आतंककारियों से संबध रखने के आरोप में तीन दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर सरकार के 11 कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया था। इनमें हिजबुल मुजाहिद्दीन के संस्थापक सैयद सलाहुद्दीन के दो पुत्र शामिल हैं। इससे पहले भी सरकार अनेक कर्मचारियों से पूछताछ कर चुकी है, जिन पर आतंककारियों की मदद करने के आरोप हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और उनके परिजन की मदद के लिए ट्रस्ट तक बनाए गए हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की जड़ें गहरी हैं और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए हर मोर्चे पर मुकाबला जरूरी है। दुर्भाग्य की बात है कि पिछले तीन दशक में आतंकवाद का सामना करने के लिए ठोस रणनीति बन ही नहीं पाई। मुठभेड़ में आतंककारियों का मुकाबला कर उन्हें मारने की रणनीति से आगे गंभीरता से काम हुआ ही नहीं। आतंककारियों की पहचान तो की गई, पर आकाओं की तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया। पिछले चार दशकों में आतंकवाद की आग में हजारों परिवार झुलसे हैं।
दो दिन पहले एनआइए के छापों में इस्तेमाल की हुई गोलियों के खोखे, पथराव के दौरान बचाव के लिए उपयोग में आने वाले मास्क एवं आपत्तिजनक लेखन सामग्री जब्त की गई थी। जाहिर है राज्य में कुछ लोग अब भी आतंककारियों के मददगार बने हुए हैं। जरूरत इस गठजोड़ के खात्मे की है। सरकार ने इस बार आर-पार की लड़ाई का मानस बनाया है। भारत की कार्रवाई से आतंकवादी संगठन और उन्हें सहायता पहुंचाने वाले लोग बौखलाए हुए हैं। भाजपा नेता की हत्या उसी बौखलाहट का परिणाम माना जा सकता है।