नोएडा

देश पहली बार ध्वस्त होगी इतनी ऊंची इमारत, एक्सपर्ट बोले- ताश के पत्तों की तरह जमींदोज करना जरूरी

Supertech Twin Tower कैसे गिराए जाएंगे? यह अभी भी अधिकारियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है, क्योंकि भारत में इतनी ऊंची बिल्डिंग को अब तक नहीं गिराया गया है। वहीं स्काईस्क्रैपर का कांसेप्ट भारत में अभी नया है, विशेषज्ञ कहते हैं इस तकनीक के जरिए गगनचुंबी इमारतों को गिराने को लेकर देश में अभी बहुत कम रिसर्च हुआ है।

नोएडाOct 07, 2021 / 06:06 pm

lokesh verma

नोएडा. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बीते सोमवार को सुपरटेक लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने नोएडा में कंपनी की 40 मंजिला ट्विन टावरों (Supertech Twin Tower) को गिराने के शीर्ष अदालत के आदेश में संशोधन की मांग की थी। कंपनी ने याचिका में भवन मानकों के मुताबिक सिर्फ एक टावर के 224 फ्लैटों और भूतल पर कम्युनिटी क्षेत्र को आंशिक रूप से गिराने की अनुमति देने की मांग भी की थी। सुप्रीम कोर्ट के सुपरटेक की नोएडा की 93 ए में स्थित एमराल्ड कोर्ट ट्विन टावर (Emerald Court Twin Towers) गिराने के आदेश को बरकरार रखते हुए सुपरटेक की रिवीजन पिटिशन को खारिज करने के साथ ही यह तय हो गया है कि अब इन इमारतों को गिराया जाना निश्चित है।
सुपरटेक की ट्विन टावर कैसे गिराए जाएंगे? यह अभी भी अधिकारियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है, क्योंकि भारत में इतनी ऊंची बिल्डिंग को अब तक नहीं गिराया गया है। वहीं स्काईस्क्रैपर का कांसेप्ट भारत में अभी नया है, विशेषज्ञ कहते हैं इस तकनीक के जरिए गगनचुंबी इमारतों को गिराने को लेकर देश में अभी बहुत कम रिसर्च हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) को टावरों को गिराने के लिए कहा है, जिससे कि सुरक्षित तरीके से गिराना सुनिश्चित किया जा सके। नोएडा के सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के 32 मंजिला ट्विन टावर को गिराना सबसे बड़ा चैलेंज है। नोएडा प्राधिकरण और सीबीआरआई की टीम इन टावरों को गिराने के लिए योजना बनाने में जुटी हैं। कोर्ट के निर्देश पर इस काम को 30 नवंबर तक पूरा करना है।
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दो तरीके से टावर गिराने पर विचार विमर्श

नोएडा प्राधिकरण ने सीबीआरआई को प्रस्ताव तैयार करने के लिए 10 दिन का समय दिया था। अधिकारियों का कहना है कि कार्ययोजना पर विचार के लिए शनिवार को भी बैठक होगी। सीबीआरआई के अधिकारियों के साथ प्राधिकरण के अधिकारियों की ऑनलाइन बैठक में 2 तरीकों से टावर गिराने पर विचार विमर्श किया गया है। इसमें एक तरीका सीधे नीचे की ओर इमारत के धंसने का है। हालांकि ऐसे ऊंचे निर्माण को ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर गिराने के लिए बहुत सारी तकनीक हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि घनी आबादी वाले इलाकों में आंतरिक विस्फोट के जरिए बिल्डिंग को ध्वस्त करना बेहतर तरीका हो सकता है। इस तकनीक के जरिए बिल्डिंग में अलग-अलग जगहों पर छोटी-छोटी एक्सप्लोसिव डिवाइस रखी जाती हैं। इन डिवाइस को इस तरह रखा जाता है कि धमाका होने के बाद मलबा परिसर के अंदर ही गिरे। इस तरह के ध्वस्तीकरण पूरी दुनिया में होते रहे हैं। भारत में भी छोटे पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा चुका है। हालांकि नजदीकी टावरों की संरचना को बचाए रखना भी बड़ी चुनौती होगी।
ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में लग सकते हैं चार महीने

एक्सपर्ट्स कहते हैं, ब्लास्ट को प्लान करने के साथ ही उसका परफेक्ट खाका खींचने की जरूरत है। पहले हमें उन फ्लोर्स को चुनना होगा, जहां ब्लास्ट करना है। इसके बाद इन फ्लोर्स से सपोर्ट और दीवारों को हटाना होगा। विस्फोटकों को इस तरह रखना होगा कि खंभों (पिलर्स) में एक के बाद एक सिलसिलेवार ब्लास्ट होता जाए। मलबे को ताश के पत्तों की तरह नीचे की ओर गिराना सुनिश्चित करना होगा। यह सबसे बड़ी चुनौती है। उनका अनुमान है कि नोएडा में पूरी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में चार महीने लग सकते हैं। इसमें प्लानिंग से लेकर मलबे को हटाना शामिल है।
प्राधिकरण को टावर गिराने का टेंडर निकालने की अपील

जानकारो का कहना है कि भारत में बमुश्किल स्काईस्क्रैपर डिमॉलिशन या उससे संबंधित रिसर्च देखने को मिलती है। नोएडा अथॉरिटी को एक्सपर्ट्स के रूप में विदेशी कंसल्टेंट्स को हायर करना होगा। अब तक इम्प्लोजन ही ऐसी तकनीक है, जिसका सफलतापूर्वक हर जगह इस्तेमाल हो चुका है। ट्विन टावर गिराने के लिए देश की ही किसी एजेंसी को मौका मिलेगा। सीबीआरआई की ओर से इसके लिए एजेंसी की तलाश की जा रही है। हालांकि, इस काम के लिए टेंडर निकाला जाएगा। सीबीआरआई ने प्राधिकरण को इसका टेंडर निकालने की अपील की है। प्राधिकरण के अधिकारियो का कहना है कि टावर गिराने को लेकर एक आंतरिक कमेटी बनाई गई है। टावर गिराने के दौरान रूट डायवर्जन करना होगा। अगल-बगल की कई इमारतों को खाली कराना होगा। वहीं ट्विन टावर गिराने के दौरान आसपास की इमारतों की सुरक्षा को लेकर भी आरडब्लूए की ओर से चिंता जताई जा रही है।
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