अधिकांश देशों में 65 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इसी अनुपात में पिछले कुछ दशकों में पॉली फार्मेसी का स्तर भी बढ़ा हैं। अमरीका में हुए एक शोध के अनुसार 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग जो लोग 5 से अधिक दवाइयों का उपयोग कर रहे हैं, उनका प्रतिशत सन 1999 से 2012 के बीच 24 प्रतिशत से बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया है। बुर्जुगों में पॉली फार्मेसी का एक प्रमुख कारण मल्टी मॉर्बिडिटी यानी कि एक मरीज में कई बीमारियों का होना है, जिसके चलते मरीज हर बीमारी की दवाइयों को उपयोग में लेते लेते पॉली फार्मेसी की गिरफ्त में आ जाता है।
एक स्कोटिश अध्ययन के अनुसार 85 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में मल्टी मॉर्बिडिटी का प्रचलन 81.5 प्रतिशत तक है। अन्य कारणों में दवाइयों की बाजार में ऑवर द काउंटर उपलब्धता के चलते स्वयं से इलाज, परंपरागत एवं पूरक दवाइयों को मरीज द्वारा खुद से उपचार में जोड़ लेना, चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ एवं फॉर्मासिस्ट के बीच संवाद एवं समन्वय की कमी, उपचार विकल्पों की बहुतायत शामिल है।
अस्वस्थ जीवन शैली मल्टी मॉर्बिडिटी के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से पॉली फार्मेसी को बढ़ावा देती है। पॉली फार्मेसी के चलते मरीज में भूख की कमी, असंतुलित होकर गिरने, शारीरिक कमजोरी, कंपन, चक्कर आना, चिंता, अवसाद, जल्दी थकना, मानसिक भ्रम का शिकार होना जैसी समस्याएं आने लगती हैं। पॉली फार्मेसी के दुष्प्रभावों में प्रतिकूल ड्रग प्रतिक्रिया, दवाओ की आपस में परस्पर क्रिया, उच्च लागत, जीवन गुणवत्ता में कमी, गतिशीलता व अनुभूति में कमी प्रमुख है।
एक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार दवाइयों के प्रतिकूल प्रभाव विश्व में बीमारी व मृत्यु के 14 अग्रणी कारणों में शामिल है। पॉली फार्मेसी से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले समूह में बुजुर्ग वर्ग, मानसिक रोगी, बौद्धिक व विकास संबंधी विकारों से पीडि़त रोगी, अशिक्षित ग्रामीण परिवेश के रोगी, हाशिए पर स्थित आबादी शामिल है। पॉली फार्मेसी से निपटना वाकई में वर्तमान की महती आवश्यकता है। पॉली फार्मेसी को रोकने के लिए चिकित्सक से लेकर नर्सिंग स्टाफ, फार्मासिस्ट, अंतर पेशेवर टीम एवं स्वयं मरीज की सामूहिक भागीदारी आवश्यक है। इसके लिए विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के बीच संवाद व सहयोग, पॉली फार्मेसी की पहचान व उचित प्रबंधन, तकनीकी मदद द्वारा निर्णय लेने की क्षमता के सुदृढ़ीकरण एवं मरीज केंद्रित पहुंच द्वारा प्रत्येक मरीज की आवश्यकता का मूल्यांकन कर दवाइयों का निर्धारण करने की दरकार है। सामान्य लक्षणों के लिए हर बार दवाइयां न देकर गैर औषधीय नुस्खों को प्राथमिकता दी जाए।
किसी भी दवा से संबंधित खतरे व लाभ के अनुपात का आकलन कर अनावश्यक दवाओं को बंद किया जाए। हर दवा को लिखने से पहले चिकित्सकों द्वारा यथासंभव उसे किसी निदान द्वारा लिंक किया जाए ताकि अनावश्यक दवा न जुड़ सके। चिकित्सको द्वारा मरीज के एक विभाग से दूसरे विभाग में स्थानांतरण के दौरान दवाइयों का सावधानी पूर्वक मिलान किया जाए एवं मरीज की छुट्टी के उपरान्त उसकी दवाइयों व मेडिकल हिस्ट्री का सघनता से फॉलो अप सुनिश्चित किया जाए ताकि अनावश्यक दवाइयों के भार, उपचार की विफलता व पुन: अस्पताल भर्ती की समस्या से बचा जा सके ।
दवा चाहे चिकित्सक ने लिखी हो या मरीज इसका खुद उपयोग कर रहा हो, इनकी एक पूर्ण सूची बना कर अपडेट रखा जाए। समय-समय पर चिकित्सक से संवाद कायम कर अपनी मेडिकल हिस्ट्री से उन्हें अवगत कराते रहें ताकि गैर जरूरी दवाइयों को समय रहते बंद किया जा सके। सेल्फ मेडिकेशन से बचें। अनधिकृत चिकित्सकीय प्रैक्टिस को प्रतिबंधित किया जाए। ऑवर द काउंटर दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाई जाए। इन सभी उपायों को समन्वित रूप से लागू करके ही पॉली फार्मेसी की समस्या से निजात मिल सकती है क्योंकि पॉली फार्मेसी लोगों के स्वास्थ्य के साथ तो खिलवाड़ है ही, यह आर्थिक बोझ भी है।
— डॉ.पंकज जैन