“खरगोश के खून” से अमरीका को बनाया बेवकूफ, लगाया करोड़ों का चूना
दक्षिण कोरियाई
मूल के इस वैज्ञानिक को 57 महीनों की सजा सुनाई गई। सजा के बाद भी उस पर 3 साल तक
नजर रखी जाएगी
वॉशिंगटन। जब खरगोश के खून को उसने इंसानों के ब्लड सैंपल से मिलाया, तो परिणाम से लगा कि वैज्ञानिक एचआईवी एड्स का इलाज ढूंढने के बेहद करीब पहुंच गए हैं।
2008 में रिसर्च टीम के साथ जुड़ने के एक साल के भीतर ही लाउ स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डोंग-प्याऊ ह्यान अपनी टीम में खासे लोकप्रिय हो गए। टीम लीडर प्रोफेसर माइकल चो को लगा कि उनकी टीम ऎतिहासिक उपलब्घि हासिल करने की कगार पर है। लेकिन ह्यान तो “मुन्ना भाई” निकला, जिसे एचआईवी के बारे में कुछ पता ही नहीं था। वो तो बस खुद को बचाने के लिए उलटे-सीधे प्रयोग करने में लगा हुआ था।
खरगोश की बढ़ गई प्रतिरोधक क्षमता
दरअसल 2008 में यह रिसर्च टीम खरगोशों पर नए वैक्सीन का परीक्षण करने में लगी हुई थी। अमरीका इस टीम को सरकारी अनुदान भी देता रहा। खुद को टीम में बनाए रखने के लिए ह्यान ने इंसानी सैंपल में खरगोश का खून मिलाया, जिससे अचानक से खरगोश में एचआईवी के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई तो पूरी टीम में खुशी की लहर दौड़ गई। आगे भी इस तरह के प्रयोग करने लगा और यह दावा करता रहा कि वह वैक्सीन तैयार करने की कगार पर है।
2013 में पकड़ी गई चोरी
हावर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हालांकि 2013 में उसकी चोरी पकड़ ली। उन्होंने पाया कि यह परिणाम उसने खरगोश के खून को इंसानी एंडीबॉडी से मिलाकर हासिल किया है।
सुनाई गई सजा
अंतिम सुनवाई के बाद दक्षिण कोरियाई मूल के इस वैज्ञानिक को 57 महीनों की सजा सुनाई गई। सजा के बाद भी उस पर 3 साल तक नजर रखी जाएगी। इसके अलावा उसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ से अनुदान में मिले 72 लाख डॉलर (45.69 करोड़ रूपए) लौटाने होंगे। सजा के बाद उसे हमेशा के लिए दक्षिण कोरिया भेजा जा सकता है।
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