चाहे जिला प्रशासन हो, सिंचाई विभाग हो, नगर निगम हो या पीडब्ल्यूडी हर जगह जनता के पैसे को उड़ाने की होड़ लगी है। न कोई योजना और न कोई रणनीति। नगर निगम तो भ्रष्टाचार के अड्डे बने हुए हैं। अफसरों और जनप्रतिनिधियों को अतिक्रमण करा-करा अपनी जेबें भरने और पाप की कमाई से अपने बच्चों को पालने से फुर्सत नहीं है। पूरा कार्यकाल इस जुगत में निकाल देते हैं कि सफाई के ठेके से कितना कमाएं, अतिक्रमणकारियों को धमका कर कैसे जेबें गर्म करें। भर्तियों के नाम पर किस तरह कमाएं।
अफसरों से लेकर अधिकांश पार्षद तक सब जनता के दुखदर्द से दूर अपना-अपना हित साधने में जुटे हुए हैं। बरसात से पहले पूरी योजना बननी चाहिए थी। क्या अफसर इतना भी नहीं सोच पाते कि किसी दिन ज्यादा बारिश हुई तो शहर का क्या होगा। नालों की सफाई के लाखों के ठेके दिए जाते हैं। मलबा निकाल कर नाले-नालियों के पास छोड़ दिया जाता है। बारिश हुई और मलबा अंदर। अफसरों का क्या बिगड़ता है, जनता भुगते। जनप्रतिनिधी भी अपनी-अपनी तरह से ‘व्यस्त’ हैं। एक-दो दिन में अपने-अपने इलाकों में घडिय़ाली आंसू बहाते मिल जाएंगे।
बेशर्मों… पानी के साथ जो मिट्टी कॉलोनियों और सड़कों पर आ गई, उसे हटाने के लिए फिर ठेके उठेंगे। फिर कमीशनखोरी होगी। सबने ठान लिया है कि शहर का हेरिटेज सिटी का दर्जा छिनवा कर दम लेंगे। रामगढ़ की बात आती है तो हंसी में उड़ा दिया जाता है। जौहरी बाजार के बरामदे खाली करा देने की इच्छाशक्ति दिखाने वाले मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की इच्छाशक्ति रामगढ़ के नाम पर गायब हो जाती है। वे मानकर बैठचुके हैं कि रामगढ़ अब कभी नहीं भर सकता। वह मर चुका है। प्रभावशाली लोग उसके जलग्रहण क्षेत्र पर कब्जा कर चुके हैं।
क्षुद्र राजनीति के चलते सैकड़ों एनीकट बन चुके हैं। कानोता बांध पर चली चादर इस बात का प्रमाण है कि इतनी बारिश किसी भी जलाशय के जलस्तर को कहीं का कहीं पहुंचा सकती है। पर कौन ध्यान दे। अदालत का दखल तक बौना साबित हुआ। स्वायत्त शासन विभाग में भी ऐसे अफसरों का राज काबिज है, जो स्वयं कानून से खिलवाड़ करते रहे हैं। वे नगर निगमों की व्यवस्था क्या सुधारेंगे।
जयपुर की जनता आज क्रुद्ध है। उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा? क्या जिम्मेदार अफसरों से वसूली की जाएगी या जनता से ‘वसूली’ करने की उनकी छूट जारी रहेगी। जनता को यह तो अपेक्षा करनी ही नहीं चाहिए कि किसी अफसर या किसी जनप्रतिनिधि को शर्म आएगी। वे सब बेशर्म और संवेदनाशून्य हो चुके हैं।
प्रवाह : तिराहे पर कांग्रेस
प्रवाह : जवाबदेही कानून फिर ठंडे बस्ते में
प्रवाह : भ्रष्टाचार के रखवाले
[typography_font:18pt;” >प्रवाह: महापाप से बचो
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