छोटे से गांव से निकली प्रतिभा
आपको जानकर हैरानी होगी कि दमोह के छोटे से गांव घानामैली की एक दृष्टिबाधित महिला क्रिकेट खिलाड़ी प्रदेश की इकलौती ब्लाइंड खिलाड़ी हैए जिसने इंडिया टीम से खेली ही नहीं बल्कि टीम की कप्तान भी थी। पिछले साल 2023 में दृष्टिबाधिक इंडिया टीम की कप्तानी कीए पर यह कामयाबी हासिल करने के बाद भी यह खिलाड़ी अभी भी गुमनामी की जिंदगी जीने मजबूर है। जानकर हैरानी होगी कि खुद इस खिलाड़ी ने कैश अवॉर्ड के लिए आवेदन कियाए लेकिन यह आवेदन भी शासन स्तर से निरस्त कर दिया गया।
.सिर्फ एक बार बुलाया सम्मान के लिएए वह भी था निजी कार्यक्रम इस दृष्टिबाधित खिलाड़ी को सम्मान के लिए मात्र एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था। वह भी एक निजी कार्यक्रम था। एक संस्था ने बेटी बचावए बेटी पढ़ाव के तहत सुषमा और उसके माता.पिता का सम्मान किया था। सुषमा की मानेे तो जिले में किसी विधायक ने उसे सम्मान करने के लिए आमंत्रित नहीं किया और न ही कोई मदद की।
.झलका दर्दए बोली उड़ीसा व बेंगलुरू सरकार दे रही नौकरियां
सुषमा बताती हैं कि उड़ीसा की सरकार ने इंडिया टीम में खेलने के अलावा नेशनल खेलने वाले ब्लाइंड बच्चों को 25 लाख रुपए और एक सरकारी नौकरी दे रही है। वहींए बेंगलरू में 5 लाख रुपए नकद और एक नौकरी देने की कार्य योजना पर काम कर रही हैए लेकिन मप्र सरकार की तरफ से अभी तक ब्लाइंड खिलाडिय़ों के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है।
.बाण से चोटिल हुई थी आंख
सुषमा बताती हैं कि 2005 में रामायण सीरियल का बहुत ज्यादा प्रचलन था। मेरे बड़े भाई ने धनुष बाण से खेलना शुरू किया। एक बार वह बाण चला रहा था जिसका कुछ हिस्सा टूट कर सुषमा की बाई आंख में जा लगाए जिससे उसकी एक आंख खराब हो गई थी।
.क्रिकेट का था शौकए एक दोस्त की सलाह आई थी काम
क्रिकेट खिलाड़ी सुषमा का बचपन संघर्ष भरा रहा। बचपन से ही उसे क्रिकेट खेलने का शौक था। भोपाल में एक दोस्त ने बताया कि अंधे लोगों का क्रिकेट भी भारत में होता है और वह तो बचपन से क्रिकेट खेलती आ रही थी। भारतीय टीम में सिलेक्शन के लिए भी उसने प्रयास किया। आगे बढऩे का रास्ता मिला और उसने एक कैंप ज्वाइन किया और धीरे.धीरे क्रिकेट की बारीकियां सीखीं। इसके पहले मप्र की टीम से वह खेल चुकी थीए जिसके लिए वह बेंगलुरु गई थी और उसके बाद उसका चयन भारत की ब्लाइंड क्रिकेट टीम के लिए हुआ है और उसे कैप्टन बनाया गया था।