जाहिर है, भारत ने साफ संकेत दे दिया है कि वह किसी दबाव में काम नहीं करेगा। रूसी एस-400 प्रणाली खरीदने के मुद्दे को लेकर अमरीका के साथ टकराव देखने को मिला था। भारत पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई तक की चेतावनी अमरीका ने दे रखी है। हालांकि अमरीका ने इसके स्थान पर विकल्प भी सुझाए थे। रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के अलावा आतंकवाद, एच1बी वीजा और ईरान से तेल खरीद पर अमरीकी प्रतिबंधों से उत्पन्न होने वाली स्थिति को लेकर भी इस वार्ता में चर्चा हुई। वार्ता के दौरान भारत ने अमरीका को साफ कहा है कि वह भारत से व्यापार में प्रतिबंधात्मक कदमों में शिथिलता प्रदान करे।
देखा जाए तो कई प्रमुख अमरीकी कंपनियां भारत को बड़े बाजार के रूप में देख रही हैं। इसके लिए जरूरी है कि आर्थिक खुलापन हो ताकि निवेश बढ़ सके। भारत के लिए भी अमरीका बड़े विदेशी बाजारों में है। भारत के कुल निर्यात का बीस फीसदी हिस्सा अमरीका में आता है। ईरान से भारत अपनी जरूरतों का दस फीसदी से ज्यादा तेल खरीदता है। अमरीका ने भारत सहित कई दूसरे देशों को ईरान से तेल का आयात बंद करने को भी कहा है। बड़ा मुद्दा आतंकवाद का भी है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस बात पर संतोष जताया है कि आतंकवाद से निपटने के मुद्दे पर भी ट्रंप प्रशासन ने भारत का मजबूती से समर्थन किया है। भारत ने हाल ही पुलवामा आतंकी हमले का सामना किया है।
पाकिस्तान को अलग-थलग कराने में उसे अमरीकी मदद की आवश्यकता होगी। अमरीकी विदेश मंत्री जब यह कहते हैं कि भारत और अमरीका दोनों एक-दूसरे की दुनिया में कहीं भी मदद कर सकते हैं तो उसके निहितार्थ समझे जा सकते हैं। जाहिर है, अमरीका खुद भी चाहता है कि भारत से उसके संबंधों में मजबूती बनी रहे। वैश्विक ताकत के रूप में उभरते चीन का असर कम करने के लिहाज से भी अमरीका के लिए यह जरूरी है। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की भी इस दिशा में अहम भूमिका रहने वाली है।