रिपोर्ट के तथ्यों को देखें तो एक तरह से 2020 में लोकतांत्रिक दिशा में बढ़ते देशों की संख्या, निरंकुश शासन की दिशा में बढ़ते देशों की संख्या के आगे छोटी पड़ गई। एक तरह से कुछ देशों में लोकतंत्र का मुलम्मा भर चढ़ा है लेकिन नागरिकों के प्रति कार्रवाई अधिनायकवादी सोच की ही रही है। कोरोना महामारी के दौर में जब समूची दुनिया सेहत के बड़े खतरे का सामना कर रही थी उस वक्त उम्मीद तो यह की जा रही थी कि खुद को लोकतंत्र का पक्षधर बताने वाले देश महामारी से बचाव के प्रयासों के साथ लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के काम को और गति देंगे। लेकिन हुआ इसके विपरीत। इस पूरे दौर में मानवाधिकारों का जमकर हनन हुआ। सरकारों ने महामारी की आड़ में विरोधियों का मुंह बंद करने का काम भी खूब किया। जिस संगठन ने यह रिपोर्ट जारी की है, 34 देश उसके सदस्य हैं। यह एक तरह से यूरोपीय थिंक टैंक है।
संगठन की रिपोर्ट में लोकतंत्र का बड़ा पैरोकार माने जाने वाले अमरीका को पहली बार इस सूची में रखना दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों पर आए संकट का संकेत करने को काफी है। दुनिया का सबसे ताकतवर व बड़ा लोकतंत्रवादी देश कहा जाने वाला अमरीका ही लोकतंत्र की रक्षा में पिछड़ रहा हो तो जिन देशों में निरंकुश शासन है वहां के हालात की तो सहज ही कल्पना की जा सकती है। यह बात और है कि अमरीका गाहे-बगाहे दूसरे देशों को लोकतंत्र को लेकर नसीहत देता रहा है।
सरकारें जब एकतरफा फैसला लेती दिखती हैं तो लोकतंत्र पर खतरा मंडराता नजर आता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह नागरिक स्वतंत्रता को बाधित करने के सरकारोंं के प्रयास है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं को पहल कर नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए।