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शैतानी कारोबार

बुधवार को राजस्थान में हुई गोलीबारी की दो घटनाओं ने पूरे प्रदेश को सन्न कर दिया। गोलीबारी की घटनाएं कोई नई बात नहीं है। राजस्थान ही नहीं, देश के सभी राज्यों में ऐसे अपराध होते रहते हैं। चिंता की बात यह है कि किशोर और कम उम्र के युवा ऐसी घटनाओं में लिप्त पाए जा रहे हैं।

जयपुरJun 27, 2020 / 09:06 am

भुवनेश जैन

Fake Licence

Fake Licence

भुवनेश जैन
बुधवार को राजस्थान में हुई गोलीबारी की दो घटनाओं ने पूरे प्रदेश को सन्न कर दिया। गोलीबारी की घटनाएं कोई नई बात नहीं है। राजस्थान ही नहीं, देश के सभी राज्यों में ऐसे अपराध होते रहते हैं। चिंता की बात यह है कि किशोर और कम उम्र के युवा ऐसी घटनाओं में लिप्त पाए जा रहे हैं। उससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्हें या तो अवैध हथियार (Illegal Weapon) आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं या हथियारों के फर्जी लाइसेंस बिकने लगे हैं। दूसरी तरफ, फिल्मों और वेबसीरीजों में हिंसा का महिमामंडन करने वाले कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है और युवा पीढ़ी उनसे दुष्प्रेरणा लेकर अपराध की दुनिया में कदम रख रही है।

चार दिन पूर्व ही अलवर में जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में बैठ कर हथियारों के फर्जी लाइसेंस बनाने के एक मामले का खुलासा हुआ है। इससे पूर्व श्रीगंगानगर जिले में भी ऐसा ही मामला सामने आया था। तीन महीने पूर्व जम्मू-कश्मीर में सीबीआइ ने दो पूर्व जिलाधिकारियों को जाली दस्तावेजों के आधार पर बड़े पैमाने पर फर्जी लाइसेंस जारी करने के मामले में गिरफ्तार किया था। दूसरे राज्यों में भी फर्जी हथियार लाइसेंस पकड़े जा रहे हैं।

फर्जी लाइसेंस (Fake Licence) के अलावा अवैध हथियारों का धंधा भी खूब फल-फूल रहा है। राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के कई जिलों में यह अवैध ‘उद्योग’ तेजी से पनप रहा है। कट्टे, पिस्तोल आदि हर जगह आसानी से उपलब्ध हैं। सीमा पार से आने वाले हथियार अलग हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिला स्तर पर बैठे उच्च अधिकारी क्या अपना कत्र्तव्य ढंग से निभा रहे हैं। क्या कभी वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनकी नाक के नीचे क्या गुल खिलाये जा रहे हैं। जिला कलेक्टर कार्यालयों में अवैध हथियार लाइसेंस बेचने के गिरोह का पनप जाना, बताता है कि न पुलिस अधिकारी जिम्मेदारी से काम कर रहे हैं, न प्रशासनिक अधिकारी। बार-बार प्रकरण सामने आने के बाद भी मामलों की गंभीरता से जांच नहीं होती और कुछ दिनों में मामला रफा-दफा हो जाता है। हथियारों के लाइसेंस देकर अपने मित्रों-रिश्तेदारों को उपकृत करने का चलन तो आम हो चला है।

राज्य सरकारें भी कम दोषी नहीं है। होना तो यह चाहिए कि फर्जी लाइसेंस का एक भी मामला सामने आने के बाद पूरे राज्य में जिला कलेक्टरों की लाइसेंस शाखाओं की गहन जांच होती। जारी किए गए लाइसेंसों की पड़ताल होती। आज भी जांच हो जाए तो कई जगह यह कड़वी सच्चाई सामने आ जाएगी कि पैसे लेकर दुर्दान्त अपराधियों तक को लाइसेंस जारी कर दिए जाते हैं, जैसा कि पटना के गुंजन खेमका हत्याकांड की जांच में उजागर हुआ था। आज कौन सा ऐसा पुलिस अधिकारी होगा, जिसे यह नहीं पता होगा कि उसके इलाके में अवैध हथियार कहां बन रहे हैं, कौन बना रहा है और कौन बेच रहा है। पर कभी राजनीतिक दबाव में और कभी लालच से वशीभूत होकर वे आंखेे मूंदे रहते हैं।

चाहे अवैध हथियार हो या फर्जी लाइसेंस, इनके चलन को प्रश्रय देना देशद्रोह से कम नहीं है। छोटे-छोटे लालच या दबाव में इस शैतानी कारोबार को बढ़ावा देने वाले युवा पीढ़ी को जान-बूझ कर अपराध के दलदल में धकेल रहे हैं। ऐसे अफसरों-कर्मचारियों को कभी माफ नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि अपराध को प्रश्रय देना सबसे बड़ा अपराध है।

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