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किसी घराने तक सीमित नहीं थीं किशोरी ताई

सबसे बड़ी बात यह कि किशोरी ताई लोकप्रियता के किसी भी फार्मूले में नहीं पड़ती थी। समारोहों में भी वे अपनी शर्तों पर शिरकत करती थीं।

Apr 05, 2017 / 04:15 pm

कला समीक्षक 

कहने को तो वे हिंदुस्तानी ख्याल में गायन के जयपुर अतरौली घराने से आती थीं लेकिन किशोरी अमोणकर ने संगीत में ऐसी विद्वता और विलक्षण ऊंचाई हासिल कर ली थी कि फिर वे किसी घराने तक सीमित न रहीं। दूसरे शब्दों में कहें कि गायन का कोई घराना उनसे अछूता न रहा। रहे भी कैसे? आखिर वो मोगुबाई कुर्दीकर की बेटी थीं। उन्हें गायन ही नहीं, संकल्प और संघर्ष भी विरासत में मिला था। 
चौरासी बरस की उम्र तक ‘किशोरी ताई’ उस विरासत को थामे रहीं। किशोरी अमोणकर के लिए संगीत, एकांत की साधना थी। अति विलंबित आलाप और मंथर गति से गाते हुए जैसे वो आह्वान करती नजर आती थीं। सबसे बड़ी बात यह कि किशोरी ताई लोकप्रियता के किसी भी फार्मूले में नहीं पड़ती थी। समारोहों में भी वे अपनी शर्तों पर शिरकत करती थीं। आयोजकों का भी दम फूल जाता था। वे साफ कह देती थीं कि उनके गायन के बीच में न कोई आवाज होगी, न वाहवाह, न कोई हरकत।
एक साक्षात्कार में किशोरी अमोनकर ने कहा था, ‘लोग कहते हैं कि मैं दंभी और गुस्सैल हूं। पर मुझे भी पता नहीं ऐसा क्यों कहा जाता है?’ वे सवाल करती थीं- क्या आपने मुझे कभी किसी कंसर्ट में हंसते हुए या श्रोताओं से बात करते देखा है? मैं अमूर्त पर फोकस करना चाहती हूं। ऐसे समय में मुझे अपनी देह को भी भूलना पड़ता है। उसके लिए मुझे श्रोताओं की मदद चाहिए, उनके अवरोध नहीं। 
किशोरी ताई का मानना था कि संगीत मनोरंजन और श्रोताओं को रिझाने के लिए नहीं होता है। कोई भी दर्शक एक कलाकार के एकांत में बाधक नहीं हो सकता। किशोरी अमोणकर की दिवंगत मां मोगुबाई कुर्दीकर भी अपने समय की महान गायिका थीं। 
यह संगीत का वह दौर था जब मर्दों का प्रभुत्व था। उस दौर में संगीत के क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं को अच्छे नजरिए से नहीं देखा जाता था। मोगुबाई इस दौर में अपनी तीन संतानों को पालने के लिए कार्यक्रम करती जरूर थीं लेकिन कदम-कदम पर उनको अपमान भी सहना पड़ता था। 
खुद किशोरी ताई का कहना था कि मेरी सबसे बड़ी गुरु मेरी मां ही थीं। किशोरी के संगीत की खासियत यह थी कि उन्होंने अपने संगीत में जीवन के दर्द को पिरोया। उनके संगीत में उदासी भी है तो आल्हाद भी। अमोल पालेकर और संध्या गोखले ने ‘भिन्न षड्ज’ नाम से किशोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई है। उस वृतचित्र के एक अंश में तबला उस्ताद जाकिर हुसैन कहते हैं, ‘किशोरी ने जो भी राग गाए वे अमर हैं।’ जिस तरह उस्ताद अमीर खान के गाए राग मारवा की बात की जाती है, वही महानता किशोरी ताई के गाए राग भूप को हासिल हैं।
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में अध्यापन, बीबीसी की पूर्व पत्रकार

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