scriptGulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand 15 oct 2022 The karma that removes the cover is dharma | शरीर ही ब्रह्माण्ड : आवरण जो हटाए वह कर्म ही धर्म | Patrika News

शरीर ही ब्रह्माण्ड : आवरण जो हटाए वह कर्म ही धर्म

locationनई दिल्लीPublished: Oct 16, 2022 08:26:34 pm

Submitted by:

Gulab Kothari

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: जो कर्म में अकर्म को और अकर्म में कर्म रूप ब्रह्म भाव को देखता है, वही बुद्धिमान है। यही धर्म को समझने का धरातल है। कर्म को धारण करना ब्रह्म का धर्म है। ब्रह्म को धारण करना अकर्म का धर्म है... 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' श्रृंखला में पढ़िए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-

 

Sharir Hi Brahmand : आवरण जो हटाए वह कर्म ही धर्म
Sharir Hi Brahmand : आवरण जो हटाए वह कर्म ही धर्म
Gulab Kothari Article: अध्यात्म भारतीय संस्कृति का प्रधान अंग है। यह धर्म है अथवा अधर्म है ऐसे सन्देह जीवन में सभी के समक्ष उपस्थित होते हैं। इस संदेहात्मक स्थिति के लिए साधारणत: कहा जाता है कि 'आगे कुआ पीछे खाई'। गीता में कृष्ण ने इन्हीं परिस्थितियों में निर्णय किस प्रकार किया जाए, यह भलीभांति समझाया है। युद्धस्थल में विचलित अर्जुन को अद्वैत तत्त्व का उपदेश देते हुए कृष्ण ने कहा कि सबमें एक ही आत्मा है, जो अमर है, मात्र यह पंचभौतिक शरीर ही मरता है। यदि तुम इनको नहीं मारोगे तब भी इसकी मृत्यु निश्चित है। जातस्य हि धु्रवं मृत्यु धु्रवं जन्म मृतस्य च। (गीता 2.40) इसलिए युद्ध करो, यही तुम्हारा क्षत्रियोचित धर्म है।

कृष्ण के अनुसार कर्म ही धर्म है। यह कर्म तो उचित या अनुचित कुछ भी हो सकता है क्योंकि कर्म, कर्म है। कर्म धर्म कब बनता है? इस विषय में व्यास जी कहते हैं कि जो कर्म अपने आप को दु:खदायी हो, उन्हें दूसरों के लिए भी नहीं करना चाहिए। आत्मा के प्रिय-अप्रिय जानने वाले पुरुष को दूसरे के द्वारा किया गया जो कार्य उसे अच्छा न लगे, दूसरों के लिए कभी नहीं करना चाहिए। यही धर्म का सार है।
Copyright © 2021 Patrika Group. All Rights Reserved.