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समावेशी और पर्यावरण अनुकूल विकास पर देना होगा ध्यान

वन्यजीवों के आवागमन पर निगरानी एवं स्थानीय समुदायों को उचित समय पर सावधान करने की प्रणाली को स्थापित करना होगा।

जयपुर

VIKAS MATHUR

May 24, 2024

वन्यजीव

मनुष्य एवं वन्यजीव आदिकाल से एक दूसरे के पूरक व आपसी सामंजस्य बनाते हुए सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व का अनूठा उदाहरण भी प्रस्तुत करते रहे हैं। मुश्किल यह है कि आधुनिक काल में इन दोनों के मध्य संघर्ष बढ़ गया है, जो कि दोनों के लिए ही नुकसानदेह है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्ष में लगभग तीन हजार लोग जंगली जानवरों की चपेट में आने से काल कलवित हो गए हैं।

अकेले केरल राज्य में ही पिछले वर्ष करीब सौ से अधिक लोग वन्यजीव संघर्ष की भेंट चढ़ चुके हैं। यह उल्लेखनीय है कि केरल ने इसके चलते वन्यजीव व स्थानीय समुदाय के मध्य इस संघर्ष को राज्यस्तरीय विपदा घोषित किया है। स्थानीय जनजातियों व समुदायों का वन्यजीवों के प्रति बढ़ता आक्रोश अत्यंत चिंतनीय विषय है। यह यथोचित होगा कि समस्त हितधारकों द्वारा इस बढ़ते मनुष्य वन्यजीव संघर्ष के कारणों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। बढ़ती जनसंख्या व शहरीकरण के कारण वनों पर दबाव बढ़ रहा है और उनके घनत्व में कमी आ रही है। तथाकथित विकास परियोजनाओं के अंतर्गत वृक्षों को अनियंत्रित रूप से ध्वस्त किया जा रहा है, जिससे वन्यजीवों के प्राकृतिक वास विखंडित हो रहे हैं।

वनों एवं अभयारण्यों में अनियंत्रित रूप से बढ़ता पर्यटन भी वन्यजीवों की स्वछंदता पर अनवरत प्रहार कर रहा है। संरक्षित वनों में इको टूरिस्म, वन्यजीव सफारी, रिसोर्ट व होटल खोलने की नीतियों का वन्यजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कानूनी एवं नियामक शिथिलता भी इस संघर्ष को बल दे रही है। उदाहरणार्थ, हाल ही में पारित किया गया वन संरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 के अंतर्गत वनों की परिभाषा को संशोधित कर एक विशाल भूभाग को संरक्षण के दायरे से पृथक कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के सौ किलोमीटर के भीतर अवसंरचना निर्माण के लिए वृक्षों को काटने पर किसी प्रकार की अनुमति आवश्यक नही होगी।

वस्तुत: आधुनिक विकास शैली ने स्थानीय जनजातियों को वनों पर उनके अधिकार से वंचित कर विस्थापित किया है। परिणामस्वरूप वन्यजीव संरक्षण के लिए अपनाए जाने वाली पारंपरिक व सांस्कृतिक प्रथाए भी लुप्त होती जा रही है । समस्या के समाधान के लिए समय रहते गंभीर प्रयास किए जाने आवश्यक हैं। लघुकाल में, वनों की सीमाओं की बाड़ाबंदी करना, वन्यजीवों के आवागमन पर निगरानी एवं स्थानीय समुदायों को उचित समय पर सावधान करने की प्रणाली को स्थापित करना होगा । स्थानीय समुदायों को प्रशिक्षण देने एवं जागरूक करने की दिशा में भी उचित कदम उठाने होंगे। उदाहरणार्थ, स्थानीय लोगों को 'बाघ मित्र', 'हाथी मित्र' आदि के रूप में प्रशिक्षित कर वन्यजीवों से उचित प्रकार से निपटने के लिए तैयार किया जा सकता है।

आधुनिक प्रौद्योगिकी यथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इन्टरनेट ऑफ थिंग्स, सेंसर, ड्रोन आदि के उपयोग से वन्यजीवों के आवागमन पर नियंत्रण रखा जा सकता है एवं सामाजिक मीडिया द्वारा स्थानीय लोगों को त्वरित सूचना प्रदान की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण से सम्बन्धित कानूनी एवं संस्थागत ढांचे को दृढ़ता प्रदान करना भी आवश्यक है। वन एवं वन्यजीव संरक्षण के कानूनों को पुख्ता कर इनकी अवहेलना पर अंकुश लगाना होगा। साथ ही किसी भी विकास परियोजना के क्रियान्वयन से पूर्व उससे होने वाले पारिस्थितिकी एवं सामाजिक दुष्परिणामों का समुचित आकलन होना अत्यंत आवश्यक है।

दीर्घकालीन दृष्टिकोण से आर्थिक विकास की परिभाषा में आमूलचूल परिवर्तन लाने की भी महत्ती आवश्यकता है। विकास एवं पर्यावरण सरंक्षण को भिन्न नहीं अपितु एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाना चाहिए। समावेशी और पर्यावरण अनुकूल विकास पर ध्यान देना होगा।

— मिलिंद कुमार शर्मा