शुक्र में सात पीढ़ियों के अंश-सप्त पितृांश
Published: Nov 19, 2022 12:53:32 pm
Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: अन्न पार्थिव स्थूल पदार्थ है। पेड़-पौधे-तृण-लता सभी पृथ्वी पर उत्पन्न होते हैं। मनुष्य अन्न का भोग करता है। जठराग्नि में जाता है और शरीर की सप्त धातुओं का निर्माण करता है। अन्तिम धातु शुक्र बनता है। इसमें चेतना का भाग रहता है- शुक्राणु रूप में... 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' श्रृंखला में पढ़िए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-


Sharir Hi Brahmand : शुक्र में सात पीढिय़ों के अंश-सप्त पितृांश
Gulab Kothari Article: भारतीय संस्कृति आनन्द को ईश्वर का पर्याय मानती है। यहां दाम्पत्य भाव भी सनातन माना गया है। जैसे विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती आदि कभी नहीं बिछुड़े। हमारे विवाह संस्कार का आधार यही सृष्टिगत दृष्टि है। मानव दम्पती सात जन्म साथ चलते हैं। इतना लम्बा काल पिछली पीढिय़ों (पितृ प्राणों) से मुक्त होने में चाहिए- यदि दोनों को पुरुषार्थ के सहारे ही जीवन चलाना हो।
विवाह पूर्ण शास्त्रीय विधान है। कन्या का दान अपने स्वत्व का ही दान है। इसमें कन्या का पिता वर पक्ष के गोत्रादि का नाम लेकर वर को अपनी पुत्री सौंपता है। कन्या के हाथ को वर के हाथ में देता है। वर भी कहता है कि ''द्यौस्त्वा ददातु पृथ्वी त्वा प्रतिगृöातु' अर्थात् द्युलोक ने तुमको दिया है। पृथ्वी रूप में तुमको ग्रहण करता हूं। यहां कन्या के पिता को द्युलोक कहा गया है। द्युलोक उत्पादक है, पिता है, वर्षा करता है। वर्षा से अन्न, अन्न से वीर्य, वीर्य से पुरुष उत्पन्न होता है। कन्या पृथ्वी रूप है। जिस प्रकार पृथ्वी मेरी नाभि है। मुझे अन्न द्वारा बांधती हुई मेरी माता है, उसी प्रकार स्त्री की नाभि से सम्बद्ध ''रस-हरा' नाड़ी गर्भ की नाड़ी से जुड़ी होती है, उस रस-हरा के द्वारा बच्चा पोषक तत्त्व ग्रहण करता है। यहां वर का कन्या को पृथ्वी रूप में ग्रहण करने से यही अभिप्राय है कि तुम भी पृथ्वी के समान संतति को धारण कर वंश वृद्धि में सहायक बनो।