बता दें कि इससे पहले गत 8 नवंबर की देर रात सरकार की ओर से निर्देश जारी हुआ था। निर्देश के मुताबिक, अगले दिन यानी 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद मामले में अंतिम फैसला सुनाने जा रहा है, इसलिए ऐहतियातन सभी स्कूल-कॉलेज 11 नवंबर तक के लिए बंद रहेंगे। 12 नवंबर को गुरुनानक देव जी की जयंती के उपलक्ष्य में स्कूल-कॉलेज बंद रहे। 13 नवंबर को जब स्कूल खुले तो बच्चों-अभिभावकों और शिक्षकों के साथ-साथ तमाम स्कूल प्रबंधन ने भी राहत की सांस ली होगी कि चलो अब बहुत हुई छुट्टी, पढ़ाई पर ध्यान दें और पाठ्यक्रम पूरा कराएं। लेकिन शाम तक उनकी दृढ़ता कायम नहीं रह सकी। सरकार की ओर से दो दिन की छुट्टी का नया आदेश उनके लिए मायूसी लेकर आया।
दरअसल, इस शिक्षा सत्र में नोएडा-गाजियाबाद के स्कूल करीब सात दिनों तक अतिरिक्त रूप से विभिन्न कारणों से बंद करने पड़े हैं। मतलब, यह छुट्टियां स्कूलों के वार्षिक कैलेंडर में शामिल नहीं थीं। जाहिर है इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई। कई स्कूलों में तो पाठ्यक्रम पूरे नहीं हुए हैं। प्रबंधन को इस बात की चिंता है कि बिना पाठ्यक्रम पूरा कराए वह इस सत्र की परीक्षा कैसे लेगा। वहीं, अभिभावक चिंतित हैं कि मोटी फीस देने के बाद भी बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही है। अगर स्कूल में ऐसे ही पढ़ाई होती रही तो बच्चा परीक्षा में क्या लिखेगा?
देखा जाए तो सिर्फ प्रदूषण की वजह से इस शिक्षा सत्र में पांच दिन के लिए स्कूल बंद करने पड़े हैं। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि 15 नवंबर के बाद प्रदूषण की वजह से स्कूल बंद करने की नौबत नहीं आएगी। अभी तो ठंड भी शुरुआती दौर में है। बाद में तापमान में गिरावट होगी तब भी स्कूल बंद करने पड़ सकते हैं। ऐसे में क्या यह बच्चों की पढ़ाई से खिलवाड़ नहीं है। स्कूल कम दिन खुलने के बावजूद अगर प्रबंधन जल्दबाजी में किसी तरह पाठ्यक्रम पूरा करा भी देता है तो क्या यह बच्चों की समझ में आएगा। अगर एक बार कोई विषय या महत्वपूर्ण प्वाइंट बच्चों को ठीक से समझ में नहीं आया तो वह उनकी आगे की पढ़ाई पर असर डालेगा।
क्यों न इस समस्या का हल खोजा जाए। कुछ ऐसा किया जाए कि इन अतिरिक्त छुट्टियों की वजह से बच्चों की जो पढ़ाई प्रभावित हो रही है, उसकी भरपाई हो सके। अगर जरूरी लगे तो पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए रविवार को भी स्कूल खोले जाएं। आम दिनों में एक्सट्रा क्लास लगाई जाए, जिससे तेज गति से हो रही पढ़ाई उन्हें समझ में भी आए। बच्चों की बेहतर पढ़ाई को लेकर हम सबको चिंतित होना होगा। साथ ही, उसमें सुधार के लिए पहल भी करनी होगी। आखिर यह उनकी शिक्षा का सवाल है। उनके भविष्य से जुड़ा मसला है। इसमें जरा सी कोताही न सिर्फ उन्हें बल्कि, हम सबको भारी पड़ सकती है।