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श्रीमती अवस्थी ने मुझे फोन लगाया – भाई साहब, क्या बीमे की राशि पर भी बाहरी लोगों का हक है? मैंने कहा – भाभी जी, जहां तक मुझे याद है, मैंने अवस्थी जी को टर्म इंश्योरेंस ‘विवाहित महिला सम्पत्ति अधिनियम’ के अंतर्गत लेने का सुझाव दिया था। इस बाबत मैंने बीमा एजेंट निखिल से बात कर पुष्टि भी कर ली। निखिल ने बताया कि बीमा बिल्कुल सुझाए गए तरीके से ही लिया गया था। श्रीमती अवस्थी अभी असमंजस में ही थीं कि मैंने उन्हें फोन किया और अवगत कराया कि उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और बाहरी लेनदारों से टर्म इंश्योरेंस की राशि बिल्कुल सुरक्षित है क्योंकि अवस्थी जी का बीमा ‘विवाहित महिला सम्पत्ति अधिनियम 1874’ की धारा 6 के तहत हुआ था। मैंने श्रीमती अवस्थी से कहा, निश्चिंत रहिए, व्यवसाय और अन्य सम्पत्तियां भले ही लेनदारों के पैसे चुकाने में काम आ जाए लेकिन ये 50 लाख रुपए सिर्फ आपके हैं। यह भी देखें : आपकी बात, क्या कोरोना गाइडलाइन के प्रति गंभीरता कम हो रही है? दरअसल, इस अधिनियम के तहत करवाए जाने वाले बीमे में ये स्पष्ट रूप से उल्लेखित होता है कि बीमित व्यक्ति के मरणोपरांत क्लेम की राशि का उपयोग सिर्फ लाभार्थियों के हित में होगा एवं किसी अन्य दायित्व का उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा। ऐसे बीमे एक ट्रस्ट की तरह होते हैं, जिसमें मिलने वाली राशि का उपयोग बीमित की इच्छानुसार होता है। मेरा सुझाव सभी को यही है कि अगर आप व्यवसायी हैं, आपके उपर देनदारियां हैं तो जो भी बीमा करवाएं ‘विवाहित महिला सम्पत्ति अधिनियम’ की स्पष्ट शर्त के साथ करवाएं ताकि बाहरी लेनदारों से दावे की राशि सुरक्षित रहे। इस तरह के बीमे में आप बाद में लाभार्थी बदल नहीं सकते, इसलिए लाभार्थी का विकल्प सोच-समझ कर दीजिएगा।