-2 June Ki Roti और दो जून तारीख को लेकर जब लोगों से बात की गई तो तरह-तरह के तर्क सुनने को मिले
-कई लोगों को इस कहावत का अर्थ तक मालूम नहीं था (2 June Ki Roti)
-हर वर्ष दो जून को ये कहावत ट्रेंड करने लगती है
नोएडा। बचपन से एक कहावत सुनते और पढ़ते आ रहे हैं, 2 जून की रोटी (2 June Ki Roti) नसीब वालों को ही मिलती है। वहीं महंगाई के इस दौर में लोगों को दो जून की रोटी (2 June ki Roti News) के लिए बहुत से पापड़ भी बेलने पड़ते हैं। ऐसे में ये गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के लिए चिंता का एक बड़ा विषय बनता जा है। हम आपको लोगों के माध्यम से ये बताने जा रहे हैं कि आज के समय में दो जून की रोटी (Do June Ki Roti) कमाना कितना मुश्किल है।
पहले जानें इसका अर्थ सबसे पहले ये दो जून की रोटी का अर्थ समझने की जरूरत है। अक्सर लोग खासकर आज की युवा पीढ़ी इस कहावत को जून महीने की दो तारीख से जोड़कर देखती है। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष की दो जून (2 June Ki Roti) को ये कहावत ट्रेंड करने लगती है। दरअसल, 2 जून अवधि भाषा (Awadhi Boli) का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है। दो जून की रोटी का मतलब तारीख से नहीं, बल्कि दो टाइम (सुबह-शाम) की रोटी से होता है। जिसे बहुत से लोग नहीं जानते होंगे। जानकारों की मानें तो यह भाषा का रूढ़ प्रयोग लगभग छह सौ वर्ष पहले प्रचलन में है। किसी भी घटनाक्रम की विशेषता बताने के लिए मुहावरों को जोड़कर प्रयोग में लाया जाता था। जो आज तक जारी है।
क्या कहते हैं लोग 2019 की दो जून तारीख और दो जून की रोटी को लेकर जब लोगों से बात की गई तो तरह-तरह के तर्क सुनने को मिले। कई लोगों को इस कहावत का अर्थ तक मालूम नहीं था। नोएडा के बाजिदपुर में रहने वाले विपिन चौहान का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दामोें में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जिसके चलते हर चीज भी महंगी हो रही है। इसके अलावा आज के समय में बच्चों को पढ़ाना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। दिन-रात मेहनत करने के बाद भी सभी इच्छाओं को पूरा करना मुश्किल हो रहा है। ये कहावत सही कही गई है कि दो जून की रोटी कमाने के लिए बहुत से पापड़ बेलने पड़ते हैं।
ग्रेटर नोएडा के एल्फा 1 में रहने वाले सुमन का कहना है कि दाे जून की राेटी कमाना किसी बड़ी चुनाैती से कम नहीं है। महंगाई ने सभी की कमर को तोड़कर रख दिया है। आज के समय में स्कूलों की फीस इतनी महंगी हो गई है। अस्पतालों में भी इलाज के लिए बहुत पैसे लगते हैं। अब महंगाई की वजह से 40 से 50 हजार में भी एक सामान्य घर चलाना मुश्किल हो रहा है।
वहीं गाजियाबाद के रमेश कुमार का कहना है कि अब दाे जून की राेटी कमाना भी आसान नहीं रहा। अगर अकेला पुरुष कमाए ताे घर का खर्च मुश्किल से निकल पाता है। मैं और मेरी पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, तब भी कहीं जाकर हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में मुश्किल से पढ़ा पा रहे हैं। आगे अगर ऐसे ही मंहगाई बढ़ती रही तो न जाने लोगों का क्या हाल होगा और किस तरह घरों में चूल्हा जला करेगा।