हाल ही अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप की पोप की ओर से की गई कथित पैरवी की सोशल मीडिया पर चली ‘खबर’ से भी बवाल हुआ। यहां तक कहा गया कि इस फर्जी खबर ने चुनाव के नतीजे प्रभावित कर दिए। सोशल मीडिया पर पुरानी किसी घटना की फोटो या वीडियो डाल कर, उन्हें किसी ताजा मामले से जोड़कर अफवाह फैलाने के भी रोज नए मामले सामने आ रहे हैं।
गनीमत है कि अभी तक इन अफवाहों के हिंसक दुष्परिणाम सामने नहीं आए, लेकिन इन आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में आतंककारी समूह, कट्टरपंथी या समाजकंटक सोशल मीडिया के जरिए अराजकता फैलाने की चेष्टा कर सकते हैं।
सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है। कोई भी व्यक्ति किसी भी उद्देश्य से सही-गलत खबरें इस पर डाल सकता है। जानबूझ कर गलत इरादे से फर्जी खबरें भी चलाई जा सकती हैं, जैसा कि इन दिनों सामने आने लगा है। ऐसे में सरकारों और सोशल मीडिया का उपयोग करने वालों तथा इन्हें ऑपरेट करने वालों-सभी को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। उपयोगकर्ताओं को तथ्यों की पुष्टि करके ही खबरों पर विश्वास करना और उन्हें ‘फारवर्ड’ करना चाहिए।
अशांति फैलाने के उद्देश्य से गलत तथ्य प्रसारित करने वालों से कड़ाई से निपटने के लिए भी उपाय करने जरूरी हैं। यह सही है कि सोशल मीडिया से दुनिया भर के लोग, आपस में सम्पर्क में आ रहे हैं। जानकारियां भी बढ़ रही हैं, लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि सोशल मीडिया ऐसा धारदार हथियार है, जो नासमझी से काम लेने पर कहर ढा सकता है। साइबर कानून को इन खतरों को भांपकर और मजबूत व कारगर बनाने की भी जरूरत है।