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Achievement: बिटिया के स्कूल के सामने ही पिता बेचते थे चाय, बन गई अफसर

एमपी-पीएससी 2021 परीक्षा में परासिया की बेटी ने पाई सफलता

छिंदवाड़ाJun 08, 2024 / 12:51 pm

ashish mishra

छिंदवाड़ा. ‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ दुष्यंत कुमार की लिखी यह कविता परासिया के भंडारिया गांव निवासी निशा डेहरिया पर बिल्कुल सटीक बैठती है। जो महज 26 वर्ष की उम्र में एमपी पीएससी 2021 की परीक्षा में सफल होकर डीएसपी के पद पर चयनित हुई हैं। निशा की यह सफलता विपरित परिस्थितियों में मिली है। इसलिए अहम है। निशा के पिता संदीप डेहरिया चांदामेटा में चाय की दुकान चलाते हैं और मां मीना डेहरिया गृहिणी हैं। निशा जिस स्कूल में पढ़ा करती थी, उसी के ठीक सामने पिता की चाय की दुकान लगाते थे। आज भी दुकान वहीं है। पिता की कर्मठता देख निशा के आंसू निकल जाते थे। निशा ने अफसर बनकर पिता के मेहनत को साकार कर दिया। तीन भाई बहन में सबसे बड़ी निशा वर्तमान में छिंदवाड़ा में ही सांख्यिकी विभाग में अन्वेषक के पद पर पदस्थ हैं। वह वर्ष 2017 में पटवारी के पद पर भी चयनित हो गई थी। उनका चयन व्यापम के माध्यम से 10 शासकीय नौकरी के लिए भी हुआ। इसमें एसआई, एएसआई, पटवारी, वन विभाग, पोस्ट ऑफिस सहित अन्य पद शामिल था। हालांकि उन्होंने अन्वेषक की नौकरी ज्वाइन कर ली थी। इसलिए उन्होंने इसी में ही रहकर एमपीपीएससी की तैयारी जारी रखी। निशा का सपना कलेक्टर बनना है, लेकिन पारिवारिक स्थिति ठीक न होने की वजह से उन्होंने पहले एमपी पीएससी की तैयारी करने की सोची और सफल होने के बाद यूपीएससी की तैयारी करने का मन बनाया था। उन्होंने वर्ष 2019 में पहली बार एमपी पीएससी की परीक्षा दी, लेकिन मेन्स नहीं निकल पाया। इसके बाद वर्ष 2020 की परीक्षा में इंटरव्यू दे चुकी हैं, लेकिन रिजल्ट रूका हुआ है। वर्ष 2021 के रिजल्ट में वह डीएसपी के पद पर चयनित हो चुकी हैं। वर्ष 2022 एवं 2023 में मेन्स की परीक्षा भी दे चुकी हैं, लेकिन दोनों वर्ष का रिजल्ट जारी नहीं हुआ है। बड़ी बात यह है कि निशा ने सफलता के लिए कोचिंग नहीं की। वर्ष 2015 में वह जब छिंदवाड़ा गल्र्स कॉलेज में पढऩे आई थी तो उसी दौरान शिक्षक सुनील सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में रही, इसके बाद सेल्फ स्टडी ने ही उन्हें आगे बढ़ाया।
शासकीय स्कूल में पढ़ाई, शुरु से रही टॉपर
निशा ने पत्रिका से चर्चा में बताया कि वह शुरु से ही मेधावी छात्रा थी। 10वीं एवं 12वीं तक की पढ़ाई परासिया में ही शासकीय स्कूल में किया। एमपी बोर्ड से 10वीं में ब्लॉक टॉपर एवं 12वीं गणित संकाय में जिले में दूसरे स्थान पर रही। हालांकि कई बार निशा की जिंदगी में ऐसे भी पल आए जब उनके पास किताबों के लिए पैसे नहीं थे। कोचिंग के लिए फीस नहीं थी। उन्होंने लोगों से यही कहा कि मेरी फीस माफ कर दो, मैं अच्छे अंक लाऊंगी।
दूर-दूर तक कोई नहीं है सरकारी नौकरी में
निशा ने बताया कि उनके कई पीढ़ी से कोई शासकीय नौकरी में नहीं है। पिता भी पढ़े लिख नहीं है। मां 8वीं तक पढ़ी है। मैंने पिता को काफी मेहनत करते हुए देखा है। पिता प्रतिदिन सुबह 7 बजे चाय की दुकान पहुंच जाते हैं और रात 10 बजे आते हैं। आज भी उन्होंने दुकान नहीं छोड़ी है। हमेशा कहते हैं कि पहले अपना सपना पूरा कर लो, कलेक्टर बन जाओ। मैं हमेशा यही सोचती थी कि कैसे पापा की मदद करूं। उनके चेहरे पर खुशी बिखेर दूं। इस सोच ने ही मुझे प्रेरणा दी और मैं सफल होती गई।
आंखों में आ गए आंसू
गुरुवार को बिटिया का रिजल्ट जानने के बाद पिता संदीप पहले कुछ समझ नहीं पाए, लेकिन जब लोगों ने उन्हें समझाया कि तुम्हारी बिटिया अफसर बन गई है तो उनके आंखों में आंसू आ गए। निशा कहती हैं पिता कहते हैं कि जिस चाय की दुकान ने तुम्हे इतना बड़ा बनाया, उसे मैं कैसे छोड़ सकता हूं।
ईमानदारी से की पढ़ाई, भाई से मिली प्रेरणा
निशा कहती हैं कि जब वह 12वीं में थी तभी यह निर्णय ले लिया था कि कलेक्टर बनूंगी। बीएससी की पढ़ाई मैंने गल्र्स कॉलेज में की। गांगीवाड़ा में बुआ के यहां रहती थी और प्रतिदिन अपडाउन करती थी। शुरु से मेधावी थी इसलिए मुझे हर जगह लोगों ने सपोर्ट किया। रिश्ते में एक भाई जो पोस्ट ऑफिस में हैं, उनसे भी प्रेरणा मिली। इसके बाद मैंने ईमानदारी से पढ़ाई की और सफलता मिलती गई। निशा कहती हैं कि अगर हमारी जिंदगी में अभाव भी जरूरी है। यह भी आपको मोटिवेशन देता है।
नौकरी में रहकर भी पढ़ाई रही जारी
निशा वर्ष 2018 में ही अन्वेषण के पद पर चयनित हो गई थी। तब से वह सुबह 10 से शाम 6 बजे तक नौकरी करती है। शेष समय में एमपी पीएससी की तैयारी करती थी। निशा कहती है कि मैं पापा को सुबह 7 से रात 10 बजे तक मेहनत करते देखती थी। उनके सामने तो हमारी मेहनत कुछ भी नहीं। शायद यही वजह थी कि मैं प्रतिदिन पढ़ती गई।
लड़कियों को होना चाहिए सशक्त
निशा कहती हैं कि लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त होना चाहिए। वह पढ़ी रहेंगी और सशक्त होंगी तो परिवार भी सशक्त होगा। निशा कहती हैं कि मेहनत करने से रिजल्ट भी अच्छा मिलता है। अगर नहीं भी मिला तो कम से कम यह तो संतुष्टी रहेगी की हमने मेहनत किया। कदम रोकिए मत, आज नहीं तो कल सफलता मिल ही जाएगी।

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