
Astrology Article in Hindi: गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने तक संपूर्ण विश्व को कर्म प्रधान बताया है। ऐसे में जहां हमारे शास्त्र भी कर्म बंधन की बात कहते हैं तो वहीं आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह मान्य हैं। तभी तो कहा गया है कि ’कर्म प्रधान विश्व रचि राखा’ ’जो जस करई तो तस फलि चाखा’ सकल पदार्थ है जग माही, कर्म हीन नर पावत नाही। यानि पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता है केवल रूप बदल जाता है,. हम जैसे कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं।
ऐसे में ज्योतिष के कई जानकारों का मानना है कि जहां एक ओर ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उपासना, यज्ञ और रत्न आदि धारण करना विशेष माना जाता है। तो वहीं यदि हम लोग जड़ की अपेक्षा सीधे जीव से संबंध स्थापित रखें तो ग्रह बहुत जल्द्र प्रसन्न हो सकते है। कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यदि हम देखें तोवेदों में कहा गया है मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव अतिथि देवो भव.
अभिवादन शीलस्य नित्य बृध्दोपसेविनः .
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलं..
अर्थात् मात्र प्रणाम करने से सदाचार के पालन से औरं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है। वहीं यदि हम जीवों के प्रति परोपकार की भावना रखें ,तो अपनी कुंडली में रुष्ट ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते है। नवग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ, वनस्पति, तत्व, पशु पक्षी इत्यादि में अपना वास रखते हैं। इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आस पास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है।
सूर्य को इसलिए माना गया है पिता का कारक
किसी भी जातक का जन्म माता-पिता दोनों के संयोग से होता है, इसलिए सूर्य को आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता माना गया है, वहीं चंद्रमा मन के साथ-साथ मां का प्रतिनिधित्व करता है। श्वास चूंकि जीवन है और इसको देने वाले सूर्य और चंद्र ही हैं, ऐसे में योग में इस श्वास को प्राण कहा गया है।
हर ग्रह से शुभ फल ऐसे पाएं
क्या आप जानते हैं कि व्यक्ति के आचरण संबंधी और जातक के निकट संबंधियों से जुड़ें कई उपाय शास्त्रों में तक वर्णित हैं, परंतु वर्तमान में यह चलन में नहीं रह गये है। ऐसे में कुंडली में सूर्य के अशुभ स्थिति में या नीच का होने पर माना जाता है कि पिता रुष्ट रहे होंगे, तभी जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता है। सूर्य के इस अनिष्ट के उपाय के लिए जातक को इस जन्म में अपने पिता की सेवा करनी चाहिए और प्रातः चरण स्पर्श करने के अलावा उन्हें अन्य सांसारिक क्रियाओं से भी प्रसन्न रखना चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से सूर्य अपना अशुभ फल कम कर सकते हैं।
रुष्ट या नीच ग्रहों को ऐसे करें प्रसन्न...
सूर्य ग्रह : पिता को प्रसन्न करें।
चन्द्र ग्रह : माता को प्रसन्न करें।
बुध ग्रह : मामा और बंधुओं को प्रसन्न करें।
गुरु ग्रह : गुरुजन और वृद्धों को प्रसन्न करें।
शुक्र ग्रह : पत्नी को प्रसन्न करें।
शनि ग्रह : दास दासी को प्रसन्न करें।
- केतु रुष्ट हो तो कोढ़ी को प्रसन्न करें।
- वहीं राहु अनैतिक रिश्ते का परिचायक है अतः इसके रुष्ट होने पर आपको सबका सम्मान करने के साथ ही अपने अंदर की इंद्रियों पर अपना नियंत्रण रखना चाहिए।
अहम सीढ़ी है पश्चाताप
ज्योतिष के जानकारों का यह भी मानना है कि यदि हम प्रेम सत्कार और आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार करें, तो रुष्ट ग्रह की नाराजगी को भी शांत किया जा सकता है।
- शरणागत प्रभु काहु न त्यागा।
विश्व द्रोह अधकृत जहि लागा।।
अर्थात जिसे संपूर्ण जगत् से द्रोह करने का पाप लगा है, शरण जाने पर प्रभु उसका भी त्याग नहीं करते।
पश्चाताप सब कुछ शुद्ध कर देता है। गौ माता के समक्ष अपने किये अपराधों को कबूल किया जाये, तो पापों से मुक्त हो सकते हैं। भविष्य में अपराध की पुनरावृत्ति से बचे रहने के लिए भी प्रार्थना एवं कोशिश करें। सेवा भाव ही पाप के दंभ से बचने का श्रेष्ठ उपाय है।
Published on:
22 Oct 2022 01:47 pm
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