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खानों की लूट, कब तक!

खनन का औद्योगिक विकास से सीधा संबंध है। निजी
भागीदारी के नाम पर सरकार खनन के लिए पट्टे देती है।

Sep 17, 2015 / 10:58 pm

मुकेश शर्मा

Mining

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खनन का औद्योगिक विकास से सीधा संबंध है। निजी भागीदारी के नाम पर सरकार खनन के लिए पट्टे देती है। राज्यों और केंद्र सरकार ने इसके लिए “नीति” भी बनाई हैं। लेकिन फिर भी अवैध खनन कई राज्यों में खुलेआम जारी है।


खनिज रूपी राष्ट्रीय संपदा की लूट के लिए खनन विभाग खानों को बंद और फिर चालू करने का “खेल” करता है। कभी नियमों तो कभी नक्शों की आड़ में। राजस्थान में बुधवार को करोड़ों की घूस लेने के सनसनीखेज मामले में राज्य के खनिज विभाग के मुख्य सचिव समेत अन्य अफसर गिरफ्तार हुए। खानों की लूट फिर उजागर हुई।


मलाईदार महकमे की काली कमाई से अफसर जेबें भर रहे हैं। रसूखदारों, अफसरों और नेताओं की मिलीभगत से हर साल सरकारी खजाने को अरबों-खरबों की रूपए की चपत लगती है।

हर साल करोड़ों रूपए की घूस का खेल

देश में खनन कार्य घूसखोरी का बड़ा खेल बन गया है। खनन करने वाले उद्यमी को अपने व्यापार में किसी भी तरह से मुनाफा चाहिए होता है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है। देखने में आया है कि खनन और संबंधित क्षेत्र में रहने वाले लोगों के हितों में टकराव होता है। ये पर्यावरणीय तथा मानवीय कारणों से हो सकता है। खानें अक्सर वन क्षेत्रों में होती हैं।


वहां सदियों से बसे लोगों के लिए वह इलाका आजीविका का साधन होता है। सरकारें वनक्षेत्र से सटे इलाकों में खान के पट्टे जारी करती हैं। अक्सर खान मालिक पर्यावरण संबंधी अहर्ताओं को पूरा नहीं करता है। इसकी एवज में शुरू होता है घूसखोरी का खुला खेल। सरकारी कर्मचारियों में निचले स्तर पर शुरू होने वाले इस गोरखधंधे में ऊंचे पदों पर बैठे अफसर तक शामिल रहते हैं।


खान मालिक के मुताबिक नियमों में फेरबदल अथवा किसी कारण से बंद खानों को फिर से शुरू करने के लिए मोटी रकम का लेनदेन होता है। अक्सर ये खेल इतनी सफाई से चलता है कि कोई पकड़ा ही नहीं जाता है।


नियम विरूद्ध चलने वाली खानों के कारण पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है। साथ ही सरकार को रॉयल्टी नहीं मिलती है। अक्सर खनन क्षेत्रों के नक्शे भी राजस्व विभाग और वन विभाग के अलग-अलग होते हैं।

कानून की पालना और निगरानी जरूरी


अवैध खनन से निपटने के लिए जरूरी है कि खनन संबंधी कानूनों को पालना सुनिश्चित कराई जाए। छत्तीसगढ़ में एक क्षेत्र में खान की मंजूरी के खिलाफ 20 गांव लामबंद हो गए। आंदोलन भी किया, लेकिन अफसरों ने आदिवासियों के हितों को ताक पर रखकर अनुमति दे दी।


कानून की बेहतर ढंग से पालना और निगरानी हो तो ऎसी स्थिति पर रोक लगाई जा सकती है। वरना खनन के नाम पर देश भर में घूसखोरी का गोरखधंधा यूं ही चलता रहेगा।

बेल्लारी : सुर्खियां बटोरी


कर्नाटक के तत्कालीन लोकायुक्त ने 27 जुलाई, 2011 को अवैध खनन पर रिपोर्ट पेश की। 16,085 करोड़ रूपए का घोटाला हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येडि्डयुरप्पा के परिवार के ट्रस्ट को खनन कंपनियों से 30 करोड़ रूपए की रिश्वत के तथ्य उजागर हुए।


पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, रेड्डी बंधुओं, कनार्टक के मंत्रियों और सांसदों के नाम भी घोटाले में सामने आए। बेल्लारी क्षेत्र में वर्ष बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध उत्खन्न हुआ। सुर्खियों में रहे इस घोटाले से सियासी भूचाल भी आया।

ओडिशा : वेदांता के खिलाफ हल्ला बोल


ओडिशा के नियामगिरी वनक्षेत्र में वेदांता कंपनी ने बॉक्साइट के खनन की मंजूरी के खिलाफ वर्ष 2013 में आदिवासियों ने हल्ला बोला। लामबंद हुए। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनी को गा्रम सभा से मंजूरी लेनी होगी। रायगढ़ और कालाहांडी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के हकों और संस्कृति से छेड़छाड़ के कारण ये मामला देश भर में चर्चित रहा।

गोवा : अवैध खनन में केंद्र-राज्य
जिम्मेदार

गोवा में वर्ष 2010 में लौह अयस्क के अवैध खनन पर बनी जस्टिस एमबी शाह कमेटी की रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार को समान रूप से दोषी पाया गया। देश से निर्यात होने वाला 55 फीसदी लौह अयस्क गोवा से ही जाता है। रिपोर्ट के अनुसार 35 हजार करोड़ के इस घोटाले में नेता, अफसर और खान मालिकों की सांठगांठ थी।

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