Kangana Ranaut की मोस्ट अवेटिड फिल्म ‘थलाइवी’ की रिलीज डेट आई सामने, इस दिन देगी थियेटर्स में दस्तक
वाकई हिन्दी सिनेमा में अंग्रेजी नामावली के हम इतने आदी हो चुके हैं कि उसका हिन्दी में दिखना ही हमें असहज कर देता है। कैसे भूलें कि ‘तीसरी कसम’ जैसी बिहार की लोक संस्कृति पर केंद्रित एकदम देशज लगती फिल्म की नामावली भी अंग्रेजी में दी गई थी। ऐसे में राजश्री प्रोडक्शन जरूर अपवाद बन कर उभरी थी, जिनकी फिल्मों में भारतीय संस्कृति को ही नहीं, हिन्दी को भी प्रमुखता दी जाती थी। शायद 1947 में स्थापित इस प्रोडक्शन के मालिक ताराचंद बडज़ात्या की राष्ट्रीय सोच इसका कारण रही होगी। लेकिन विदेश से पढ़कर लौटे सूरज बडज़ात्या के नेतृत्व संभालते ही स्थितियां ही नहीं, समझ भी बदल गई और ‘मैंने प्यार किया’ से राजश्री की नामावली भी अंग्रेजी में आने लगी। हिन्दी नामावली का निर्वहन बासु चटर्जी ने भी अपने प्रोडक्शन में बखूबी किया, हिन्दी मध्यवर्ग को संबोधित उनकी सुखद हास्य फिल्मों को उनकी हिन्दी नामावली एक विशिष्ट पहचान देती थी। लेकिन यही बासु चटर्जी दूसरे के प्रोडक्शन में इस परंपरा का निर्वहन नहीं कर पाते थे। यहां तक कि संस्कृत प्रोफेसर की पृष्ठभूमि पर 1978 में बनी ‘दिल्लगी’ की नामावली से हिन्दी पूरी तरह अनुपस्थित हो जाती है।
वास्तव में ऐसी कोशिशें कभी हिन्दी सिनेमा की समझ नहीं बदल सकीं। बल्कि नामावली और प्रचार सामग्रियों से हिन्दी की भागीदारी दिन प्रतिदिन घटती गई। पहले अंग्रेजी के साथ हिन्दी और उर्दू में भी फिल्म के नाम जरूर लिखे जाते थे, भले ही बाकी नामावली अंग्रेजी में हो। बाद के दिनों में ‘परिणीता’ जैसी साहित्यिक कृति पर बनी फिल्म की नामावली से भी हिन्दी पूरी तरह अदृश्य होने लगी। आश्चर्य नहीं कि 26 जुलाई 2018 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को हिन्दी फिल्मोद्योग के नाम एक एडवाइजरी जारी करनी पड़ती है, जिसके अनुसार हिन्दी भाषा की फिल्म में हिन्दी में ही क्रेडिट रोल और टाइटल दिए जाने की सलाह दी जाती है, ताकि वैसे दर्शक संबंधित जानकारी से वंचित नहीं रहें, जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं। लेकिन मंत्रालय के इस आग्रह को इंडस्ट्री ने जरा भी तवज्जो नहीं दी।
सच यही है कि दुनिया के तमाम देशों ही नहीं, अपने देश में बनने वाली विभिन्न भाषाओं की फिल्मों में भी नामावली उसी भाषा में दी जाती है, किसी को भी अंग्रेजी के साथ अपने दर्शकों से जुडऩे की जरूरत नहीं होती। ‘थलाइवीÓ की पहल ने एक बार फिर इस एडवाइजरी की याद दिलाई है। शायद इस बार मंत्रालय के इस अनुरोध के प्रति हिन्दी सिनेमा सहृदय होकर विचार कर सके।