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Patrika Opinion : समस्याएं भी पैदा कर रहा है प्रवासियों से मिल रहा धन

खाड़ी देशों से आने वाले डॉलरों ने केरल के रियल एस्टेट बाजार में महंगाई बढ़ाई है। यानी बाहर से आने वाली राशि के खतरे भी नजर आने लगे हैं।

जयपुरMay 22, 2024 / 05:02 pm

विकास माथुर

संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था द इंटरनेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर माइग्रेशन ने वर्ष 2024 के लिए वल्र्ड माइग्रेशन रिपोर्ट जारी की है। आंकड़ों से भरी इस रिपोर्ट को कई डेटा टूल्स के साथ जारी किया गया है, जो अनुसंधानकर्ताओ, नीति निर्माताओं औऱ मीडिया के लिए सहायक है। प्रवासी विरोधी माहौल में यह डेटा चर्चाओं को बल देता है। क्या प्रवासन एक मानवाधिकार है? भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अधिकार देता है कि वह इस देश में स्वतंत्र रूप से कहीं भी आ-जा सके पर सीमा पार जाने आने का मामला कुछ अलग है। आर्थिक अवसरों के लिए प्रवासन करना निश्चित तौर पर मानवाधिकार नहीं है पर जब कोई व्यक्ति पैसा कमाने के लिए किसी अन्य देश में जाता है तो उसे स्वाभाविक रूप से अंतरराष्ट्रीय समझौतों और कानून का संरक्षण मिल जाता है। ये प्रावधान कामगारों को अत्याचार से बचाते हैं और कुछ मूलभूत अधिकारों की रक्षा करते हैं।
विदेश से प्रवासियों द्वारा भेजी गई आय प्राप्त करने के मामले में भारत का स्थान पहला है। 2022 के दौरान भारत ने 111 अरब डॉलर की राशि प्राप्त की। भारत को विदेश से मिलने वाली प्रवासी आय की राशि बढ़ती जा रही है और 2010 से यह दोगुनी से अधिक हो गई है। साथ ही इसमें सालाना 6 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है, जो जीडीपी वृद्धि दर से अधिक है। तुलनात्मक रूप से चीन की प्रवासी आय घट रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत के मुकाबले यह राशि एक चौथाई ही मिलती है।
भारत को प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम में सर्वाधिक योगदान खाड़ी देशों का है, जहां निर्माण, रिटेल, सुरक्षा, परिवहन क्षेत्र में रोजगार के साथ अर्ध कुशल कामगारों की भी मांग है। एक ब्लू कॉलर कर्मचारी द्वारा भारत भेजी जा रही औसत राशि कुछ हजार डॉलर है जो उसकी आय का एक महत्वपूर्ण भाग है और भारत में रह रहे उसके परिजनों को इससे सहारा मिलता है। इस राशि में लेन-देन का खर्च अत्यधिक होता है करीब 6 प्रतिशत। साथ ही मुद्रा विनिमय दर का भी जोखिम रहता है। दूसरी ओर भारत से बाहर भेजी जाने वाली प्रवासी अर्जित आय भी बढ़ रही है।
आरबीआइ की ‘लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि 2023—24 में यह राशि संभवत: 32 अरब डॉलर से अधिक हो गई है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 25 प्रतिशत अधिक दर है। बाहर से स्वदेश आने वाली राशि के विपरीत स्वदेश से बाहर जाने वाली राशि धनाढ्य वर्ग द्वारा भेजी जाती है। यह राशि वे अपने बच्चों की पढ़ाई व अन्य खर्चों के लिए भेजते हैं। भारत में बाहर से आने वाली राशि व्यापार घाटे और विदेशी विनिमय के उतार-चढ़ाव के संदर्भ में मैक्रो आर्थिक स्थिरता लाती है।
सवाल यह है कि बाहर जाने वाले मजदूरों को भारत में ही रोजगार नहीं मिल जाना चाहिए? क्या बाहरी देशों में जाकर काम करने की यह प्रवृत्ति निर्भरता का लक्षण तो नहीं? केरल को 25 प्रतिशत आय इसी प्रवासी राशि से होती थी जो अब कम होकर 20 प्रतिशत रह गई है। इस प्रकार केरल प्रति व्यक्ति आय के संदर्भ में अव्वल राज्य बना लेकिन साथ ही यहां मजदूरों की कमी भी होने लगी जो बिहार, झारखंड व उड़ीसा से पूरी की जाने लगी। खाड़ी देशों से आने वाले डॉलरों ने केरल के रियल एस्टेट बाजार में महंगाई बढ़ाई है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि बाहर से आने वाली राशि का परिणाम मिला-जुला ही होगा। यह राशि उत्पादक निवेश और निर्माण इकाइयों में नहीं लगती है तो इससे दीर्घकालिक समस्याएं हो सकती हैं। भारत में देखा गया है कि ज्यादातर पुरुष ही प्रवासी होते हैं और महिलाएं स्वदेश में रह कर घर और बच्चे संभालती हैं। इस प्रकार यह एक तरह का लैंगिक भेदभाव हो जाता है जबकि श्रीलंका और फिलीपीन्स में ऐसा नहीं है। वहां की महिलाएं भी देश से बाहर जाकर काम करती हैं।
भारत सर्वाधिक आर्थिक प्रवासन वाला देश है। देश के अंदर भी लोग एक शहर से दूसरे शहर प्रवासी होकर जाते हैं। भारतीयों का अंतरराष्ट्रीय प्रवासन पूर्णत: अलग विषय है। भारत विश्च व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) वर्क परमिट की पैरवी कर रहा है। प्रवासी विरोधी दौर में कामगारों और सेवा प्रदाताओं की आवाजाही स्वतंत्र होने में अभी समय लगेगा। तब तक हम अपनी प्रवासी आय देख कर खुश हो सकते हैं।
— अजीत रानाडे

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