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प्रसंगवश : सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल इमारतें मरीजों को दे रहीं दर्द

मरीज को इलाज के साथ सुरक्षा की भी चिंता करनी पड़ती है। पता नहीं कब वह हादसे का शिकार हो जाए

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कोई हादसा होने के बाद चेतने की हमारे यहां जिम्मेदारों की पुरानी आदत है। हादसे को सबक के रूप में लेते हुए ही सही, प्रदेश के सबसे बड़े सवाई मानसिंह अस्पताल में छत का प्लास्टर गिरने पर मरीजों के घायल होने की घटना के बाद हरकत में आए स्वास्थ्य महकमे ने अब मेडिकल कॉलेजों से सम्बद्ध दूसरे अस्पतालों की सुध ली है।

इन अस्पतालों में रोगियों की सुरक्षा और भवनों के रखरखाव की कवायद के तहत चिकित्सा शिक्षा एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग ने संयुक्त रूप से नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इसके तहत प्रत्येक मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पताल में सार्वजनिक निर्माण विभाग की ओर से कायम चौकी मुख्य रूप से टूट-फूट व अन्य शिकायतों का समाधान करेगी। वार्षिक सर्वेक्षण कर भवन का फिटनेस प्रमाण-पत्र जारी किया जाएगा। मेडिकल कॉलेजों से सम्बद्ध अस्पताल ही नहीं, बल्कि दूसरे सरकारी अस्पतालों की इमारतों में भी कई खस्ताहाल हैं।

भवन निर्माण की खामी के चलते कभी छत तो कभी फॉल सीलिंग गिरने या अन्य टूट-फूट होने की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं। बीमारी या एक्सीडेंट में अपना इलाज कराने आए मरीजों को अस्पताल में होने वाली इन दुर्घटनाओं से भी दो चार होना पड़ रहा है। मरीजों को दर्द के इलाज के नाम पर नया दर्द मिल रहा है। इस प्रकार की घटनाओं का कारण अस्पताल में निर्माण के दौरान होने वाली खामियों की अनदेखी या मरम्मत की सुविधा नहीं होना प्रमुखता से माना जा सकता है।

आज प्रदेश में करोड़ों रुपए चिकित्सा के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं, वहीं निर्माण के नाम पर अस्पतालों को बाहरी तौर पर सजाया भी जा रहा है, लेकिन अस्पताल के वार्ड या अन्य स्थलों पर हुए निर्माणों की खामियों की जिम्मेदारी कोई भी लेने को तैयार नहीं है। हालत यह है कि अस्पतालों में मरीज को अपने इलाज के साथ-साथ सुरक्षा की भी चिंता करनी पड़ती है। पता नहीं कब, कहां और कैसे वह किसी लापरवाही भरे हादसे का शिकार हो जाए।

देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर चौकियां बनाने की कवायद भले ही हो रही हो, लेकिन मेडिकल कॉलेज से सम्बद्ध अस्पतालों से इतर जिला अस्पताल, सेटेलाइट अस्पताल, सीएचसी व पीएचसी की इमारतों में भी कई खस्ताहाल हैं। आए दिन हादसों के समाचार भी मिलते रहते हैं। मरीजों को राहत देने वाले सभी सरकारी अस्पतालों व अन्य स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण की गुणवत्ता नियमित रूप से परखी जानी चाहिए। खामी मिलने पर दोषियों पर सख्ती भी हो।

  • शरद शर्मा
  • sharad.sharma@in.patrika.com