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ओपिनियन

सकारात्मकता से करें कोराना से मुकाबला

कोरेाना संक्रमण के डर से भयभीत लोगों को सकारात्मक कहानियां सुनाएं ताकि उनमें दहशत न फैले। सोशल मीडिया पर किसी भी संदेश को अग्रेषित करने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से पुख्ता कर लें।

Jul 03, 2020 / 04:28 pm

shailendra tiwari

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Corona

– नेहा विक्रांत बाबरू, सामुदायिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ


कोराना महामारी और इसके घातक प्रभाव से लोग भयभीत हैं। इस बीमारीसे डरना भी स्वाभाविक है। क्योंकि यह एक मानवीय स्वभाव है। लेकिन हमारे स्वास्थ्य कार्यकर्ता, पुलिस और सफाई से जुड़े लोग संक्रमण के खतरे के बीच भी अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। ये कोरोना योद्धा अपनी जिम्मेदारी पर रहते हुए कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद हिम्मत रखे हुए हैं। मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव है। हालांकि यह चिंता का विषय नहीं था लेकिन मेरे जैसे कई पीडि़त हैं । मेेरे काम वाले शहर में अप्रेल माह में गुर्दे की पथरी की वजह से मुझे तेज दर्द हुआ। सोनोग्राफी के लिए कई अस्पतालों में गई लेकिन मुश्किल का सामना करना पड़ा। एक अस्पताल ने बहुत कठिनाई से स्कैन किया। क्वारंटाइन के बाद फिर स्कैन के लिए गई तो यह पता चलने पर कि मैं एक रेड जोन शहर से हूं अस्पताल में मेरा स्कैनिंग करने से इनकार कर दिया गया। जो लोग राजी हुए वे भी रेड जोन से आने की वजह से मुझे शंका की नजर से देखते रहे।

सवाल यह है कि कोरोना को लेकर सामाजिक स्तर पर यह डर क्यों है? दरअसल यह एक खास बीमारी को लेकर हमारी नकारात्मक सोच बताती है। जाहिर तौर पर यह भी कि किसी को भी लगता है कि वह एक बीमारी को किसी भी लिंक की वलह से खुद तक ला सकता है।

कारण भी साफ है। क्योंकि यह एक नई बीमारी है, जिसका कारण अभी तक अज्ञात बना हुआ है। सबसे बड़ी वजह रोग के संचरण के खतरे की है। मौत का डर तो बड़ी वजह है ही लेकिन सबसे बड़ा कारण इस डर को बढ़ाने वाला जो है वह है फेक न्यूज और बीमारी को लेकर बनने वाली गलतफहमियां। इसी वजह से ऐसे मरीज जो कोरोना संक्रमित होनेे के बाद ठीक हो चुके हैें, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और उनका परिवार, पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारी, मीडिया से जुड़े लोग, सफाई कर्मचारी और समाचार पत्र वितरक के साथ-साथ वे लोग जिनका संबंध रेड जोन क्षेत्र से है वे सब शंका के दायरे में ज्यादा रहते हैं।

इतना ही नहीं। हमने देखा कि यात्री और प्रवासी श्रमिकों के साथ भी पिछले दिनों जो बर्ताव हुआ उससे अच्छा संदेश नहीं गया। ऐसे तमाम उदाहरण सामाजिक अलगाव को बढ़ाने वाले हो सकते हैं। यही वजह है कि भेदभाव से बचने के लिए कोई भी व्यक्ति बीमारी को छिपाने का प्रयास तो करता ही है, संक्रमित होने पर भी लोगों को उसकी स्वास्थ्य देखभाल करने से रोककता है।

जाहिर तौर पर एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में कोरोना को लेकर हम सामाजिक भेदभाव के ऐसे मामलों को रोक सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले व्यक्तिगत सुरक्षा की ओर ध्यान देना होगा। कोविड से संक्रमित मरीजों को मनोवैज्ञानिक समर्थन देने का काम किया जाना चाहिए। साथ ही न तो इसे संक्रमण फैलने का कारक मानें और पीडि़त की यथासंभव मदद करें। इससे बीमार को जल्दी बीमारी से उबरने में मदद मिलेगी।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता यह समझते हैं कि पीपीई के साथ अन्य रोगग्रस्त रोगी का वे आसानी से इलाज कर सकते हैं। लेकिन यह भी जरूरी है कि वे मरीज को उपेक्षा की दृष्टि से न देखें। किसी भी तरह उपेक्षा या डर का भाव मरीज को असामयिक मौत की ओर ले जा सकता है। बड़ी जिम्मेदारी हम सबकी भी है कि रोगी की जानकारी या उसके इलाके का नाम सोशल मीडिया पर वायरल न करें।
और आखिर में यह कि कोरोना वारियर्स के लिए हम सबकी जिम्मेदारी क्या है?

हेल्थकेयर और सैनिटरी वर्कर्स या पुलिस को निशाना न बनाएं। वे आपकी मदद करने के लिए ही हमेशा तत्पर रहते हैं। किसी भी समुदाय या क्षेत्र को कोविड-१९ के प्रसार के लिए जिम्मेदार नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही कोरेाना संक्रमण के डर से भयभीत लोगों को सकारात्मक कहानियां सुनाएं ताकि उनमें दहशत न फैले। सोशल मीडिया पर किसी भी संदेश को अग्रेषित करने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से पुख्ता कर लें। अन्य संचारी रोगों की तरह कोरोना महामारी भी हमारी जागरूकता, एकता और सरकारी रीति-नीतियों की पालना करने के साथ समय पाकर खत्म हो जाएगी यह उम्मीद करनी चाहिए।

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