बाजारों में दुकानें तो लगीं हैं, लेकिन खरीददार कम नजर आ रहे हैं। जो ग्राहक हैं भी, वो भी त्यौहार मनाने की सिर्फ औपचारिकताएं ही निभा रहे हैं। बच्चों को लेकर होली की खरीददारी करने पहुंची प्रीति कहती हैं कि बच्चों ने जिद की इसलिए पिचकारी खरीदने आये हैं, लेकिन दाम बहुत अधिक हैं। लगता है इस पर भी जीएसटी का असर है। वह कहती हैं कि होली पर वे गुलाल ही पसंद करती हैं, जो गंदे तरीके से रंग खेलते हैं, वह ठीक नहीं है। होली रंगों का त्यौहार है, इसे प्यार से ही खेलना चाहिए। वहीं अमित जैन कहते हैं कि वे सिर्फ गुलाल से ही होली खेलते हैं और वे सिर्फ गुलाल ही खरीदने आये हैं।
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इंदिरा मार्किट में रहने वाली सुमेधा शर्मा कहती हैं कि उनका सेक्टर कॉमर्शियल हो चुका है, लेकिन इस बार बाजार कम लगा है। इसका कारण है कि नोएडा प्राधिकरण ने अतिक्रमण के खिलाफ जो अभियान चलाया है, उससे लोग डरे हुए हैं। प्राधिकरण ने कई लोगों को नोटिस भी दिया है। इस बात का दुःख तो है ही कि लोगों की रोजी-रोटी पर फर्क पड़ा है। लेकिन घर के सामने काफी जगह खाली है, इसमें मजे से होली खेल सकती हैं। वह कहती हैं कि उन्हें हर्बल रंगों से ही होली खेलना पसंद है।
रंगों की दुकान लगाए बैठे मयंक को ग्राहकों का इंतजार है। वे कहते हैं कि जो भी आता है, वह हर्बल रंगों की ही मांग करता है, इसलिए हमने दुकान में सिर्फ ब्रांडेड रंग रखे हैं, जिनसे होली खेलने पर कोई नुकसान नहीं होता है। वे कहते हैं कि इस बार नए प्रॉडक्ट में रंगों के बम और लड़कियों की लिए अलग तरह के रंग रखे हैं। दुकानदारी के बारे में उनका कहना है कि पहले जो लोग 4 पैकेट रंग ले जाते थे, इस बार वे सिर्फ एक पैकेट ही रंग ले जा रहे हैं। खरीदारों का कहना है कि घर में पड़े पुराने रंगों से ही काम चला लेंगे।
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रंगों के त्यौहार में अस्पतालों ने भी अपनी तैयारी कर रखी है। डॉक्टरों की सलाह है कि मिलावटी रंग से दूर रहा जाये तो बेहतर है। ये आंखों और त्वचा को काफी नुकसान पहुंचते हैं। हर्बल रंग या नेचुरल कलर का इस्तेमाल किया जाये तो बहुत अच्छा है। रंग लगाने पर जरा भी खुजली या कोई और दिक्कत हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करना चाहिए।