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फकीरी का स्वांग

जब से मुल्क की परमकुर्सी पर बैठेने वाले ने  खुद को ‘फकीर’ कहना शुरू किया
है तब से फकीर और फकीरी पर चर्चा चल पड़ी है।  बरसों पहले हमने एक कहानी
सुनी थी। किसी नेक आदमी ने ख्वाब देखा कि एक बादशाह जन्नत में बैठा है और

Dec 08, 2016 / 10:27 pm

शंकर शर्मा

nrendra modi

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व्यंग्य राही की कलम से
जब से मुल्क की परमकुर्सी पर बैठेने वाले ने खुद को ‘फकीर’ कहना शुरू किया है तब से फकीर और फकीरी पर चर्चा चल पड़ी है। बरसों पहले हमने एक कहानी सुनी थी। किसी नेक आदमी ने ख्वाब देखा कि एक बादशाह जन्नत में बैठा है और एक फकीर दोजख (नर्क) में। उसने आलिमों से पूछा कि इस बादशाह ने कौन-सा अच्छा काम किया जो जन्नत में आया और फकीर ने ऐसा क्या बुरा किया जो नर्क में पड़ा है। तभी भविष्यवाणी हुई- इस बादशाह ने फकीरों में अकीदत (श्रद्धा) रखने की वजह से जन्नत में आया और यह फकीर बादशाहों के साथ रहने की वजह से नर्क में। हमने अपनी नानी से पूछा- फकीर क्या है नानी बोली- फकीरी तो संसार का लोभ और कामवासना छोड़ देने में है।

अपने आपको फकीर कहने से आदमी फकीर नहीं हो जाता। अपने आपको फकीर कहने वाले एक शख्स को एक दिन किस्मत ने बादशाह बना दिया। एक दिन उसका एक पुराना साथी आया और हैरानी से बोला- तू तो अपने को फकीर कहता था। लेकिन अब नर्म गद्दों पर सोता है। तेरी फकीरी की कमली कहां गई?

बादशाह बने फकीर ने कहा- जरा धीरे बोल। दरअसल मैंने बादशाह बनने के लिए ही फकीर का चौला पहना था। इस मुल्क की रियाया उसे ही सर आंखों पर बिठाती है जो अपना सब कुछ त्याग कर फकीरों का बाना पहन लेते हैं। जब तूने मुझे पहले देखा था तब मुझे एक रोटी की चिंता थी अब मैं सारी दुनिया की चिंता करता हूं।

उसके दोस्त ने कहा- ईश्वर तुझे नर्क की आग से बचाए। लेकिन खुद को फकीर कहने वाला जब संसार के लोभ में पड़ जाता है तो उसकी दशा शहद में फंसी मक्खी की तरह हो जाती है। एक सच्चा फकीर ‘मैं-मैं’ नहीं करता। अब तू अपने आपको ‘फकीर’ कहना बंद कर दे। क्योंकि इससे तेरा स्वांग तो चल जाएगा लेकिन सच्चे फकीर और सच्ची फकीरी पर से अवाम का विश्वास उठ जाएगा।

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