scriptप्यार से नफरत तक | Rajasthan Assembly election and its affect on politics | Patrika News
ओपिनियन

प्यार से नफरत तक

‘काला कानून’ लाने वाली सरकार को मतदाता ने उखाड़ फेंकने का जज्बा दिखा दिया। मतदाता की परिपक्वता बधाई की पात्र है।

Feb 02, 2018 / 10:04 am

Gulab Kothari

PM narendra modi

pm narendra modi, amit shah

एक चावल बता देता है कि देगची के चावल पक गए अथवा नहीं। कल राज्य के सत्रह विधानसभा क्षेत्रों (दो लोकसभा सीटों के १६ तथा मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्र) पर हुए उपचुनावों ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि राज्य में भाजपा के लिए अब स्थान नहीं बचा। इस बार सभी सत्रह विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा हार गई। इन चुनावों ने यह धारणा भी खत्म कर दी कि, शहरी मतदाता की पहली पसंद भाजपा है। अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण और अलवर शहर जैसे उसके परम्परागत किले भी ढह गए। ‘काला कानून’ लाने वाली सरकार को मतदाता ने उखाड़ फेंकने का जज्बा दिखा दिया। मतदाता की परिपक्वता बधाई की पात्र है। वैसे तो सरकार भी बधाई की पात्र है जिसके काले कानून विधेयक ने मतदाताओं को अपना पूर्व निर्णय बदलने का मार्ग प्रशस्त किया। कांग्रेस के लिए तो सही मायनों में ये सीटें झोली में आकर गिरी हैं। हालांकि मांडलगढ़ कांग्रेस प्रभारी ने दो प्रत्याशियों के सहारे भाजपा को जीत का अवसर दे दिया था। लेकिन जनता की समझ पैनी साबित हुई।
दो वर्ष पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मुझसे पूछा था कि राजस्थान सरकार के क्या हाल हैं? तब मैंने कहा था कि यदि आज ही चुनाव हो जाएं तो भाजपा को ३०-३५ से ज्यादा सीटें मिलना संभव ही नहीं है। उनको मेरी बात कहां गले उतरने वाली थी! मुझ पर नाराज भी नजर आए थे। आज तो उनको मेरी बात की सत्यता अक्षरश: समझ में आ गई होगी। हालांकि इस बीच शाह जब भी राजस्थान प्रवास पर आए, उन्होंने मुक्त कण्ठ से सरकार की प्रशंसा कर सिर पर चढ़ाने में कसर नहीं छोड़ी। उनको क्या लाभ मिला, वे ही जानें। भाजपा की तो लोकसभा में दो सीटें कम हो गईं।
पं. बंगाल के उपचुनाव भी भाजपा हार गई। अभी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश में उपचुनाव होने हैं। लोकसभा में भाजपा का अपना बहुमत किनारे लगता जा रहा है। भाजपा की इस स्थिति से न तो राजस्थान की मुख्यमंत्री और न अमित शाह का कुछ बिगडऩे वाला है। दीर्घकालीन नुकसान भारतीय जनता पार्टी का ही होगा। ये तो अपने-अपने घर चले जाएंगे। इसके लिए पार्टी को ही स्थितियों पर चिंतन करना होगा। वर्ना दूसरे राज्यों में भी ऐसी नौबत आ सकती है। गुजरात में स्वयं प्रधानमंत्री ऐन वक्त पर कमान नहीं संभालते तो नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों ने वहां भी हार की पटकथा लिख ही दी थी।
हाल ही में प्रधानमंत्री के हाथों राजस्थान सरकार ने रिफाइनरी का पुन: शिलान्यास करवाया है। नाम कुछ भी दिया होगा। जनता तो जानती है कि प्रधानमंत्री तक को सच्चाई से कितना दूर रखा जाता है। जो आंकड़े विकास दिखाते हैं, उनमें किसानों की मौत की छाया दिखाई नहीं देगी। राज्य में हत्या, दुष्कर्म कैसे रोजमर्रा की घटनाओं जैसे नजर आएंगे? आम आदमी आज यह सोच बैठा है कि सरकार स्वयं जाने की तैयारी में अपने झोले भर रही है।
भाजपा का अहो भाग्य ही कहा जाएगा कि उसके प्रान्तीय अध्यक्ष अशोक परनामी भी दोनों हाथों पार्टी की जड़ें खोदने में ही लगे हैं।
कुछ मंत्रीगण तो जनता से पूरी तरह मुंह फेर चुके। स्वास्थ्य, स्थानीय निकाय, परिवहन, सडक़, जल, शिक्षा जैसे सार्वजनिक जीवन से जुड़े विभाग भी जनता का ही दोहन कर रहे हैं। इन पर नियंत्रण रखने वाले, संगठन के मुखिया के नेतृत्व में प्रदेश भर में अतिक्रमण और अराजकता का माहौल बना हुआ है। फिर भी दिल्ली प्रशंसा करते नहीं थकता। कुछ तो राज है!
राजस्थान में पहले भी पांच उपचुनाव हो चुके हैं। भाजपा को दो सीटें ही मिली थीं। यानीकि कुल २२ विधानसभा क्षेत्रों में से बीस हाथ से निकल गए। इस बार तो भाजपा मानो किनारे पर ही बैठी थी। मतदाता ने कुहनी मारी और नीचे गिर पड़ी। निष्कर्ष यही निकला कि सन् २०१८ का विधानसभा चुनाव भी इसी सरकार के नेतृत्व में लड़ा गया तो राजस्थान में भाजपा बचेगी क्या? हालांकि आज ही एक भाजपा प्रवक्ता टीवी पर बोल रहे थे कि दो-तीन चुनाव हारने से भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ता। हम तो दो से उठकर भी बहुमत तक पहुंचना जानते हैं। बेचारे, प्रवक्ता! यह नहीं समझ पाए कि, कब प्यार नफरत में बदल जाता है।

Home / Prime / Opinion / प्यार से नफरत तक

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो