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आपकी बात, आत्महत्या के बढ़ते मामलों को कैसे रोका जा सकता है?

पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

Dec 07, 2023 / 05:05 pm

Gyan Chand Patni

आपकी बात, आत्महत्या के बढ़ते मामलों को कैसे रोका जा सकता है?

आपकी बात, आत्महत्या के बढ़ते मामलों को कैसे रोका जा सकता है?

सकारात्मक सोच होना जरूरी

निराशा के अत्यधिक भाव पैदा होने पर व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है। ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि कोई काम असंभव नहीं। इसके लिए हमेशा सकारात्मक सोच मन मे रहनी चाहिए। जीवन और मृत्यु तो ईश्वर के हाथ में होती है। व्यक्ति के हाथ में कुछ नहीं है। उसका काम तो केवल कर्म करना है फल देना तो ऊपर वाले के हाथ में होता है। लगन और मेहनत से सब कुछ स्रंभव हो जाता है। इसलिए हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें।
-अरविन्द विजयवर्गीय, बूंदी

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अकेलापन दूर करें

भागदौड़ भरी जिंदगी में अगर कोई व्यक्ति आपको अकेलेपन का शिकार मिले तो उसके साथ कुछ समय बिताएं और उसे हौसला देें। असल में एक दूसरे का सहयोग ही लोगों को जीने के लिए प्रेरित करता है।
-प्रियव्रत चारण, जोधपुर

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मनोचिकित्सक की मदद लें

आत्महत्या का मुख्य कारण निराशा है। इस तरह के मामले रोकने के लिए अवसाद के शिकार या निराश व्यक्ति को हौसला दें। मनोचिकित्सक से उपचार कराएं।
-निर्मला देवी वशिष्ठ राजगढ़ अलवर

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भावनात्मक संबल दें आत्महत्या रोकने के लिए मनोचिकित्सक से परामर्श लिया जाए। साथ ही अवसाद की स्थिति में पहुंचे लोगों को संभालें, उनको भावनात्मक संबल दें।
-साजिद अली चंदन नगर इंदौर।

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जागरूकता अभियान चलाया जाए

देश में आए दिन आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, जो एक गंभीर समस्या है। सरकार को आत्महत्या रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। जिला प्रशासन और सामाजिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। हर वार्ड में काउंसलिंग सेंटर खोलकर वहां उनकी समस्याओं का त्वरित निराकरण किया जाना चाहिए।
-आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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संबल देने की जरूरत

आत्महत्या रोकने में परिवार, मित्र और समाज की अहम भूमिका होती है। आर्थिक कारण, प्रेम प्रसंग या असफलता से तनाव व अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को चिह्नित कर समय पर संबल देने से ऐसे मामले रोके जा सकते हैं। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है।
-डॉ. बृज बल्लभ शर्मा, सवाई माधोपुर

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बच्चों को समय दें

किसी भी समस्या के कारण इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न होती है। बच्चों को समय नहीं देना, उनकी समस्याओं को नहीं समझना, समस्या का निराकरण नहीं करने से आत्महत्या के मामले बढ़ते हैं। माता पिता को चाहिए कि अपने बच्चों से बातें करें, उनकी समस्याओं को समझें। उसे लगे कि वह अकेला नहीं है, उसका परिवार उसके साथ है।
-सरिता प्रसाद, पटना

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