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शब्दों का दरवेश : ‘रूह गाए, रूह सुने’ यही है सच्चा संगीत

विश्व संगीत दिवस (21 जून) के निमित्त किशोरी आमोणकर की स्मृति संगीत के उस ज्ञान-ध्यान से भी जुडऩे को विवश करती है

नई दिल्लीJun 17, 2021 / 08:46 am

विकास गुप्ता

शब्दों का दरवेश : 'रूह गाए, रूह सुने' यही है सच्चा संगीत

शब्दों का दरवेश : ‘रूह गाए, रूह सुने’ यही है सच्चा संगीत

विनय उपाध्याय

स्वर के साथ एक अविरल, अंतहीन, अटूट सिलसिला जो उनकी आत्मा में लयबद्ध होता, उन्हें दिव्य अनुभूतियों के शिखर पर ले जाता। वे राग-स्वरों से रिश्ता बनातीं, संवेदनाओं की अतल गहराइयों में उतरतीं। उस परम-तत्व की तलाश करतीं, जहां अहंकार और विकार की मलिनता का प्रक्षालन संगीत के पावन स्वरों से होता। संगीत उनके लिए ईश्वर था और रंगशाला एक मंदिर की तरह, जहां वे स्वर की जोत जलाकर विराट को पुकारतीं। इच्छा होती कि सुर से आगे निकल सके। संगीत विदुषी, गान सरस्वती किशोरी आमोणकर की साधना का सच यही था। उन्हें इस वक्त याद करने का प्रयोजन एक ऐसा शुभ प्रसंग है, जब सारी दुनिया सात सुरों के आस-पास मानवीय करुणा और कल्याण की कामना लिए प्रार्थना के पवित्र भावों से गूंज उठती है।

विश्व संगीत दिवस (21 जून) के निमित्त किशोरी आमोणकर की स्मृति संगीत के उस ज्ञान-ध्यान से भी जुडऩे को विवश करती है, जहां सतही दिल-बहलावे से ऊपर सात सुरों की महिमा के कुछ अलहदा से मानवीय अर्थ हैं। तालीम और तपस्या का ही प्रताप है कि संगीत में स्वर की उस ऊर्जा को हासिल करना साधकों के लिए मुमकिन हो सका है, जहां प्रकृति के कण-कण को महसूस किया जा सकता है। जब सारी दुनिया बेसुरे समय और कोलाहल के बीहड़ में जीने को अभिशप्त है, संगीत की मीठी अनुगूंज और गतिमय स्वर लहरियों का धड़कन बनकर धमनियों में उतर जाना कितना सुखकर है।

संगीत के वज़ूद और उसकी अपार शक्ति पर कुछ कहना समंदर को हाथ में समेटने की तरह है, लेकिन तल्लीनता और आत्मसमर्पण की गहरी अनुभूतियों में डूबे साधकों की सुनें, तो अनहद का रास्ता आनंद के शिखरों की ओर खुल सकता है। इन शिखरों पर हमारी ख़ुद से पहचान होती है। किशोरी अमोणकर ने एक साक्षात्कार में यही तो कहा था, ‘मैं स्वर के जरिए अपनी आत्मा के रहस्य को बूझने का जतन करती हूं। वह आत्मा, जिसका नाता बह्म से है। जब तक देह है, सुर हमारा है। हमारी मृत्यु के बाद भी वह इस संसार में रहेगा। सन्नाटा मेरे जीवन में है ही नहीं, क्योंकि सन्नाटे का भी सुर है और सुर हमेशा मेरे पास है।

इंग्लैण्ड की एक प्रयोगशाला है-दिलाबार। वहां संगीत को लेकर कई आश्चर्यजक प्रयोग किए गए। बताते हैं कि स्वरों के कुछ विशेष प्रभावों से वहां बेमौसम फूल चटखने लगते हैं। फलों से डालियां झूलने लगती हैं। वृक्ष दोगुनी गति से बढऩे लगते हैं। यही नहीं, मां के गर्भ में बच्चा परिपुष्ट होने लगता है। संगीत का असर ऐसा कि धातु को सुरों के संपर्क में लाएं, तो जंग नहीं लगती। संगीत के स्वर में सम्मोहन है। जब आदमी की ताकत कमजोर पडऩे लगती है, तो स्वर को पुकारा जाता है और धमनियों में खून दौडऩे लगता है। यही वजह है कि स्वर को हमारे यहां इबादत का सबसे सुगम जरिया माना गया है। अनुभव कहता है कि पूजा से कई गुना प्रभावशाली ध्यान है। ध्यान से कई गुना प्रभावशाली जप है और जप से कई गुना महिमाशाली गान है। अचानक कोई सुर लग जाता है और जीवन गुनगुना उठता है। सरहदों के फासले संगीत के दामन में सिमट आते हैं। सरगम की सचाई तो यही है कि रूह गाती है और रूह ही सुनती है।

(लेखक कला साहित्य समीक्षक, टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक हैं)

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