बता दें कि एनपीआर के तहत देशभर में नागरिकों का डाटा तैयार किया जाएगा, इसलिए सभी नागरिकों को अपना नाम इसमें रजिस्टर करवाना अनिवार्य है। एनपीआर के तहत यह जानकारियां एकत्रित की जाएंगी कि कौन व्यक्ति कहां रहता है। इसका पहला चरण 16 मई से शुरू होगा, जो 30 जून 2020 तक चलेगा। वहीं, दूसरा चरण फरवरी 2021 से शुरू होगा। एनपीआर का उद्देश्य देशभर के नागरिकों का एक बायोमेट्रिक डाटा तैयार करना है, जिससे सही लाभार्थियों की पहचान हो सके और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। हालांकि, एनपीआर को लेकर उत्तर प्रदेश में अधिकारी अभी कुछ भी स्पष्ट बताने की स्थिति में नहीं हैं। इस बारे में सहारनपुर के जिलाधिकारी आलोक कुमार से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक उनके पास एनपीआर को लेकर कोई निर्देश या गाइडलाइन नहीं आई है।
ये दस्तावेज दिखाने होंगे – आधिकारिक सूत्रों की मानें तो सरकार ने एनपीआर के लिए कुछ दस्तावेज और जानकारियां चिन्हित किए हैं, जिसे लोगों को रजिस्ट्रेशन के दौरान दिखाना या बताना जरूरी होगा। इसके तहत, आधार कार्ड, एपिक कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस और मोबाइल नंबर शामिल है। हालांकि, दस्तावेज दिखाए जाने के मुद्दे का विरोध भी हुआ, जिसके बाद अधिकारियों की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि जिनके पास दस्तावेज की प्रतियां नहीं हैं, उनसे किसी तरह की जबरदस्ती नहीं की जाएगी। यानी जो लोग दस्तावेज नहीं दिखाना चाहते, उन पर किसी तरह का दबाव नहीं डाला जाएगा। दस्तावेज दिखाना ऐच्छिक है।
ये जानकारियां देनी होगी – रजिस्ट्रेशन के दौरान लोगों से सवाल पूछे जाएंगे, जिसकी जानकारी उन्हें देनी होगी। इसके तहत, नाम, परिवार के मुखिया से संबंध, लिंग, जन्मतिथि, वैवाहिक स्थिति, शैक्षणिक योग्यता, पेशा या व्यवसाय,मां-पिता-पत्नी का नाम, जन्मस्थान, वर्तमान पता, वर्तमान पते पर कब से रह रहे हैं, राष्ट्रीयता, स्थायी पता के दस्तावेज, आधार नंबर (स्वैच्छिक), मोबाइल नंबर, माता-पिता का जन्मस्थान, पिछला पता, पासपोर्ट नंबर (अगर है तो), पैन नंबर, वोटर आईडी यानी मतदाता पहचान पत्र और ड्राइविंग लाइसेंस नंबर शामिल है।
सीएए, एनपीआर और एनआरसी में क्या है अंतर – एनपीआर को लेकर कवायद ऐसे समय शुरू हो रही है, जब देशभर में सीएए यानी नागरिकता संशोधित अधिनियम का जबरदस्त विरोध हो रहा है। हाल ही में लागू हुए सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताडि़त हो रहे हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, पारसी धर्म के लोगों को भारत अपने यहां न सिर्फ शरण देगा बल्कि उन्हें नागरिकता देने का भी प्रावधान है। हालांकि, देश में कुछ राजनीतिक दलों, संगठनों और नागरिकों का मत है कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए। वहीं, एनआरसी के तहत विभिन्न देशों से बिना वैध दस्तावेज भारत आए लोग, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में घुसपैठिए (अवैध नागरिक) की तरह रह रहे हैं, उनकी पहचान करके उन्हें वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया है। अभी असम में एनआरसी प्रक्रिया हुई है, जिसमें करीब 19 लाख लोग खुद को भारत का नागरिक साबित करने में असमर्थ रहे हैं। वहीं, एनपीआर यानी नेशनल पापुलेशन रजिस्टर के तहत सरकार देशभर में रह रहे नागरिकों का डाटाबेस तैयार करेगी। इसमें एक ही जगह पर छह माह या उससे अधिक से रह रहे लोगों को अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। सरकार का दावा है कि इसका मकसद सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरी लोगों तक पहुंचाना है।