पैरेंट्स में शराब की लत एवं व्यक्तित्व विकार से ग्रसित होने पर उनके बच्चों के मानसिक विकास पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है। अवसाद, नशे की लत और आपसी संबंधों का निर्वहन करने में समस्याएं दिखाई देती हैं। ऐसे घरों का वातावरण बेहद जटिल होता है और बच्चे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के शिकार रहते हुए वयस्क होते हैं। बचपन में महसूस किए गए मानसिक आघात और पेरेंट्स के प्रति अव्यक्त नफरत मूल में होने के कारण ये बेहद शक्की स्वभाव के हो जाते हैं। भय और दहशत के माहौल में पले ऐसे वयस्क कंट्रोलिंग पार्टनर के रूप में सामने आते हैं, जिस कारण से इनकी वैवाहिक जिन्दगी असामान्य रहती है। स्नेह कर पाना इनके लिए पहाड़ चढऩे जैसा होता है। अपने व्यवहार और भावों पर नियंत्रण करना कई बार ऐसे वयस्कों के लिए काफी कठिन होता है। ये अकसर क्रोध, शर्म, कुंठा और ईष्र्या जैसे नकारात्मक भावों से घिरे रहते हैं। ख़ुशी और आनंद की अभिव्यक्ति बेहद कठिन होती है।
जागरूक लोग आजकल ऐसी समस्याओं के लिए मनोचिकित्सकों से मिलकर इनके हल ढूंढ लेते हैं। किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या के लिए कलंक का भाव उसे सहायता न मिल पाने का सबसे बड़ा कारण बनता है। इसलिए उपरोक्त उदाहरण में संजना को मनोचिकित्सक के पास आने में करीब 30 साल लग गए। संभवत: यदि पहले सहायता ले ली जाती, तो वैवाहिक जीवन भी बेहतर बनाया जा सकता था। भारत में पुरुषों में शराब पीने की प्रवृत्ति महिलाओं से काफी ज्यादा है। इसलिए हमारे पास आ रहे लोगों में पिता की शराब की लत से प्रभावित बेटियों का प्रतिशत अधिक रहता है। कई बार ऐसे मामलों में फैमिली थेरेपी की भी जरूरत होती है।
(लेखक मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हैं और सुसाइड के खिलाफ ‘यस टु लाइफ’ कैंपेन चला रहे हैं)