scriptखर्च बढ़ाने से ही होगी मांग में वृद्धि | Increase in spenditure will increase demand | Patrika News
ओपिनियन

खर्च बढ़ाने से ही होगी मांग में वृद्धि

विकास की गति तेज करने के लिए ‘सरकारी अंतिम उपभोग व्यय में वृद्धि लानी होगी। अर्थव्यवस्था को तभी रफ्तार मिल सकती है, जब खर्च में बढोतरी होगी।

Jul 16, 2020 / 12:06 pm

shailendra tiwari

economy.jpg
सतीश सिंह , एसबीआई की पत्रिका ‘आर्थिक दर्पण के संपादक


कोरोना महामारी ने देश कीअर्थव्यवस्था को बहुत कमजोर कर दिया है, जिसे फिर से मजबूत करके ही लोगों को आर्थिक रूप से सबल बनाया जा सकता है। यह तभी मुमकिन हो सकता है, जब खर्च में बढ़ोतरी होगी। लोग खर्च करेंगे, तभी मांग में वृद्धि होगी और मांग बढऩे से उत्पादन और रोजगार में वृद्धि होगी, जिससे लोग आत्मनिर्भर होंगे और विकास को बल मिलेगा। चूँकि, कोरोना महामारी की वजह से करोड़ों लोग रोजगार से महरूम हो चुके हैं और स्व-रोजगार करने वालों का भी 3 महीनों स काम-धंधा ठप है। इस वजह से लोग खर्च नहीं कर रहे हैं। जिनके पास पैसे हैं भी तो वे अनावश्यक खर्च करने से परहेज कर रहे हैं। इसलिये, आर्थिक विकास को गति देने केलिए सरकार अब केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों को खर्च करने के लिए प्रोत्साहित कर रहीहै।

चालू वित्त में देश की 23 केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों के पूंजीगत खर्च कालक्ष्य 1,65,510 करोड़ रुपये है। अगर ये कंपनियाँ अपने पूंजीगत खर्च के लक्ष्यको पूरा करती हैं तो विकास की गति में इजाफा हो सकता है। कंपनियाँ इस लक्ष्य को हासिल करें के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री ने इन कंपनियों के शीर्षप्रबंधन केसाथ बैठक कर उन्हें इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कहा है। जान के साथ जहान को बचाने के लिये लॉकडाउन की शर्तों म ेंधीरे-धीरे राहत दी जा रही है. लॉकडाउन के कारण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधमियोंकी हालात बहुत ज्यादा खराब हो गई है। वे फिर से अपना कारोबार शुरू करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें तत्काल राहत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। हालाँकि, स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रही है, लेकिन गति अभी भी धीमी है। वित्तमंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार आनाशुरू हो चुका है।
बिजली और पेट्रोल के ताजा आंकड़े इसे प्रमाणित कर रहे हैं। बिजलीऔर पेट्रोल दोनों की खपत मई महीने में बढ़ी है। ई-वे बिल में भी बढोतरी हुई है।वैसे, मामले में अभी भी अनेक सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। समस्या मजदूरों एवं कामगारों की उपलब्धताकी भी है। लॉकडाउन की वजह से अधिकांश मजदूर एवं कामगार अपने गाँव चले गये हैं, जिन्हें वापिस काम पर बुलाना आसान नहीं है. सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा पूंजीगत खर्च के लक्ष्य को हासिल करने पर इसलिये जोर दे रही है, क्योंकि खर्च में वृद्धि किए बिना विकास के पहिये को नहीं घुमाया जा सकता है। अर्थव्यवस्था को मजबूतकरने के लिए निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) औरसरकारी अंतिम उपभोग व्यय (जीएफसीई) का अहम योगदान होता है। घरेलू और गैर-लाभकारी संस्थानों द्वारा की गई सेवाओं की अंतिम खपत व्यय को “निजी अंतिम उपभोग व्यय” कहतेहैं। “निजी अंतिम उपभोग व्यय” में घरों और गैर-लाभकारी संस्थानों, जैसे, मंदिर, गुरुद्वारे आदिद्वारा किये जा रहे अंतिम व्यय को शामिल किया जाता है। इसके तहत टिकाऊ एवं गैर-टिकाऊवस्तुओं व सेवाओं पर होने वाले अंतिम व्यय को शामिल किया जाता है।
आवास एवं अन्य किराये,मकान की लागत, उत्पादन की लागत,वेतन या मजदूरी का भुगतान,कर्मचारियों के लिये की गईभोजन की व्यवस्था, कपड़ों पर किये गये खर्चआदि को भी “निजीअंतिम उपभोग व्यय” में शामिल किया जाता है। इसके आकलन में घरेलू उत्पादन एवं निवेशको भी आधार बनाया जाता है। आमतौर पर “निजी अंतिम उपभोग व्यय” का मूल्यांकन बाजारकीमत पर किया जाता है, जबकि सरकारी कार्यों या सरकार यासरकार के अधीन काम करने वाली सरकारी कंपनियों द्वारा किये जाने वाले अंतिम उपभोग व्यय, मसलन,कर्मचारियों को दिया जाने वाला मुआवजा, सरकारी कार्यों से जु?े टिकाऊ व गैर-टिकाऊ वस्तुओं एवं सेवाओं आदि को “सरकारीअंतिम उपभोगव्यय”कहा जाता है।आंकड़ों पीएफसीई और जीएफसीई-वित्त वर्ष 2018-19 में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” में वृद्धि वर्षदर वर्ष के आधार पर 8.1त्न की दर से हुई, जो वित्त वर्ष 2017-18 में 7.4त्न की दर सेहुई थी। चालू वित्त वर्ष में भी कोरोना महामारी की वजह से इसके नकारात्मक रहने का अनुमानहै। वित्त वर्ष 2016-17के दौरान “सरकारी अंतिम उपभोग व्?यय”में वर्ष दर वर्ष आधार पर 5.8त्न की दरसे वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 2017-18 में ब?कर लगभग तिगुनीहो गई,जिसकाकारण सातवें वेतन आयोग की सि?ारिश को अमलीजामा पहनाना था। वित्त वर्ष 2018-19 में “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय”कम होने से इसमें भारी कमी आई और यह 9.2त्न के स्तर पर पहुँच गई।
पीएफसीई और जीएफसीई का जीडीपीके साथ नाता-
“निजीअंतिम उपभोग व्यय” व “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” एवंसकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)की गणना तिमाही आधार पर तथा वर्तमान व स्थिर मूल्यों पर की जाती है। “निजी अंतिम उपभोग व्यय”की गणना में भोजन, पेय पदार्थ, कपड़ा, फुटवेयर, आवास, पानी, बिजली, गैस,अन्य ईंधन, साज-सज्जा के सामान, घरेलू उपस्कर,रख-रखाव के सामान, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि से जु?े उत्पादों पर किये जाने वाले खर्च को शामिल किया जाताहै, जो जीडीपी गणना के भी आधार होते हैं। वित्त वर्ष 2011-12और वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान कुल जीडीपी में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” का औसत हिस्सा 57.5त्न रहा और इस अवधि में इसकी वृद्धि दर औसतन 6.8त्न रही। “निजी अंतिम उपभोगव्यय” हमेशा से जीडीपी वृद्धि का महत्वपूर्ण कारक रहा है। वित्तवर्ष 2016-17 में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” का जीडीपी वृद्धि में दो तिहाई कायोगदान रहा, जबकि इस दौरान “सरकारीअंतिम उपभोग व्यय” का जीडीपी में 29त्न का योगदान रहा था. वित्तवर्ष 2018-19 के दौरान जीडीपी में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” की औसतन हिस्सेदारी 56त्नथी, जो पहले के वर्षों के मु?ाबले कम थी। वित्त वर्ष 2018-19 में “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” का भी जीडीपीमें योगदान कम रहा।
आंकड़ों से साफ है, “निजी अंतिम उपभोग व्यय” और “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय”के योगदान के बिना जीडीपी में बढ़ोतरी नहीं हो सकती है। मौजूदा परिदृश्य में, जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वैश्विकजीडीपी के वित्त वर्ष 2020 में (-3)प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जिसका कारण “निजी अंतिम उपभोग व्यय” एवं “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय”में कमी आना है। लॉकडाउन की वजह से अधिकांश लोग बेरोजगार हो गये हैं और उनके पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं।अर्थव्यवस्था को तभी रफ्तार मिल सकती है, जब खर्च में बढोतरी होगी। ऐसे में विकास की गति को तेज करने के लिए “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” में वृद्धि लाना ही फिलहाल सरकार के पास एकमात्र विकल्प है।

Home / Prime / Opinion / खर्च बढ़ाने से ही होगी मांग में वृद्धि

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो