच दीवार खींच गई। इसके बाद 2002 में कुछ निर्दलीय विधायकों और छोटी पार्टियों ने विलासराव देशमुख की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की थी। उसके बाद शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के सामने सरकार बनाने का मौका था।
राणे ने इस मामले पर भी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि कुछ निर्दलीय विधायकों और एनसीपी विधायकों को गोरेगांव के मातोश्री क्लब में रखा गया था, लेकिन इसी बीच केंद्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस बाल ठाकरे से मिले और सबकुछ बदल गया। अगले दिन बाला साहेब ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और उसमें कहा, हम लोग सत्ता के भूखे नहीं हैं। इसलिए हम सरकार गिराने के किसी अभियान का समर्थन नहीं करेंगे। राणे ने दावा किया है कि उनके इस फैसले में उद्धव ठाकरे, गोपीनाथ मुंडे और जॉर्ज फर्नांडिस का अहम किरदार था।
नारायण राणे के घर पर हमला 2002 में एनसीपी कार्यकर्ता सत्यविजय भिसे की हत्या हो गई। तब नारायण राणे विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। इस हत्या के बाद कुछ लोगों ने कंकावली स्थित नारायण राणे के घर को आग लगाने की कोशिश की थी, लेकिन उस वक्त शिवसेना का कोई नेता नारायण राणे के साथ खड़ा नहीं दिखा था। उस घटना के बाद राणे ने पार्टी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी।
जनवरी 2003 में शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक महाबलेश्वर में हुई थी। उसी बैठक में राज ठाकरे ने पार्टी कार्यकारिणी के चेयरमैन के तौर पर उद्धव ठाकरे के नाम की घोषणा की थी। नारायण राणे ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। बाला साहेब ठाकरे ने तब कहा था कि उन्हें इन सबके के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन राणे का कहना है कि वे जानते थे।
जब राणे को नहीं मिला टिकट राणे का कहना है कि वे उद्धव ठाकरे का नाम प्रस्तावित किए जाने से पहले बाला साहेब से मिले थे, तब बाला साहेब ने उनसे कहा था- नारायण, फैसला हो चुका है। इस बात से उन्हें काफी धक्का लगा, बावजूद इसके वो पार्टी में बने रहे। यही नहीं 2006 के विधानसभा चुनाव के दौरान वो पूरे जोश के साथ चुनावी मैदान में उतरे और पार्टी उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार किया है।
नारायण राणे का वो एक बयान गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए अधिकांश उम्मीदवार उद्धव ठाकरे की पसंद से चुने गए थे, लेकिन राणे सबके लिए मेहनत कर रहे थे। वो उन उम्मीदवारों को ये भी संकेत दे रहे थे कि अगर मौका आए तो विधान दल के नेता के तौर पर मुझे ही चुनना। ये बात पार्टी के सर्वोच्च लीडरशिप तक भी पहुंच गई थी। इसी बीच शिवसेना कार्यकर्ताओं की एक रैली रंगशारदा ऑडिटोरियम में आयोजित हुई। उस रैली में बोलते हुए राणे ने कहा था कि शिवसेना में पैसा लेकर पार्टी पद दिया जा रहा है। उस रैली में बाल ठाकरे भी मौजूद थे, उन्होंने नारायण राणे की बात से तब नाराजगी जाहिर की थी।
2005 में छोड़ दी शिवसेना नारायण ने अपनी शिवसेना छोड़ने की वजह उद्धव ठाकरे को बताया है। उन्होंने बताया कि 2004 में मैं विपक्ष के नेता थे और विदेश दौर पर था। जब वापस लौटा तो पार्टी के अंदर उनके प्रति विरोध काफी ज्यादा बढ़ गया था। जिससे मैं पार्टी में असहज हो रहा था और यही वजह है कि 2005 में मैं शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में चले गए। इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी स्वाभिमान पार्टी बनाई और इसके बाद बीजेपी में आ गए।
राणे और उद्धव के बीच कितनी कड़वाहट गौरतलब है कि राणे को शिवसेना छोड़े करीब 14 साल हो गए हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे और उनकी बीच की कड़वाहट अभी तक कम नहीं हुई है। दोनों के बीच कितनी कड़वाहट है इसका पता तब चला जब राणे ने उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने का बयान दिया। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने संबोधन में ठाकरे यह भूल गए कि देश की आजादी को कितने साल हुए हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस वाकये का जिक्र करते हुए राणे ने कहा कि ‘यह शर्मनाक है कि मुख्यमंत्री को यह नहीं पता कि आजादी को कितने साल हुए हैं। भाषण के दौरान वह पीछे मुड़ कर इस बारे में पूछताछ करते नजर आए थे। अगर मैं वहां होता तो उन्हें एक जोरदार थप्पड़ मारता।’