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प्रवासियों के हितों का ध्यान रखने का हुआ फायदा

केरल के उदाहरण से स्पष्ट है कि स्थानीय समुदायों को नुकसान पहुंचाए बिना प्रवासियों की क्षमता को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। यह भावना उनको ‘अतिथि श्रमिक’ बनाती है।

जयपुरMay 30, 2024 / 07:34 pm

विकास माथुर

केरल में गत दिनों दसवीं की बोर्ड परीक्षा के परिणाम घोषित किए गए। इसमें एर्नाकुलम जिले के वेन्निक्कुलम स्थित एक हाई स्कूल के शिवराज मोहिते का नाम भी अच्छे अंक हासिल करने वालों की सूची में था। उन्हें सभी विषयों में ए प्लस मिला। इस छात्र की एक खासियत यह है कि यह महाराष्ट्र के सांगली जिले से यहां आकर बसे प्रवासी दम्पती की संतान है। उसे मलयालम भाषा सहित सभी विषयों में काफी उच्च अंक प्राप्त हुए हैं। यही मलयालम भाषा स्कूल में पढ़ाई का माध्यम है।
उसके पिता कपड़े की एक दुकान में सेल्समैन हैं और दो दशक पूर्व अपने विवाह से पहले ही यहां आ कर बस गए थे। उनके दोनों बच्चों ने एक उत्कृष्ट निजी विद्यालय में निशुल्क पढ़ाई की है। यहीं पढ़ कर उनका बेटा टॉपर विद्यार्थियों की सूची में शामिल हुआ। एक अन्य छात्रा, जिसके सभी विषयों में ए प्लस आया है, वह भी उत्तर प्रदेश से यहां आकर बसे प्रवासी की संतान है। यह स्थिति उत्तर प्रदेश में रह रहे प्रवासियों के ठीक विपरीत है, जहां लड़कियां दसवीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पातीं। और यहां ये अपनी बच्ची की आगे की पढ़ाई की भी योजना बना रहे हैं। उसकी बड़ी बहन केरल में ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है।
एर्नाकुलम में प्रवासी माता-पिता की 85 संतानों की सफलता का कारण है जिला प्रशासन द्वारा समर्थित एक पहल—रोशनी! रोशनी नामक यह प्रोजेक्ट प्रवासी छात्रों को मलयालम, अंग्रेजी व हिन्दी भाषा में दक्षता हासिल करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके तहत सुबह की कक्षाओं से पूर्व 90 मिनट की अतिरिक्त कक्षाएं लगाई जाती हैं। इसके लिए ऐसे स्वयंसेवकों की सेवाएं ली जाती हैं जो हिन्दी, बंगाली और उडिय़ा भाषा में दक्ष हैं।
प्रवासी श्रमिकों की संतानों की ऐसी सैकड़ों सफल कहानियां हैं, जो स्थानीय भाषा में निशुल्क शिक्षा प्राप्त करते हैं और इसी सुदृढ़ आधार पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर करियर बनाते हैं। कुछ वर्ष पहले राज्य स्तरीय मलयालम साक्षरता परीक्षा में टॉप करने वाली महिला बिहार से आए प्रवासी परिवार से थी। यूनिवर्सिटी में बीए की परीक्षा में भी एक प्रवासी बिहारी छात्रा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिक व उनके परिवारों को राशन व भोजन सामग्री पहुंचाकर सहायता की गई। उन्हें भोजन, आश्रय व चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करवाई गईं। जनसांख्यिकीय परिवर्तन के मामले में केरल देश के बाकी राज्यों से बहुत आगे है।
यहां से मिडिल ईस्ट जाने वाले प्रवासियों की संख्या भी अच्छी खासी है। इसी संयोजन व अन्य कारकों के चलते प्रवासियों पर केरल की निर्भरता सर्वाधिक है। केरल में करीब 4 मिलियन प्रवासी श्रमिक रहते हैं,जिन्हें अतिथि श्रमिक कहा जाता है। पर राज्य के लिए प्रवासियों का यह प्रेम मात्र दिखावा नहीं है। इन प्रवासियों को शुरुआत में 2021 में राज्य में औसतन दैनिक मजदूरी 709 रुपए मिलती थी,जबकि राष्ट्रीय स्तर पर औसत दैनिक मजदूरी 309 रुपए थी। ये मजदूर सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं। बागवानी, भवन निर्माण, रिटेल मॉल के साथ वे कुक, वेटर, सुरक्षाकर्मी और हेल्पर जैसे कार्य भी कर रहे हैं।
इन अतिथि श्रमिकों के लिए निशुल्क स्वास्थ्य बीमा ‘आवाज’ की भी व्यवस्था है। इसके तहत उन्हें अस्पताल में भर्ती करने व चिकित्सा सेवा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था है। इनके बच्चों को निशुल्क शिक्षा के साथ ही स्थानीय भाषा भी सिखाई जाती है, जो कि बड़ी बात है। श्रमिकों को शोषण, असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने या अवैध रूप से कम वेतन जैसी समस्या से बचाने के लिए उनके कानूनी अधिकारों की रक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। सरकार ने इन अतिथि श्रमिकों को पंजीकृत करने के लिए एक व्यापक डेटाबेस तैयार किया है, जो योजना बनाने व कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में सहायता करता है। उड़ीसा के कालाहांडी जिले में 2021 में ग्राम विकास नामक एनजीओ द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार,26 प्रतिशत परिवारों से दूसरे राज्यों में जाकर काम करने वाले मौसमी प्रवासी केरल जाना पसंद करते हैं, जहां वे अकुशल क्षेत्रों में काम करते हैं और औसतन 12000 रूपए का वेतन कमाते हैं। उड़ीसा से बाहर रहने वाले दो तिहाई प्रवासियों में से अधिकतर ने केरल जाना चुना।
देश के बाकी हिस्सों से केरल जाने वाले श्रमिकों के देश के भीतर ही प्रवास से ही एक प्रकार की छोटी प्रवासी पूंजी प्रेषण अर्थव्यवस्था बन गई है, क्योंकि केरल में हुई बचत से उड़ीसा, झारखंड, असम और बिहार को पूंजी मिलती है। देश में 50 मिलियन प्रवासी कर्मचारी अपने गृह राज्य से बाहर जाकर काम कर रहे हैं। इनमें से 4 मिलियन केरल में हैं। अंतत: प्रवासी कामगारों की केरल की शोषण दर पर इसके आर्थिक आकार व विकास दर की वजह से लगाम लगेगी। केरल से बाहर गए प्रवासियों से प्राप्त होने वाली प्रेषण प्रवाह पूंजी का राज्य की आय में 25 प्रतिशत योगदान था। अब यह गिरकर 15 प्रतिशत से कम रह गया है। यह संकेत है? शायद विकास एवं उपभोग के प्रभावी घरेलू कारकों का। राज्य के समक्ष कुछ चुनौतियां है, जैसे पुरानी होती जनसांख्यिकी, निर्माण निवेश और रोजगार में कमी तथा महंगा रियल एस्टेट क्षेत्र।
राज्य ने नॉलेज इंडस्ट्री को आकर्षित करने में अच्छी भूमिका निभाई है, परन्तु शिक्षा एवं अन्वेषण की गुणवत्ता में सुधार के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। हालांकि बात जब ‘अतिथि श्रमिकोंं’ यानी बाहरी राज्यों से आने वाले आव्रजकों की हो तो केरल एक मॉडल माना जा सकता है। राज्य इन श्रमिकों व इनके परिवार के कल्याण के लिए काफी कुछ करता है, खास तौर पर उनके बच्चों की शिक्षा के लिए। उत्तर से आने वाले प्रवासियों को जिस प्रकार से मलयालम भाषा सिखाई जाती है, वह सराहनीय है। 2011 की जनगणना के अनुसार 450 मिलियन भारतीय राज्यों के बीच या देश से बाहर प्रवास पर हैं। यह प्रवासन मौसमी,चक्रीय या अर्ध स्थाई हो सकता है।
संविधान हमें अधिकार देता है कि हम आर्थिक अवसरों के लिए देश में कहीं भी आ-जा सकें। अपने राज्य में रोजगारों की कमी से निपटने का यही एक मात्र उपाय है। पर हर कोई प्रवासन नहीं कर सकता, केवल कुछ ही लोग हैं जो परिवार के साथ प्रवासन कर पाते हैं। जिनके पास जमीन है, वे जमीन से बंधे रहते हैं। प्रवासन के दो पहलू है एक सकारात्मक उद्यमशीलता का व दूसरा, स्थानीय स्तरों पर अवसरों की कमी का।
पश्चिमी जगत में प्रवासियों की संख्या में गिरावट आई है, क्योंकि वहां इन्हें स्थानीय लोगों का रोजगार छीनने वाला माना जाने लगा है। परन्तु केरल के उदाहरण से स्पष्ट है कि स्थानीय समुदायों को नुकसान पहुंचाए बिना प्रवासियों की क्षमता व ऊर्जा को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। यही भावना प्रवासी कामगार को ‘अतिथि श्रमिक’ बनाती है।
— अजीत रानाडे

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