scriptअलविदा सोम दा | Remembring Somnath Chaterjee | Patrika News
ओपिनियन

अलविदा सोम दा

भारतीय राजनीति में एक अच्छे स्कूल की तरह थे सोमनाथ चटर्जी; उनकी सौम्यता, उनके काम हमेशा सबके लिए कारगर सबक रहेंगे।

Aug 14, 2018 / 03:07 pm

सुनील शर्मा

opinion,work and life,somnath chaterjee,rajasthan patrika article,

work and life, opinion, rajasthan patrika article, somnath chaterjee

सोमनाथ चटर्जी का हमारे बीच न होना केवल वाम राजनीति ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में भी एक ऐसा शून्य छोड़ गया है, जिसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। दस बार लोकसभा सदस्य रहे, खांटी जमीनी कॉमरेड नेता सोमनाथ चटर्जी जिस मन, ज्ञान, पवन, मिट्टी के बने थे, उसकी बात ही कुछ और थी। वे उस दौर के युवा थे, जब एक प्रगतिशील, सेकुलर, विकसित भारत का सपना देखा गया था। ये ऐसे नेता रहे, जिन्होंने पिछली सदी से नई सदी तक का बहुत व्यवस्थित संसदीय सफर तय किया और एक समझदार लोकतांत्रिक भारत के सपने को साकार करने-कराने में अपने तरीके से जुटे रहे। संविधान की पालना, संसदीय मर्यादाएं निभाना, जाति, धर्म की राजनीति से बचना, देश को जरूरत पड़े, तो अपनी राजनीतिक सीमाओं को भी लांघ जाना है – ये सारे गुण सोम दा में भरपूर थे। गौर कीजिएगा, २५ जुलाई १९२९ को असम के तेजपुर में जन्मे सोम दा हिन्दू राष्ट्रवादी पिता निर्मल चंद्र चटर्जी की गोद से आगे बढ़े थे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माक्र्सवादी) यानी माकपा के कारगर कॉमरेड व लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
सोम दा एक राजनेता के रूप में अपने आप में स्कूल की तरह थे। जनता के धन से सरकारी चाय पीने-पिलाने पर भी उन्हें ऐतराज था। उनकी जीवन शैली बहुत सामान्य व दिखावे से परे थी। उनका सम्मान सभी दल के नेता करते थे। याद रखने वाली बात है कि १९७१ से १९८४ तक और फिर १९८५ से २००९ तक कुल ३७ साल सांसद रहने के बावजूद उनके दामन पर एक भी दाग नहीं लगा। वे हमेशा एक उज्ज्वलतम उदाहरण रहेंगे। वे ११ बार लोकसभा चुनाव लड़े १० बार जीते और उन्हें कभी राज्यसभा नहीं जाना पड़ा। आज उनके जैसे कितने वामपंथी नेता हैं? लेकिन भारतीय वामपंथी इतिहास और स्वयं सोम दा के जीवन का एक सबसे दुखद दिन तब आया, जब २००८ में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। जनाधारहीन कॉमरेड्स ने यह साबित किया कि देश के संविधान से ऊपर है माकपा का संविधान। सोम दा वर्ष २००९ में ही राजनीति को विदा कहने को मजबूर हुए। जो पार्टी सोम दा जैसे नेता का आदर नहीं कर सकी, वह पार्टी आज कहां है, यह बताने की जरूरत नहीं है।
इतिहास है २००४ से २००७ का वह स्वर्णिम दौर, जब लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के रूप में दो भारतीय हस्तियां ऐसी थीं, जिनसे देश सीखता था। ये ऐसे भारतीय पितृ पुरुष थे, जो संसद से सडक़ तक गलती होने पर किसी को भी नसीहत देने या फटकारने का जरूरी साहस रखते थे। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में भी उनकी सोच जरूरी सबक हो सकती है – सोम दा ने एक साक्षात्कार में कहा कि मोदी अच्छे अभिनेता, थोड़े क्रूर, अच्छे शो मैन हैं। हम सभी को ध्यान रहे, वे इस चिंता के साथ संसार से गए हैं कि ‘धर्म के नाम पर जो राजनीति हो रही है, क्या लोगों को इसके खतरे का पता है?’ सोचिए, उसी सद्भावना, संविधान प्रिय सौम्यता और शालीनता के साथ, जो सोम दा हमारे लिए छोड़ गए हैं। उनको यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Home / Prime / Opinion / अलविदा सोम दा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो