राजस्थान की बात करें तो तत्कालीन मोहन लाल सुखाडिय़ा सरकार द्वारा नियुक्त हरिश्चन्द्र माथुर कमेटी की सिफारिशों में से अधिकांश कब की ही दाखिल दफ्तर हो गईं । समय-समय पर विभिन्न अवसरों पर प्रशासनिक सुधार के लिए बनी कमेटियों की प्रासंगिकता सदैव रहने वाली है। केन्द्र व राज्य सरकारों ने भी इन कमेटियों की सिफारिशों के महत्त्व को स्वीकार किया है। नई सरकारों को अपनी सौ दिन की कार्ययोजना में इन पर विचार करना चाहिए। राजस्थान में भी प्रशासनिक सुधार आयोग ने जो सिफारिशें दीं, उन पर एक मंत्री मण्डलीय उपसमिति का गठन कर विचार हो तो नीतिगत निर्णय लेना आसान होगा। सबसे पहले तो शासन सचिवालय कार्यप्रणाली को ही सुधारने की आवश्यकता है। वैसे सिद्धान्त: तो जनता नौकरशाही की मालिक है पर वास्तविक स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है
। यदि शासन हर नागरिक के साथ उचित व्यवहार करे तो कई समस्याएं कम हो सकती हैं। नीचे के स्तर पर स्वविवेक की शक्तियों के कारण ऐसा नहीं हो पाता। इसलिए नागरिकों को पग-पग पर निराशा का ही सामना करना पड़ता हैं। राजस्थान में प्रशासनिक सुधार आयोग के सदस्य के रूप में काम करते हुए मुझे भी उपयोगी अनुभव हुए। वर्तमान में शासन तंत्र में सुनवाई के तो कई स्तर बन गए हैं पर वे सामान्य नागरिक की पहुंच से बाहर हंै। होना यह चाहिए कि प्रत्येक राज्य में ‘सोमवार’ जन अभियोग निराकरण दिवस हो। इस दिन सभी उपखण्ड अधिकारी, जिला कलक्टर, जिलास्तरीय अधिकारी तथा विभागाध्यक्ष अपने कार्यालयों में रहकर सभी आगंतुक लोगों से मिलकर यथासंभव उसी दिन या 3 दिन में और अधिकतम ७ दिन में समस्या का समाधान करें। एक और महत्त्वपूर्ण मुद्दा लोक सेवकों की स्थानांतरण नीति का है । गत कुछ वर्षों में स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि हमारे माननीय सांसद एवं विधायक अपना मूल कार्य भूलकर अपने चहेते कर्मचारियों के हक में उनके इच्छित स्थानों पर पदस्थापन करवाने एवं जिनसे वे नाराज हो जाते है, उनका स्थानांतरण अन्यत्र कराने के लिए ‘इच्छा पत्रों’ को जारी कर निष्पादित कराने में ही लंबे समय तक व्यस्त रहने लगे हैं। यह बीमारी हर विभाग में व्याप्त है पर शिक्षकों पर यह गाज ज्यादा पड़ रही है। यही हाल चिकित्सा विभाग का भी है, जहां यह ध्यान रखना तो प्राय: असंभव ही हो गया है कि कौन चिकित्सक कहां उपयुक्त है और कहां नहीं। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों एवं चिकित्सकों के लिए ‘कर्नाटक मॉडल’ अपनाने का सुझाव भी सामने आया है, जहां पूरे सेवा काल में शिक्षकों का कभी स्थानांतरण नहीं किया जाता है। आयोग ने अन्य सभी लोकसेवकों के लिए भी एक ‘आदर्श स्थानांतरण नीति’ बनाकर अपने 10वें प्रतिवेदन में राज्य सरकार को प्रस्तुत की है। ‘इच्छा पत्रों’ के चलन को तत्काल बंद करने, गांवों व शहरों के अलग-अलग संवर्ग बनाने आदि से संबंधित प्रावधान रखने के लिए आयोग द्वारा विस्तृत सिफारिशें की गई हैं। सभी राज्य कर्मचारियों के लिए एक पारदर्शी एवं समान स्थानांतरण नीति लागू हो जाने से एक ओर कर्मचारी वर्ग में वर्तमान में व्याप्त असंतोष समाप्त होगा ही, साथ ही पूर्व प्रक्रिया में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार पर भी रोक लग सकेगी। इससे कार्य कुशलता में वृद्धि से जनमानस में राज्य सरकार की अच्छी छवि भी उजागर हो सकेगी।