PATRIKA OPINION समाज व सिस्टम में सुधार से ही बढेंग़े
दुर्भाग्यजनक तथ्य यह है कि कई ऐसे मामलों में रेप व गैंगरेप के आरोपियों का कुछ नहीं बिगड़ पाता। कुछ तो हमारा सामाजिक ताना-बाना ही ऐसा है जिसमें कई बार पीडि़ता या परिजन अदालतों की चौखट तक पहुंचने का साहस ही नहीं जुटा पाते। वहीं कई बार पुलिस की जांच प्रक्रिया ही न्याय में बाधक बनती रही है। जरूरत इस बात की है कि समाज व सिस्टम दोनों में सुधार हो।
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सजा के मामले पहले गैंगरेप का शिकार होने की अमानवीय त्रासदी, इसके बाद बिन ब्याही मां बनने का दर्द और लोकलाज का डर। उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में नाबालिग अवस्था में गैंगरेप का शिकार हुई महिला की कहानी समाज में मौजूद राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों की घिनौनी करतूत का आईना है। ऐसे हादसे के बाद कम उम्र में ही मां बनने का दर्द झेलने वाली इस महिला को निश्चित ही दरिंदों को सजा दिलवाकर संतोष मिला होगा जिन्होंने उसके साथ यह दुष्कर्म किया। बड़ी बात उस बेटे के साहस की भी है जिसने हकीकत से रूबरू होने के बाद घटना के सत्ताईस बरस बाद गैंगरेप करने वालों के खिलाफ न केवल मामला दर्ज कराया बल्कि डीएनए परीक्षण के जरिए मां को न्याय दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समाज के लिए कलंक साबित होने वालों को जेल के सींखचों में जाना ही चाहिए। अपनी बिन ब्याही मां की दर्दनाक कहानी सुनने के बाद बेटे ने मां के दर्द को जिस तरह से महसूस किया, वह स्तुत्य है। ऐसा इसलिए कि आम तौर पर बिन ब्याही मां व अनचाहे शिशु का जन्म होने पर समाज की नजरें भी अलग तरह की हो जाती हैं। इस घटनाक्रम में भी गैंगरेप पीडि़ता को कम संकट नहीं झेलने पड़े। चिकित्सकीय बाध्यता की वजह से पहले बच्चे का जन्म देने की विवशता, लोकलाज के डर से अपनी ही संतान को रिश्तेदारों के यहां छोडऩे की मजबूरी व विवाह बाद अपने पति से ठुकराए जाने का दोहरा संकट किसी भी महिला को तोडऩे के लिए काफी होता है। समाज में ऐसी विवशताओं का सामना करने वाली सभी महिलाएं न तो इतना साहस जुटा पातीं कि बिन ब्याही मां बनने की कहानी उस बेटे को सुना सकें, जिसका जन्म भी इसी दरिंदगी का नतीजा था। न ही ऐसा कभी देखने -सुनने को मिलता कि कोई बेटा सब कुछ जानकार भी दुष्कर्मियों को सजा दिलाने के लिए हर जतन करने की हद तक पहुंच गया हो। इस मां ने अपने बालक को जो संस्कार दिए होंगे, उसी की परिणति इस साहस के रूप में सामने आई। कोर्ट ने समूचे प्रकरण की संवेदनशीलता समझते हुए सुनवाई के बाद गैंगरेप के दोनों दोषियों को दस-दस साल की सजा सुना दी है।
दुर्भाग्यजनक तथ्य यह है कि कई ऐसे मामलों में रेप व गैंगरेप के आरोपियों का कुछ नहीं बिगड़ पाता। कुछ तो हमारा सामाजिक ताना-बाना ही ऐसा है जिसमें कई बार पीडि़ता या परिजन अदालतों की चौखट तक पहुंचने का साहस ही नहीं जुटा पाते। वहीं कई बार पुलिस की जांच प्रक्रिया ही न्याय में बाधक बनती रही है। जरूरत इस बात की है कि समाज व सिस्टम दोनों में सुधार हो।
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