सरकार खुद ही मान रही है कि बिना बीमा कराए वाहनों से हादसों का शिकार बन पैसे-पैसे को मोहताज होनेे वालों की सूची लम्बी है। हादसों में व्यक्ति की मौत होने पर परिजनों की पीड़ा तो अपनी जगह है ही, घायल होने पर इलाज में भारी खर्च को भुगतने का भी संकट है। उपचार पर खर्च के चलते परिवारों के बर्बाद होने में देर नहीं लगती। साफ तौर से वाहनों का बीमा सुरक्षा कवच देता है। बिना बीमा कराए वाहनों की जितनी ज्यादा संख्या होगी, आम आदमी के लिए जोखिम उतना ही बड़ा होगा। जो आंकड़े सामने आए हैं, उनके मुताबिक तो देश की बड़ी आबादी यह जोखिम झेल रही है। इसकी सीधी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है। पर चिंता इसी बात की है कि यह तंत्र सडक़ पर सरपट दौडऩे वाली हर गाड़ी का बीमा सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है। यह स्थिति तो तब है जब वाहनों के लिए तृतीय पक्ष बीमा (थर्ड पार्टी इंश्योरेंस) अनिवार्य है। लेकिन ढर्रा यह हो चला है कि वाहन खरीद के समय यह बीमा करवाने वाले ज्यादातर वाहन मालिक इसके नवीनीकरण के प्रति गंभीरता नहीं बरतते। इतनी बड़ी संख्या में बिना बीमे के वाहन सड़कों पर दौड़ना इसका भी प्रमाण है कि लापरवाह लोगों को कानून का डर नहीं है। दूसरी ओर, वाहनों की जांच व्यवस्था भी भगवान भरोसे ही है। सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि वाहनों का बीमा है या नहीं, इसकी निगरानी करने वाला तंत्र वाहनों की फिटनेस को भी फिर कितना और किस तरह से परख रहा होगा।
बिना फिटनेस के वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका ज्यादा रहती है। सरकार को इसे गंभीरता से लेना ही होगा। तकनीक के इस दौर में ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए जिसमें किसी भी तरह की दस्तावेजी खामी वाले वाहन की तुरंत पहचान कर उसका सडक़ से हटना स्वत: ही सुनिश्चित हो जाए।